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राजनीति में पुनर्जीवित होते, मातृभूमि के स्वर

सार

राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 साल पूर्ण होने पर बीजेपी सरकार राष्ट्रीय उत्सव मना रही है. पीएम नरेंद्र मोदी राष्ट्रगीत की स्मृति में सिक्का और डाक टिकट जारी कर रहे हैं..!!

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विस्तार

    वंदे मातरम की विरासत कांग्रेस से जुड़ी रही, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस इससे दूर होती गई. जब से कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता ओढ़ी तब से वंदे मातरम छोड़ती गई. कांग्रेस भले ही बीजेपी और संघ हो इसका विरोधी साबित करने की कोशिश करती हो, लेकिन अब तो वंदे मातरम की विरासत बीजेपी धारण करती जा रही है.

    वंदे मातरम उत्सव की जो पहल कांग्रेस की तरफ से होना चाहिए था, वह बीजेपी की सरकार कर रही है. पूरे वर्ष आयोजन की योजना शुरु की गई है. कांग्रेस पार्टी के लिए कठिन था तो उसकी राज्य सरकारें तो ऑफीशियली वंदे मातरम उत्सव का आक्रामक आयोजन कर सकती थीं. लेकिन कांग्रेस ने इस विरासत को छोड़ दिया है. इसका कारण धर्म के आधार पर किया जा रहा विरोध है. इस उत्सव का विरोध करते हुए इसे गैर इस्लामिक करार दिया जा रहा है. राष्ट्रगीत के अनिवार्य गायन के आदेश को मुस्लिम छात्रों के धार्मिक सिद्धांतों के विरुद्ध बताया जा रहा है. यही विरोध कांग्रेस द्वारा वंदे मातरम की विरासत को छोड़ने का कारण बना है.

    संविधान सभा द्वारा राष्ट्रगीत को स्वीकार किया गया है. कांग्रेस की धारा जब से धर्मनिरपेक्षता की ओर मुड़ी तब से आजादी का महामंत्र वंदे मातरम गीत भी कांग्रेस की धारा से कटता गया. यह विवाद तो आए दिन खड़ा किया जाता है, कि वंदे मातरम गैर इस्लामिक है. इसके गायन पर विवादों को देखते हुए कांग्रेस इससे दूरी बनाती गई. राहुल गांधी जो हर छोटी-छोटी बात पर अपने विचार रखते हैं, वह वंदे मातरम पर चुप्पी साधे हुए हैं. 

    अगर केंद्र सरकार वंदे मातरम उत्सव मना सकती है, तो कांग्रेस भी अपने मुख्यालयों पर इसका आयोजन कर सकती है. वंदे मातरम किसी पार्टी की थाती नहीं है, यह भारतीय सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता का मजबूत स्वर है. विरासत पीढ़ी से नहीं अनुपालन से होती है. बंकिम चंद्र चटर्जी ने जब यह गीत लिखा था, तब भारत गुलाम था. गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सस्वर गाया था. आजादी में यह गीत महामंत्र बना था. यह राष्ट्रगीत अमर हो चुका है. 

    राष्ट्रगीत में मातृभूमि को मां के रूप में स्वीकारते हुए उसकी प्राकृतिक संपदा के साथ ही जीवन के लिए आवश्यक सभी जरूरतों के पोषक रूप को रेखांकित किया गया है. देश की सभ्यता और धर्म के स्वरूप को भी इसमें बखाना गया है. धर्म तो निजी आस्था हो सकती है, लेकिन मातृभूमि सबकी आस्था और जरूरत है. हर जीवन को जो प्राण मिलता है, वह मातृभूमि और उसकी आबोहवा से मिलता है.

    वंदे मातरम की विरासत और उसके प्रति वर्तमान कांग्रेस का दृष्टिकोण और आचरण उसकी पूरी कहानी कह रहा है. वंदे मातरम का भाव घुसपैठ के खिलाफ है. कट्टरता के खिलाफ है. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट बैंक के तुष्टीकरण के खिलाफ़ है.

    जब राष्ट्रगीत लिखा गया था, तब उसमें केवल मातृ भूमि के प्राकृतिक वरदान को ही नहीं बल्कि गुलामी के दौर में भी देश के भविष्य का सोच समाहित है. आज देश विकास के जिस मुकाम पर पहुंचा है, वह यह साबित कर रहा है, कि राष्ट्रभक्ति के भाव भारतीय सभ्यता के भाव हैं. हर संकल्प को पूरा करने की शक्ति का भाव है. 

    कांग्रेस हमेशा यह दावा करती है, कि उसकी विरासत आजादी की विरासत है. देश के स्वाधीनता आंदोलन का श्रेय कांग्रेस लेती है. संविधान रचने और संविधान को बचाने का भी कांग्रेस दावा करती है. वंदे मातरम को लेकर कांग्रेस का जो नजरिया सामने आ रहा है, वह उसकी वर्तमान हालातों का इशारा कर रहा है.

    महापुरुषों की विरासत भी कांग्रेस से दूर हो रही है. महात्मा गांधी, बाबा साहब अंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल अब केवल कांग्रेस की विरासत नहीं रह गई है, बीजेपी इन सब पर इतनी तेजी से और ईमानदारी से काम कर रही है, कि यह सारी विरासत बीजेपी के साथ जुड़ती जा रही है. 

    आजादी की लड़ाई के बाद एक बार फिर देश की राजनीति में वंदे मातरम के सांस्कृतिक गौरव को पुनर्जीवित किया जा रहा है. राष्ट्रीय एकता के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्मृति में भारत पर्व मनाया जा रहा है. भारतीय सभ्यता, हिंदू सभ्यता मानी जाती है. हिंदुत्व की राजनीति इसी सभ्यता से जुड़ी हुई है. वंदे मातरम को उसी की आत्मा के रूप में देखा जा सकता है जो राष्ट्रगीत कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में जन-जन तक पहुंचा था, वह कांग्रेस जनों के मन से उतरता चला गया और भाजपा के मन में चढ़ता चला गया. 

    वंदे मातरम के भाव आरएसएस के संकल्प से भी जुड़ते हैं. वह भी भारत माता की ही आराधना करते हैं. कोई भी सभ्यता वहां के लोगों से बनती है, जनसंख्या से बनती है, राजनीति से बनती है. लोकतंत्र तो लोगों द्वारा लोगों का लोगों के लिए ही बना तंत्र है. 

    देश की राजनीति में भारतीय सभ्यता के पुनर्जीवित होने के इस दौर में वंदे मातरम उत्सव महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. वंदे मातरम के प्रति निष्ठा ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ऑपरेशन सिंदूर जैसा इतिहास रचती है.

    वंदे मातरम राष्ट्र चरित्र मानस के रूप में हमारे सामने है. इस धार्मिक नजरिए से देखना ही गलत है. जो ऐसा देखते हैं, उनको सही दिशा और दृष्टिकोण बताने की बजाय कांग्रेस उनके दृष्टिकोण पर चलने लगे, यह तो कांग्रेस का बहुत बड़ा शिफ्ट है.

    धर्मनिरपेक्षता की आड़ में वंदे मातरम नहीं छोड़ा जा सकता. वंदे मातरम राष्ट्र की आत्मा है. इसे अपनी आत्मा बनाए रखना सभी राजनीतिक दलों का बुनियादी दायित्व है.