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राष्ट्र के लिए आफत वोट बैंक की सियासत

सार

घुसपैठिए अब राष्ट्र की एकता के लिए खतरा बनने लगे हैं. घुसपैठियों और शरणार्थियों को अलग-अलग देखने की सियासत की जाती है, लेकिन दोनों का राष्ट्र पर प्रभाव तो एक जैसा ही पड़ता है. चाहे कोई घुसपैठिए के रूप में आए और चाहे शरणार्थी के रूप में आए. बोझ तो भारत पर ही पड़ता है..!!

janmat

विस्तार

    देश के संसाधनों का ही बंटवारा होता है. एक-एक वोट लोकतंत्र के लिए जरूरी है, लेकिन घुसपैठिए का एक भी वोट भारतीयता पर करारी चोट है. संविधान हाथ में लेकर कोई किसी की हत्या करे, चोरी करे फिर भी यह कहे कि हम तो सत्य के साथ खड़े हैं, संविधान की रक्षा करते रहेंगे, तो फिर देश को अपनी रक्षा के लिए खड़ा ही होना पड़ेगा. देश यहां के लोगों से बना है. जब घुसपैठ से लोग प्रभावित होने लगें तो फिर यह मामला लोगों के हक़ से जुड़ जाता है.

    घुसपैठ के मामले में सैद्धांतिक रूप से सभी राजनीतिक दल इसका विरोध करते हैं. लेकिन जब भी इस पर कोई कार्रवाई होती है, तब उसका भी विरोध करते हैं. यह कोई तात्कालिक समस्या नहीं है. आजादी के समय से ही इस समस्या की जड़ जुड़ी हुई है. बांग्लादेश बनाते समय तो बांग्लादेशी शरणार्थियों को ना केवल स्वीकार किया गया, बल्कि उन्हें बसाया गया. फिर उनका उपयोग वोट बैंक के रूप में किया गया. 

    शरणार्थी से जुड़कर धीरे-धीरे यह क्रम बढ़ता रहा. अब पूरे देश में रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी या घुसपैठिए के रूप में फैल गए हैं. जितने सीमावर्ती राज्य हैं, वहां घुसपैठ एक बड़ी समस्या बन गई है. घुसपैठ रोकना केंद्र की जवाबदारी है. लेकिन सीमावर्ती राज्य जिन दलों के शासन में होते हैं, वह घुसपैठ को अपने राजनीतिक जनाधार को बढ़ाने के लिए उपयोग करते रहे हैं. 

    बिहार, असम,बंगाल में तो घुसपैठ आम बात है. यह बात सही है, कि सीमावर्ती राज्यों में पड़ौसी देश के साथ रोटी-बेटी के कई बार संबंध होते हैं. लेकिन इनका सहारा लेकर घुसपैठ को तो बढ़ावा नहीं दिया जा सकता. 

    आजकल पहचान पत्र बनवाना भी कोई असंभव काम नहीं है. अब तो यह तथ्य भी सामने आ रहे हैं, कि इसके लिए बाकायदा नकली गिरोह काम करते हैं. जो फर्जी पहचान पत्र बनाते हैं. उसके आधार पर मतदाता सूची में भी नाम जुड़ जाते हैं. इन बढ़ती घटनाओं को देखते हुए जब केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की तरफ से कदम उठाए गए तो उनके राजनीतिक विरोध के लिए युद्ध जैसा माहौल खड़ा कर दिया गया.

    बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण एसआईआर शुरू किया गया. तो राजनीतिक दलों ने वोट चोरी के आरोप लगाकर राजनीतिक अभियान शुरू कर दिया. इसको राहुल गांधी लीड कर रहे हैं. मतदाता सूची का पुनरीक्षण सामान्य प्रक्रिया है. इसमें नए पात्र मतदाताओं का नाम जोड़ना, मृत मतदाताओं का नाम हटाना और पलायन कर गए लोगों का नाम हटाना रुटीन प्रक्रिया होती है. इस प्रक्रिया में घुसपैठिए भी पहचान में आते हैं. इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया फिर भी एसआईआर हो रही है. तो राजनीतिक ढंग से चुनाव प्रक्रिया को ही संदिग्ध बनाने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं. वोट बैंक की राजनीति इसका सबसे बड़ा कारण है.

    यह हिंदू मुसलमान का विषय नहीं है,जो भी बिना नियमों का पालन किए हुए, बिना भारत की नागरिकता लिए हुए, भारत में रह रहा है, वह गैर भारतीय है इस पर राजनीतिक दलों के बीच सहमति होना चाहिए.

    बंगाल और असम जैसे राज्यों में तो हालात विस्फोटक हो गए हैं. घुसपैठ के कारण इन राज्यों में डेमोग्राफी बदल रही है. 

    घुसपैठ की समस्या के कारण बदलती डेमोग्राफी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कितना ख़तरा बन गई है. इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में लाल किले से देश को आगाह  किया. पीएम ने यह भी घोषणा की, कि इस पर नियंत्रण के लिए प्रशासकीय और कानूनी रूप से सक्षम डेमोग्राफी मिशन बनाया जा रहा है. जो समय सीमा में काम करेगा.

    राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा को केंद्रीय गृहमंत्री घुसपैठिए बचाओ यात्रा घोषित कर रहे हैं. राहुल गांधी का उद्देश्य पवित्र हो सकता है, लेकिन उनके आरोप पूरी तरह से अर्तार्किक लग रहे हैं. घुसपैठियों को बचाने के लिए वोट चोरी के आरोप इसलिए झूठे कहे जाएंगे, क्योंकि बीजेपी जब उभार पर थी राज्यों और केंद्र में पहली बार सत्ता में आई थी तब वहां कांग्रेस की सरकारें हुआ करती थीं. अगर वोट चोरी का उनका आरोप सही है, तो क्या कांग्रेस या उनके गठबंधन की सरकारों में वोट चोरी की गई है.

    राहुल गांधी के आरोप पूरी तरह से अवैधानिक और अराजक प्रतीत हो रहे हैं. जब एनआरसी लाया गया था, तब भी इसी तरह का अराजक विरोध किया गया था. घुसपैठियों को बचाने का कोई भी प्रयास आत्मघात साबित होगा. 

    भारत के साथ घुसपैठ के धोखे का मुकाबला केवल सरकार नहीं कर सकती. इसके लिए भारत के लोगों को अपने हितों की रक्षा के लिए खड़े होना पड़ेगा. यह हिंदू मुसलमान का विषय नहीं है. यह भारतीय और गैर भारतीय का विषय है. जो गैर भारतीय के साथ खड़ा है, उसके साथ देश के लोग खड़ा होना बंद कर देंगे, तभी समस्या का समाधान निकलना संभव होगा.