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पश्चिमी बंगाल : इस चुनावी हिंसा का ज़िम्मेदार कौन ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 27 Jul

सार

पंचायत चुनावों में 50 से अधिक लोग हिंसा के शिकार

janmat

विस्तार

भारत में पश्चिमी बंगाल ही एकमात्र राज्य है जहां हर स्तर के चुनावों में हिंसा का तांडव होता है। पंचायत चुनावों में इस बार 50 से अधिक लोग चुनावी हिंसा के शिकार हुए। इनमें 12 से अधिक मुस्लिम थे। आश्चर्य की बात यह है कि देश में लोकतंत्र की दुहाई देने वाले प्रतिपक्षी दलों ने अल्पसंख्यकों की हत्या पर रोष रंक जारी करना उचित  नहीं समझा। यही प्रतिपक्षी दल भाजपा के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों पर अत्याचार सहित दूसरे आरोपों को लेकर एकजुट होने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तो हिंसा प्रभावित मणिपुर भी गए, किन्तु बंगाल में हुई भीषण हिंसा पर एक शब्द तक नहीं बोले। उन्हें बंगाल में पंचायत चुनाव में लोकतंत्र की हत्या दिखाई नहीं दी। जबकि बंगाल में हुई हिंसा में बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की मौत हुई है। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सिर्फ इतना ही कहा कि बंगाल में लोकतंत्र नहीं है। कांग्रेस के फायरब्रांड नेता दिग्विजय सिंह ने कहा भयानक हुआ। डराने वाला है। 

गौरतलब है कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बावजूद हिंसा में एक भी मौत नहीं हुई । पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने पंचायत चुनाव में हुई हिंसा पर कहा, ‘मैंने जमीन पर जो देखा वह बहुत परेशान करने वाला है, वहां हिंसा और हत्याएं हो रही हैं। एक बात जो मैंने देखी है, वह यह है कि गरीब लोग ही मारे जाते हैं, हत्यारे भी गरीब हैं…हमें गरीबी को खत्म करना चाहिए, लेकिन इसके बजाय हम गरीबों को मार रहे हैं।’ 

बंगाल इसका हकदार नहीं है। भाजपा ने कहा, ‘अगर यह दृश्य किसी और राज्य में देखने को मिला होता, तो हाहाकार मच गया होता। अब मोहब्बत की दुकान खोलने वाले कहाँ है?। जितने लोग मारे गए हैं, इसमें राज्य के जिम्मेदार लोग शामिल हैं। फायरिंग, बमबारी, मतपेटी को जलाया गया। ये सारे नेता, जो हाथ पकड़-पकड़ कर राज्यों में खड़े होते हैं, वे कहां थे ? कहां हैं लालू प्रसाद यादव, कहां हैं नीतीश कुमार और कहां रहे राहुल गांधी? 

जिन बूथों पर सीआरपीएफ तैनात की गई थी, वहां कोई अप्रिय घटना हिंसा नहीं हुई है, ऐसा गृह मंत्रालय का दवा है । यदि माहौल बिगाडऩे की कोशिश की गई तो तुरंत शांति बहाल भी हुई । सारे संवेदनशील बूथों पर सीआरपीएफ को तैनात किया जाना चाहिए था, लेकिन संबंधित जिलों के डीएम ने अन्य बलों को तैनात करने की योजना बनाई। 

ध्यान से देखिए,बंगाल में पंचायत चुनाव का रिजल्ट आते ही हिंसा का दूसरा दौर शुरू हुआ। दक्षिण-24 परगना जिले के भंगोर में हिंसा में इंडियन सेकुलर फ्रंट के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई तो वहीं हाथ में गोली लगने से एडिशनल एसपी बुरी तरह से घायल हो गए। पूरा मामला काउंटिंग से जुड़ा हुआ है, जहां गिनती में पहले आईएसएफ कैंडिडेट आगे चल रहा था, लेकिन बाद में वह हार गया। इसी को लेकर शुरू हुए बवाल ने धीरे-धीरे बड़ी हिंसा का रूप ले लिया। 8 जुलाई को 74 हजार पंचायतों के लिए वोटिंग हुई थी, जहां कुछ मतदान केंद्र विवादित होने पर यहां दोबारा से वोटिंग करानी पड़ी थी। चुनाव के दौरान हर बूथ पर राज्य पुलिस के अलावा चार केंद्रीय बल के जवानों की तैनाती की गई थी। पश्चिमी बंगाल देश के चुनावी इतिहास में अनोखे रिकार्ड कायम कर रहा है। यह देश का ऐसा राज्य है जहां पंचायत स्तर पर चुनावी हिंसा को रोकने के लिए हाईकोर्ट के आदेश से अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई। अर्धसैनिक बलों की तैनाती का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरी ताकत से विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिल सकी। 

पश्चिमी बंगाल में चुनावी खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हजारों उम्मीदवार निर्विरोध विजयी हुए। डर के मारे लोगों ने पंचायत चुनाव लडऩे का नामांकन दाखिल नहीं किया। निर्विरोध ज्यादातर तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी जीते, हिंसा के डर से किसी ने नामांकन दाखिल नहीं किया। नामांकन वापस लेने की निर्धारित समय सीमा के बाद पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग के आंकड़े पुष्टि करते हैं कि तीनों स्तरों पर 73887 सीटों में से 7005 सीटों पर उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीत हासिल की है। यह कुल सीटों की संख्या का लगभग 9.48 प्रतिशत है। इनमें ज्यादातर ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं।

सबसे ज्यादा हिंसा के मामले उत्तर और दक्षिण 24 परगना के अलावा मुर्शिदाबाद और कूचबिहार से सामने आए हैं। कूचबिहार में तो टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उस वक्त हद ही कर दी जब मतपेटियां तक तोडऩे के बाद उसमें पानी डाला और कुछ में आग भी लगा दी। इसके साथ ही उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर में भी कमोबेश ऐसी ही घटनाएं देखने को मिलीं। विधानसभा चुनाव के दौरान भी पश्चिम बंगाल में 52 लोगों की जान गई थी। इस दौरान सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं की ही हत्या नहीं हुई, अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता भी इसमें शामिल थे। पश्चिम बंगाल में सीबीआई ने विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा के सिलसिले में 43 मामले दर्ज किए थे। सीबीआई ने ये मामले कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में दर्ज किए थे। विधानसभा और लोकसभा चुनावों के इतर पंचायत चुनावों में भी यहां की धरती पर खून की नदियां बहना आम बात रही है। साल 2013 और 2018 में गोलीबारी, बमबारी, आगजनी, पत्थरबाजी और शारीरिक अंगों को काटने की कई घटनाएं दर्ज की गई थीं। क्या यह पश्चिम बंगाल की नियति है या सरकारी तंत्र की विफलता। चुनाव आयोग या सरकार, किसी न किसी को इन मौतों की जिम्मेवारी लेनी होगी।