फ्रांस की स्टार्टअप इकाई मिस्ट्रल की कुछ चर्चा जरूर हो रही है मगर इसका कारण यह है कि इसमें माइक्रोसॉफ्ट ने निवेश किया है, चीन में होने वाले घटनाक्रम को नजरअंदाज कर दिया जाता है या इसे काफी कम महत्त्व दिया जाता है..!!
आगामी समय भारत के लिये जेनेरेटिव एआई (जेनएआई) में एकाधिकार की लड़ाई और अमेरिका में आर्टिफिशल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआई) के लिए चल रही होड़ पर केंद्रित रहेगा। बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है उसका जिक्र भी ज़रूरी है। फ्रांस की स्टार्टअप इकाई मिस्ट्रल की कुछ चर्चा जरूर हो रही है मगर इसका कारण यह है कि इसमें माइक्रोसॉफ्ट ने निवेश किया है। चीन में होने वाले घटनाक्रम को नजरअंदाज कर दिया जाता है या इसे काफी कम महत्त्व दिया जाता है।
चीन की तरफ कम ध्यान देना या बिल्कुल नहीं देना भूल है। इस बात के काफी सबूत मौजूद हैं कि चीन की कंपनियों को आधुनिक चिप एवं अन्य संसाधन नहीं देने की अमेरिकी सरकार की रणनीति सफल नहीं रही है। विशेषकर एआई और जेनएआई में चीन की प्रगति रोकने की अमेरिका की मंशा विफल होती दिख रही है। अत्याधुनिक एनवीडिया ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स (जीपीयू) चीन की तरफ कदम बढ़ा रही हैं। वे इसके लिए तस्करों या दूसरे देशों के ऐसे मध्यस्थों का सहारा ले रही हैं, जो अंतिम खरीदार के साथ लेन-देन छुपाने के लिए कागजी प्रक्रिया का सहारा लेते हैं।
अमेरिकी समाचारपत्र वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हालnही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि ब्रोकर चीन की तकनीक कंपनियों को दूसरे देशों में एनवीडिया की चिप के साथ क्लाउड सर्विस और कंप्यूटिंग पावर दे रहे हैं। इनकी मदद से चीन की कंपनियों को आधुनिक कंप्यूटिंग प्रणाली तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करने में मदद मिलती है वहीं, अमेरिकी प्रशासन इसे समझने को कोशिश नहीं कर रही है।
इस बीच, चीन की दूरसंचार एवं चिप निर्माता कंपनी हुआवे ने एटलस सुपरक्लस्टर का अनावरण किया, जिसका विकास विशेष रूप से जेनएआई तैयार करने वालों (डेवलपर) के लिए हुआ है। हुआवे का दावा है कि एआई सुपरक्लस्टर 1 लाख करोड़ से अधिक मानकों के साथ बुनियादी एआई मॉडलों के प्रशिक्षण कार्य में एनवीडिया जीपीयू से लैस किसी हार्डवेयर का मुकाबला कर सकती है। इतना ही नहीं, अमेरिकी पाबंदियों से बचने के लिए एनवीडिया स्वयं चीन के लिए एक एआई चिप तैयार कर रही है।
जहां तक संगठनों द्वारा जेनएआई मॉडल अपनाने की बात है तो एआई एनालिटिक्स डेवलपर एसएएस इंस्टीट्यूट और बाजार शोध कंपनी कोलमैन पार्क्स के अनुसार जेएनएआई के साथ आजमाइश करने में चीन की कंपनियां अपनी अमेरिकी समकक्ष से कहीं आगे थीं, हालांकि पूर्ण स्तर पर जेएनआई के क्रियान्वयन के मामले में वे (चीन की कंपनियां) पीछे थीं।
इस सर्वेक्षण पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि ये अभी शुरुआती दिन हैं और लगभग 1,600 कंपनियों का नमूना कोई बड़ा नहीं कहा जा सकता। जेनएआई में चीन के बढ़ते कदम का एक महत्त्वपूर्ण संकेत जिनेवा स्थित वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूआईपीओ) से मिलता है। डब्ल्यूआईपीओ के आंकड़ों के अनुसार चीन ने अमेरिका से छह गुना अधिक एआई-संबंधित आविष्कारों के पेटेंट के लिए आवेदन कर चुका है। भारत एआई में पेटेंट के लिए आवेदन करने में पांचवें स्थान पर है।
एआई और जेनएआई में चीन ने शोध एवं नवाचार कर न केवल अमेरिका के प्रयासों को धता बताया है बल्कि वह इस तकनीक में नाम कमाने में पश्चिमी देशों को भी पीछे छोड़ सकता है। कहा जा रहा है कि चीन में 50 से अधिक कंपनियां लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) और अन्य बुनियादी मॉडल तैयार कर रही हैं। इन कंपनियों में अलीबाबा और बायडू भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने एलएलएम विकसित किए हैं। इनके अलावा दर्जनों स्टार्टअप इकाइयां भी हैं, जिन्होंने आसानी से उपलब्ध ओपन सोर्स एलएलएम के लाभ उठाए हैं।
दूसरे देशों की तुलना में चीन के साथ एक अच्छी बात यह है कि वहां एआई ढांचा तेजी से बढ़ रहा है। शुरू में चीन भी एआई पर सिलिकन वैली की दिग्गज कंपनियों का अनुसरण करता था मगर अब उसने अपना मजबूत तंत्र तैयार कर लिया है। इसके अलावा, जेनएआई मॉडलों को प्रशिक्षण देने के लिए डेटा की भी उतनी जरूरत होती है जितनी आधुनिक एवं उच्च तकनीक वाली चिप की।
यहां पर चीन को एक और फायदा मिल जाता है। यह डिजिटल डेटा का सबसे बड़ा उत्पादक है। चीन के साथ तीसरा मजबूत पक्ष यह है कि इसकी बिजली उत्पादन क्षमता बेमिसाल है। ताप विद्युत और स्वच्छ ऊर्जा दोनों में इसका प्रदर्शन लाजवाब रहा है। जेएनआई मॉडलों के लिए बड़े पैमाने पर बिजली की आवश्यकता होती है, इसलिए चीन इस मामले में भी बाजी मार लेता है।
जेनएआई शोध में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए कितना मायने रखता है? यह कहना सरल है कि भारत को चीन की तकनीक कंपनियों को बुलाना चाहिए या कम से कम उन पर अंकुश हटा देना चाहिए और चीन के इंजीनियरों के लिए वीजा का इंतजाम (सोलर पैनल और वाहन उद्योग में) करना चाहिए, मगर यह एक सही तरीका नहीं होगा। एआई शोध और खासकर जेनएआई शोध अब भी कई संभावित जोखिमों से भरा पड़ा है।
अगर चीन के साथ इन खंडों में करीबी साझेदारी की जाती है तो इससे उसकी भारत में संवेदनशील जानकारियों तक पहुंच आसान हो सकती है। यह भी हो सकता है कि चीन की कंपनियां हमारे अति महत्त्वपूर्ण तंत्रों को हैक कर लें। फिलहाल तो भारतीय नियामकों एवं शोधकर्ताओं को चीन में होने वाले शोध पर बारीक नजर रखनी चाहिए और अपना सुरक्षा तंत्र पर्याप्त रूप से विकसित करने से पहले उन्हें अनुमति देने में हड़बड़ी नहीं दिखानी चाहिए।
सरकार देश में जेनएआई शोध को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं तैयार कर रही है। इस दिशा में चीन द्वारा उठाए गए कदमों का अध्ययन कर हम यह और आसानी से समझ सकते हैं कि अमेरिका और अन्य देशों में जेनएआई खंड में काम करने वाले दक्ष भारतीयों को बुला कर किस तरह शोध को बढ़ावा दिया जाए। हमें दीर्घ अवधि की नीति को ध्यान में रखते हुए हार्डवेयर क्षमता भी तैयार करने में आसानी होगी।
चीन ने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में हुए शोध एवं विकास कार्यों से सीख लेकर अपनी क्षमता विकसित की है। जहां तक भारत की बात है तो वह भी ऐसा कर सकता है। भारत अपनी सुरक्षा से समझौता किए बिना चीन में हुए बदलाव से नए विचार लेकर तकनीक और एआई और जेनएआई खंडों में प्रगति कर सकता है।