मध्यप्रदेश में कांग्रेस अब उत्तरप्रदेश के रास्ते पर चल पड़ी दिखाई दे रही है। उत्तरप्रदेश में पार्टी का ढांचा अब नहीं बचा है। दो-चार नेता ही कांग्रेस को कंधा लगाए हुए हैं। कभी गांधी परिवार का गढ़ अमेठी भी अब भाजपा का गढ़ बन गया है। विनाश काले विपरीत बुद्धि की कहावत चरितार्थ करते हुए मध्यप्रदेश में कमलनाथ कांग्रेस की आत्मा को लहूलुहान करने पर तुले हुए लगते हैं। कांग्रेस जनों को प्रोत्साहित करने की बजाय अहंकार से भरे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि जिन्हें भाजपा में जाना है जाएं। उन्हें अपनी कार तक उपलब्ध करा दूंगा।
‘चलो-चलो’ और ‘उतर जाएं सड़क पर’ के दंभ में 15 महीने में सरकार गवां चुकी कांग्रेस में अब संगठन भी रसातल की ओर पहुंचाया जा रहा है। कार्यकर्ता अनाथ तो नेता कड़क- नाथ बने हुए हैं। पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र धूल धूसरित हो चुका है। कोई भी कार्यकर्ता, नेता यदि पार्टी संगठन की कमियों को कहने की हिम्मत करता है तो उसे पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने की चुनौती दी जाती है। यह चुनौती कोई छोटे-मोटे नेता द्वारा नहीं बल्कि ऐसे नेता द्वारा दी जा रही है जो पार्टी का मसीहा होने का दावा करता है।
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— News Puran (@NewsPuran1) September 19, 2022
राजनीति में मेसेज महत्वपूर्ण होता है। परसेप्शन और मेसेज ही राजनीतिक स्वभाव और प्रकृति निर्धारित करता है। कार्यकर्ताओं की जब सुनवाई नहीं होती तो वह अपना असंतोष बैठकों में और उपलब्ध फोरम पर व्यक्त करने की कोशिश करता है। ऐसे अवसरों पर यदि पार्टी की कमान संभाल रहा वरिष्ठ नेता ही इस तरह की बात कहे कि पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में चले जाएं तो दशकों से पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ता की कैसी स्थिति बनती है यह केवल महसूस किया जा सकता है।
एक समर्पित कार्यकर्ता, नेता के लिए नहीं बल्कि संगठन के लिए काम करता है। संगठन में अगर कमी है, नेता में अगर कोई कमजोरी है तो उस पर बात उठाने को पार्टी के खिलाफ मानकर उसे इस तरह पार्टी छोड़ने की चुनौती देना संगठन की जड़ों में मट्ठा डालने जैसा है। यह मट्ठा वे लोग डाल रहे हैं जिन्होंने पार्टी की मलाई पूरे जीवन खाई है। आज भी उनकी इच्छा है कि पार्टी से मिलने वाली सत्ता की मलाई उनके अलावा किसी को भी नहीं मिलना चाहिए।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकालकर पार्टी को जनता और कार्यकर्ताओं से जोड़ने के लिए पसीना बहा रहे हैं तो मध्यप्रदेश में कार्यकर्ताओं को पार्टी छोड़ने की चुनौती दी जा रही है। कभी कांग्रेस देश की मुख्यधारा की पार्टी हुआ करती थी। केंद्र और राज्य में अधिकांश समय कांग्रेस की सरकार रहा करती थी। राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच राजनीतिक और विचारों में मतभेद स्वाभाविक हैं। अगर यह कहा जाए कि देश के कई राज्यों की सत्ता पर काबिज राजनीतिक दलों का डीएनए कांग्रेस का ही है तो गलत नहीं होगा। कार्यकर्ताओं को पार्टी छोड़ने की चुनौती देने की ऐसी ही प्रवृत्ति के कारण कांग्रेस के टूटने का एक लंबा इतिहास है।
शरद पवार, पीए संगमा, जगनमोहन रेड्डी और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने जब कांग्रेस छोड़ी थी तब भी ‘कड़क-नाथ’ कांग्रेसियों ने ऐसी ही चुनौती दी थी कि किसी के जाने से पार्टी खत्म नहीं होगी। कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं ने अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को जमीन पर ला दिया है। चाहे महाराष्ट्र हो बंगाल हो आंध्र प्रदेश हो सब जगह कांग्रेस से बाहर गए नेता ही कांग्रेस को नेस्तनाबूद कर आज अपनी पार्टियों को मजबूती के साथ चला रहे हैं और सत्ता पर काबिज हैं या सत्ता के दावेदार हैं।
कोई भी राजनीतिक दल किसी भी राज्य में एक दिन में समाप्त नहीं होता। समाप्ति के लिए लंबी प्रक्रिया होती है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के पतन के इतिहास का अगर अध्ययन किया जाए तो साफ दिखाई पड़ता है कि कैसे धीरे-धीरे गलत नेता और नीतियों के कारण पार्टियां जनविश्वास खो देती है।
कांग्रेस के आधारस्तंभ गांधी परिवार का तो उत्तरप्रदेश घर हुआ करता था। आज कांग्रेस के उत्तरप्रदेश में दो विधायक हैं। संजय गांधी और राजीव गांधी जहाँ से सांसद रहा करते थे, वह अमेठी क्षेत्र भी आज कांग्रेस के हाथ से निकल गया है। अमेठी कांग्रेस के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था। यूपी में कांग्रेस को लेकर सारी भावनाएं मिट सी गई हैं। शायद इसलिए राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' का केरल में 18 दिन और उत्तरप्रदेश में दो-चार दिन ही पड़ाव है।
ऐसा नहीं है कि कमलनाथ को कांग्रेस का इतिहास नहीं मालूम। इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे के रूप में माने जाने वाले कमलनाथ कांग्रेस को बहुत बारीकी से समझते हैं। इसके बाद भी मध्यप्रदेश में उनके द्वारा कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? राजनीतिक प्रेक्षक यह समझने के लिए मजबूर हैं कि ऐसे नेता प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं या स्वयं को मजबूत करना चाहते हैं?
उत्तर भारत में कांग्रेस अपने अस्तित्व के गहरे संकट के दौर से गुजर रही है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में ही कांग्रेस का थोड़ा बहुत जनाधार बचा माना जा सकता है। कार्यकर्ताओं के साथ इस तरह का व्यवहार उस पर भी लगातार चोट कर रहा है। कांग्रेसी नेता चाटुकारिता और आत्ममुग्धता के शिखर पर पहुंच चुके हैं। गौरवशाली इतिहास से पल्लवित नेता वर्तमान में या तो जीना नहीं चाहते या पुरानी पुण्याई और कमाई इतनी ज्यादा है कि अहंकार कम ही नहीं हो रहा है।
कभी कोई नेता सच बोल देता है तो उसे खलनायक के रूप में देखा जाता है। जबकि सच बोलने वाला तो संगठन के लिए नायक होता है। झूठ और फरेब पर कभी संगठन बहुत लंबे समय तक सरवाइव नहीं करते। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लक्ष्मण सिंह सच बोलने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' को इंगित करते हुए कहा है कि पैदल चलने से पार्टी मजबूत नहीं होती और ना ही प्रधानमंत्री की कुर्सी मिलती है।
इस तरह की सच्चाई से भरी हुई बात अगर कोई नेता कहता है तो उसको गहराई से समझने और उस पर मंथन करने की जरूरत होती है। संगठन को मजबूत करने के लिए जरूरी कदम उठाने की जरूरत होती है ना कि संबंधित नेता को खलनायक बनाने की।
कड़क-नाथ बनकर संगठन और सत्ता नहीं चलती। मध्यप्रदेश में तो हर नेता को शिवराज सिंह चौहान से सीख लेना चाहिए। इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी जनता के साथ आत्मीयता और मेल-मुलाकात में आम नेता जैसा व्यवहार उनकी सबसे बड़ी पूंजी मानी जाती है। जब कांग्रेस का मुकाबला ऐसे नेता से हो तब संगठन में शिष्टता और सहजता की कांग्रेस को ज्यादा जरूरत है।