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‘टारगेट किलिंग’ अमेरिका का विशेषाधिकार क्यों?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sun , 27 Jul

सार

फरवरी, 2013 में अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लीक किए गए एक श्वेतपत्र में टारगेट किलिंग के लिए कानूनी ढांचे का विस्तृत विवरण दिया गया था।

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विस्तार

“टारगेट कीलिंग” आजकल चर्चा में है। सबसे अधिक उपयोग करने वाले देश अमेरिका को अपने क़ानून मंत्रालय से सबसे पहले ख़ुद का रिव्यू करने को कहना चाहिए कि “टारगेट कीलिंग का सर्वाधिकार केवल उसके पास ही सुरक्षित क्यों हो?”

टारगेट किलिंग का सबसे बड़ा उदाहरण नेवी सील के उस छापे से समझा जा सकता है, जिसमें ओसामा बिन लादेन मारा गया था। व्हाइट हाउस का तर्क था कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 में आत्मरक्षा के लिए बल प्रयोग के उपयोग का अधिकार केवल अमेरिका के पास है। अमेरिका अलकायदा, तालिबान या आइसिस सरगनाओं की टारगेट किलिंग इसलिए कर रहा है , क्योंकि अमेरिका के विरुद्ध ये लोग साजिश करते दिखते हैं।

फरवरी, 2013 में अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लीक किए गए एक श्वेतपत्र में टारगेट किलिंग के लिए कानूनी ढांचे का विस्तृत विवरण दिया गया था। यों कहिए कि लंबे समय तक अमेरिकी प्रशासन ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया था कि व्हाइट हाउस कितने लोगों को आत्मरक्षा का अधिकार के नाम पर मरवा चुका है। यूएन में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत रह चुके फिलिप अल्स्टन, आत्मरक्षा के अमेरिकी दावों की निंदा करते हुए कहते हैं कि यदि अन्य देश ऐसा करते हैं, तो अमेरिका के न्याय विभाग को आपत्ति होती है, लेकिन अमेरिका ने ‘कहीं भी, कभी भी लोगों को मार डालो’ का अधिकार प्राप्त कर लिया है। यह अराजक स्थिति है।

कोलंबिया लॉ स्कूल के स्कॉलर मैथ्यू सी. वैक्समैन ने भी बयान दिया कि बिन लादेन को मारने के लिए अमेरिकी सील कमांडो को भेजना किसी देश की संप्रभुता का उल्लंघन ही था। अमेरिकी सरकार अपने अधिकारों की रक्षा अपने भूभाग पर करे, तो बात समझ में आती है। मगर, सहमति के बिना विदेशी धरती पर अपने बल का उपयोग करना कहां का इंसाफ है? न्यू अमेरिका फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि अपने कार्यकाल के पहले दो वर्षों में, तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राष्ट्रपति बुश की तुलना में चार गुना अधिक टारगेट किलिंग को अधिकृत किया था। रिपोर्ट में दावा किया गया कि 2009 के बाद से लगभग 291 हमले किए गए हैं, जिनमें जनवरी, 2013 तक 2,264 कथित आतंकवादी ड्रोन के ज़रिये अथवा अन्य टारगेट किलिंग में मारे गए।

सीआईए और डीओडी (डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस) टारगेट किलिंग जैसे ऑपरेशन पाकिस्तान-अफ़ग़ान सीमा के अलावा यमन, इराक़, सीरिया और लीबिया में भी चलाते रहे। पेंटागन ‘किल एंड कैप्चर’ कार्यक्रम में कितना आगे रहा है, उसके दस्तावेज़ों को सही से खंगालने पर स्पष्ट हो जाता है। 2009 में ‘किल एंड कैप्चर’ कार्यक्रम की भेंट 675 लोग चढ़ गये, यह संख्या 2011 में बढ़कर 2200 पर पहुंच चुकी थी। इंटरनेशन सिक्योरिटी असिस्टेंट फोर्स (आईएसएएफ) के कमांडर जनरल जार्ज अलेन कहते हैं कि जैसे-जैसे परंपरागत फोर्स की संख्या कम होगी, टेक्नोलॉजी की मदद से टारगेट किलिंग में  इज़ाफे की संभावना बढ़ेगी।

सीआईए ने नवंबर, 2011 से जनवरी, 2012 तक पाकिस्तान में ड्रोन हमले पर रोक लगा दी, क्योंकि इन हमलों से द्विपक्षीय संबंध सहज नहीं रह गये थे। अप्रैल, 2012 में पाकिस्तानी संसद ने सीमा पर अमेरिकी ड्रोन हमलों को समाप्त करने की मांग के लिए सर्वसम्मति से मतदान किया। अमेरिका 10 साल बाद भी सुधरा नहीं। टारगेट किलिंग के नाम पर मार्च, 2023 में यमन के मरीब ज़िले में अब्देल अल अजीज़ अदनानी और सीनियर अल क़ायदा सरगना हमद बिन अल तमीमी को यूएस फोर्स ने मार गिराया था। 1977 में पारित जेनेवा कन्वेंशन के तहत टारगेट किलिंग को युद्ध अपराध की श्रेणी में लाया गया था। मगर, इसे मानता कौन है? रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, तुर्की, सउदी अरब, चीन जैसे दुनिया के चुनींदा देशों से कोई पूछे कि आतंकवाद उन्मूलन के नाम पर कितने लोगों की हत्याएं कराने के ऑर्डर उनकी सरकारों ने दिये हैं। आपको अनगिनत उदाहरण मिलेंगे। इस्राइली प्रधानमंत्री अरियल शेरोन ने एक समय जार्ज बुश को लिखित आश्वासन दिया था कि यासिर अराफात की हत्या नहीं करवायेंगे। अराफात का मरना भी रहस्य था। बाद के वर्षों में हमास के कई नेता टारगेट कीलिंग के शिकार होते रहे। आतंकवाद के सफाये के नाम पर जो कुछ ग़लत-सही होता रहा, संयुक्त राष्ट्र महासभा तक में चुप्पी साध ली जाती।

यदि अमेरिका की तरह भारत ने भी संसद में ‘टारगेट कीलिंग’ क़ानून पास करवाया होता, तो आज उसे जस्टिन ट्रूडो और जो बाइडेन प्रशासन को जवाब देने की नौबत नहीं आती। भारत का विदेश मंत्रालय तब बोल सकता था कि अमेरिका सबसे पहले अपने बहत्तर छेदों को देखे, फ़िर बात करे। भारत के विरुद्ध अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ाने में जस्टिन ट्रूडो और जो बाइडेन बराबर के भागीदार हैं।

जो बाइडेन की रंगभेद नीति का ही नमूना है कि वो जस्टिन ट्रूडो को भारत के विरुद्ध ईंधन मुहैया करा रहे हैं। अमेरिका के क़ानून मंत्रालय को सबसे पहले ख़ुद का रिव्यू करना चाहिए कि टारगेट कीलिंग का सर्वाधिकार केवल उसके पास ही सुरक्षित क्यों हो?