महंगाई पर मदरसे की खबर भारी पड़ रही है, रिटेल महंगाई 8 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। दूध के दाम बढ़ने की खबर अब छोटी हो गई है। खाने की थाली में महंगाई का असर साफ साफ दिखाई पड़ रहा है| खाने-पीने की चीज़ों के लगातार बढ़ रहे दाम पर सरकार न तो कुछ बोल रही है ना कुछ कर रही है..!
जनता के पास बर्दाश्त करने के अलावा रास्ता क्या है? अन्याय सहन करने का अगर कोई अंतरराष्ट्रीय सम्मान हो तो वह भारतीयों को ही मिलना चाहिए| अन्याय सहते रहना जैसे उनका स्वभाव बन गया है| महंगाई पर अदालतों में भी सुनवाई नहीं होती| आज तक महंगाई को लेकर कोई मुकदमा अदालतों में नहीं सुना गया है| लेकिन अब समय आ गया है| क्योंकि सरकारें महंगाई से मुंह मोड़े हुए हैं| धर्म और संप्रदाय के नशे का आम लोगों को टोटका और ताबीज पहनाया गया है|
लोकतंत्र में जनता की अदालत 5 साल में एक बार अपना फैसला सुनाती है, फिर उसके हाथ में भुगतने के अलावा कुछ भी नहीं रह जाता| देश की सबसे बड़ी जनता की अदालत में चुनाव के समय कोई नहीं कहता कि परिस्थितियां ऐसी हैं कि चीजों के दाम बढ़ेंगे, महंगाई बढ़ेगी| उस समय तो हर नेता यही कहता है कि महंगाई कम करेंगे| एक बार सत्ता मिलने के बाद बढ़ती महंगाई ही शायद राजनीति की कमाई बन जाती है|
पेट्रोल में आग लगी हुई है, डीजल से धुआं निकल रहा है, अब तो खाने पीने के सामानों के दाम आसमान छू रहे हैं| रिटेल महंगाई आठ साल में सबसे ऊंचे स्तर 7.79% पर पहुंच गई है| खाद्य तेल, सब्जी, मसाले, घरेलू सामान, ईंधन, बिजली और ट्रांसपोर्ट सब की दरें बढ़ गई हैं|
जिन चीजों के दाम बढ़ जाते हैं फिर उनके कम होने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता| आम लोगों को कैसे लूटा जा रहा है, इसका नमूना देखिए- सामानों की मात्रा कम करके दाम वही रखा जा रहा है| पहले 100 ग्राम का पैकेट जिस कीमत में आता था उसी कीमत में आज 70 ग्राम मिल रहा है|
महंगाई के मामले में मध्य प्रदेश पश्चिम बंगाल के बाद दूसरे नंबर पर है| मध्यप्रदेश की सरकार को ओबीसी आरक्षण के लाभ हानि के राजनीतिक गणित से फुर्सत ही नहीं है| जिस प्रदेश में एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे हो| खाने-पीने के सामानों में बढ़ती महंगाई गरीबों को कितना त्रस्त करती है, उसका अनुमान ही लगाया जा सकता है|
इस पर तो कोई सब्सिडी नहीं है, एक ही दाम पर गरीब और अमीर को सामान खरीदना पड़ता है| जिसकी कमाई है वह तो महंगाई से निपट सकता है| लेकिन जिस की कमाई ही नहीं है उसके लिए तो महंगाई जानलेवा सिद्ध हो रही है| मध्यप्रदेश में नई शराब दुकानों के ठेकों के बाद शराब की कीमतें कम हो गई हैं|
देसी विदेशी शराब अब एक ही जगह मिलने लगी है| सांची का दूध महंगा हो गया है| भीषण गर्मी में ठंडक के लिए आम लोग लस्सी और छाछ पी लेते थे, इनको भी महंगा कर दिया गया है| अब गरीब की पहुंच से छाछ भी दूर हो जाएगी| अभी कुछ दिन पहले ही ₹4 प्रति लीटर साँची दूध के दाम बढ़ा दिए गये थे| महंगा दूध बच्चों का निवाला छीनने जैसा है|
महंगाई के कारण परिवार और समाज के रिश्ते भी बिखर रहे हैं| आजकल परिवारों में महंगाई के कारण गेटटुगेदर भी कम हो गया है| शादी विवाह के कार्यक्रम भी लोग सीमित कर रहे हैं| पढ़ाई लिखाई और दवाई भी महंगी हो रही है| दवाओं के दाम तेजी से बढ़े हैं| मिडिल क्लास तो महंगाई से बीमार सा हो गया है|
सरकारों और सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को महंगाई से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता| क्योंकि उन्हें महंगाई के अनुपात में महंगाई भत्ता मंजूर हो जाता है| जिन्हें कोई भत्ता नहीं मिलता महंगाई उनकी कमर तोड़ रही है| मध्य प्रदेश सरकार ने तो सेवानिवृत्त कर्मचारियों को महंगाई भत्ता भी नहीं दिया है| सरकारें धन लुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ रही हैं|
लोकतंत्र की यह त्रासदी है कि जब लोग विपक्ष में होते हैं तो महंगाई के खिलाफ आंदोलन करते हैं, जैसे ही सरकार में आ जाते हैं महंगाई उनके लिए कोई मुद्दा नहीं होती| बढ़ती महंगाई में ईमानदारी की कमाई कम पड़ती जा रही है| आज देश को खतरा ना दूसरे देश से है ना आतंक से है| बल्कि खतरा महंगाई से बढ़ते जनाक्रोश से है| हो सकता है महंगाई कम करना सरकारों के बस में ना हो|
राजनेताओं पर महंगाई का ठीकरा इसलिए फोड़ा जाता है क्योंकि जब वह जनता की अदालत में आते हैं, तब वास्तविकता और देश की अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ भी नहीं बताते हैं| इसके विपरीत झूठे वादे और प्रलोभन देकर सत्ता तक पहुंचने का काम करते हैं| इसीलिए उनको महंगाई के लिए दोषी माना जाता है| अगर जनता के सामने देश या राज्य की आर्थिक स्थिति सही स्वरूप में रखी जाए तो महंगाई बढ़ने के अगर कोई वाजिब और वास्तविक कारण है तो उसे जनता निश्चित रूप से स्वीकार करेगी|
केंद्र और राज्य सरकारें सबक भी लेने को तैयार नहीं दिखती हैं| हमारे पड़ोसी मुल्कों में महंगाई, बेकारी और कर्जों के कारण जो हालात बने हैं, उससे भी हम सीखने को तैयार नहीं हैं| धर्म और संप्रदाय का नशा कितने समय तक लोगों को महंगाई से आंख मूंदने के लिए मजबूर कर सकेगा? आज चारों तरफ धार्मिक विवाद खड़े हुए हैं या खड़े किए जा रहे हैं|
लोकतांत्रिक सरकारों में यह कैसी व्यवस्था है कि अमीर बढ़ते जा रहे हैं| गरीब और गरीब होते जा रहे हैं| पीने के पानी के लिए भी लोग तरस रहे हैं, बैठकों में जनता के पैसे से मिनरल वाटर पिया जा रहा है| बढ़ती हुई महंगाई और घटती हुई कमाई से देश में कैंसे हालात बन रहे हैं?
खाद्य तेल जिस तेजी से महंगा हुआ है उसका रसोई पर असर साफ साफ देखा जा सकता है| आज इंसान सस्ते और चीजें महंगी हो गई हैं| किसी ने कहा है “सरकार सिर्फ कागज पर करती है कमाल: महंगाई ने जीवन को कर दिया है बेहाल” जीना है तो जिए जा रहे हैं, महंगाई के घूँट पिए जा रहे हैं|
जैसे चुनाव करीब आने लगेंगे फिर पेट्रोल डीजल के दाम कम होने लगेंगे| महंगाई थोड़ी गिरती दिखेगी| चुनाव परिणाम आए कि फिर सब चीजों के दाम बढ़ने लगेंगे| कोई भी धंधा इतना खुलेआम नहीं होता जितना शायद राजनीति होती है| वोट लेना हो तो महंगाई कम करेंगे, सत्ता मिल गई तो महंगाई सुरसा की गति से बढ़ने लगेगी|