आज़ाद भारत : स्वर्णिम भविष्य की ओर
P अतुल विनोद
भारत की वर्तमान स्थिति बहुत अच्छी नहीं तो बहुत खराब भी नहीं है| देश धीरे ही सही लेकिन अपने मकसद की तरफ आगे बढ़ रहा है| हिन्दुस्तान ने भौतिक विकास के मामले में काल और परिस्थितियों के मुताबिक ठीक-ठाक प्रगति की है|
भले ही हम बाहरी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में कुछ पीछे हैं लेकिन आंतरिक संसाधनों के विकास में इस देश में सदियों पहले ही अन्य देशों को पीछे कर दिया था|
यदि 1000 साल का गुलामी का काला इतिहास न रहा होता, तो देश की आत्मविद्या और आध्यात्मिकता का विकास अपने चरम पर होता|
कई लोगों को भारत के विश्व गुरु होने के दावे पर हंसी आती है| सोने की चिड़िया और विश्वगुरु होने जैसी बातें विकासवादियों को रास नहीं आती| दरअसल ये उनके आत्मविश्वास की कमी है| उनके अंदर अपने देश की माटी के प्रति इतनी श्रद्धा नहीं कि यहां की मिट्टी में मौजूद धर्म, अध्यात्म और समृद्ध संसाधन की खुशबू ले सकें|
आजादी की वर्षगांठ पर एक बार फिर हमें अपने अंदर के स्वाभिमान को पहचानने की जरूरत है| कुछ देशों ने हमसे ज्यादा विकास कर लिया तब भी हीनता की ग्रंथि पालने की जरूरत नहीं है|
कोई भी देश टेक्नोलॉजी के थोड़े-बहुत विकास से अपने आप को महान और हमें हीन साबित नहीं कर सकता जब तक कि हमारे अंदर का स्वाभिमान जीवित है|
हम खुद से प्रेम नहीं करेंगे तब तक हमें अपनी मिट्टी,सभ्यता और संस्कृति से प्रेम नहीं होगा|
छद्म आधुनिक आडंबर ओढ़ लेने से हमारे अंदर का पौरुष जागृत नहीं होगा|
भारत मानवीयता का उद्गम स्थल है| क्षमा, करुणा, कृतज्ञता, दया, शुद्धता, सहृदयता,सद्भाव, सहजता, सरलता, समता जैसी शक्तियां देने वाला भारत ही है|
ये वही देश है जहां के मनुष्य में सबसे पहले अंतर्ज्ञान पैदा हुआ था| ये वही भूमि है जहां मानव के अंदर आत्मा और परमात्मा की जिज्ञासा के अंकुर फूटे थे|
ये वही देश है जहां धर्म और दर्शन ने सत्य की तह में जाकर अनुभूति के साथ चरम स्थान हासिल किया था|
हमारा देश धर्म, दर्शन, नीति, प्रेम और सद्भाव का केंद्र है|
आक्रमण, गुलामी, छल कपट के अनेक दौर देखने के बाद भी हम दृढ़ता के साथ पूरी दुनिया के साथ खड़े हुए हैं|
जब यूनान अस्तित्व में नहीं था, जब रोम का भविष्य अंधकार में था, जब यूरोप के निवासी घने जंगलों में छिपे रहते थे, तब भारत आंतरिक उन्नति कर रहा था|
पूरे संसार को उच्चता का भाव देने वाला भारत भावनाओं का समुंदर है| पूरी दुनिया की धर्म-नदियां भारत के सनातन धर्म-समुद्र से निकलती है|
भारत की हिंदू जाति ने कभी किसी राष्ट्र पर आक्रमण नहीं किया| ताकत में मदमस्त होकर किसी का दमन नहीं किया, फिर भी ये जाति नष्ट नहीं हुई| हिंदुस्तान की मूल हिन्दू जाति भले ही आज कुछ धर्म संप्रदायों में बट गई हो लेकिन सबकी रगों में खून उस जाति का ही है|
इस दुनिया में न जाने कितने राष्ट्र बेहद तेजी से उठे लेकिन बाद में मिट्टी में मिल गये| हमारा देश जीवित रहा, खड़ा रहा, गौरवान्वित हुआ, क्योंकि हमारे देश के मूल में धर्म है वो धर्म जो समभाव की बात करता है, वो धर्म जो विश्व बंधुत्व की बात करता है|
बुद्धिजीवियों के द्वारा ,लोक परलोक की बातें करने वाले, विरक्ति, वैराग्य, त्याग और तपस्या की बात करने वाले, हम लोग, ईश्वर और देवी-देवताओं में विश्वास करने वाले, मान्यताओं और परंपराओं को तवज्जो देने वाले हम लोग, आदर सेवा और भक्ति के राह पर चलने वाले हम लोग भले दकियानूसी, कूप मंडूक और मूढ़ कहे जाएँ| लेकिन यही हमारी रीढ़ है| इन्ही के बल पर हम टिके हुए हैं|
जिसने धर्म और संस्कृति की मान्यताओं के पीछे के विज्ञान को नहीं समझा, जिसने भारत की सभ्यता के मूल को नहीं जाना, वही यहां के रीति रिवाज और संस्कृति को ढकोसला बता सकता है|
जब तक धर्म के पीछे के विज्ञान को समझने की चेतना विकसित नहीं होगी लोग धर्म को कोसते रहेंगे|
इस देश के लोगों को याद रखना होगा कि उन्नति, तरक्की और संपन्नता इस देश का लक्ष्य नहीं है, देश का लक्ष्य संपन्नता को माध्यम बनाकर धर्म का साम्राज्य स्थापित करना है|
हमारे देश के मूल में मनुष्य जाति के कल्याण का भाव छुपा हुआ है| यदि हम किसी धर्म, संप्रदाय या मत का विरोध करते हैं, तो सिर्फ इसलिए कि वो राष्ट्र, जन्मभूमि और राष्ट्रीयता से हटने की कोशिश कर रहा होगा|
जो धर्म, मत, संप्रदाय इस देश की मूल भावना का पोषण करेगा उसे कभी भी लानत या हिकारत नही मिलेगी|
क्योंकि हमारे देश में राष्ट्र सर्वोपरि है, जननी, जन्मभूमि स्वर्ग से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है|
हमारी अंतर्दृष्टि का विकास सिर्फ आत्म कल्याण के लिए नहीं हुआ, हमारी अंतर्दृष्टि का विकास इस धरती को श्रेष्ठ मार्ग पर चलाने के लिए हुआ है|
हम त्याग के रास्ते पर चलने वाले लोग हैं| शक्ति और सोने की चाह में अंधे हुए देश ऊपर उठे तो नीचे भी भरभरा कर गिर गए| हम ना तो शक्ति चाहते हैं ना स्वर्ण| हमारी इच्छा शांति की है और शांति के लिए युद्ध लड़ने से भी परहेज नहीं है|
हमारे देश की आकांक्षा हमें मिले आध्यात्मिक अमृत को जन-जन तक पहुंचाने की है|
अतीत को भूलने से भविष्य नहीं संवरता| अतीत गौरवशाली है, कुरितियों के कुछ दाग हैं लेकिन वो वक्त ने लगा दिए अशिक्षा और दमन ने उभार दिए|
भारत का मूल सनातन धर्म छुआछूत, जात-पात और अंधविश्वास से परे है, ये कुरीतियाँ कुछ सौ वर्षों में पैदा हुयी, इन्हें भी जद से हटाना होगा| इनसे उपर उठे बगैर भारत की आत्मा को नहीं छुआ जा सकता|
तुच्छ, भेदभाव से उपर उठकर ही हम वास्तविक तरक्की कर सकते हैं| छोटे-छोटे लाभ के लिए धर्म को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना देश के साथ सबसे बड़ा द्रोह है| जाति- पाति से हटकर भारत की कुछ प्रथाएं अजीब लग सकती है, लेकिन उन्हीं प्रथाओं ने भारत की विविधता को एकता के सूत्र में पिरोया है|
भारत का कोई भी नागरिक साधारण व्यक्ति नहीं है अमृत का पुत्र है| जिस दिन वह अपने देश की संपदा को पहचान जाएगा उस दिन उसके अंदर का अमृत्व प्रकट हो जाएगा|
हम जीवन को समग्रता के साथ जीने वाली जाति हैं, जो 70,80 साल के शारीरिक जीवन से परे अनंत काल का है| हम जल्दबाजी में नहीं जीते, क्योंकि हमारे सामने विराट जीवन है, जो इस जन्म में नही भोगा अगले जन्म में मिल जायेगा| इसलिए हमारे अंदर कुछ पाने की अंधी होड़ नहीं है| हमारी प्यास इस जगत के पानी पीने से नहीं मिलती| हमारी प्यास उस अमृत बूंद को पीने की है जिससे कंठ की प्यास हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाती है|
भारत के अध्यात्मिक तत्वों को समझना इतना आसान नहीं| यहां का दर्शन विराट है| हम नाचने गाने वाले लोग हैं, क्यूंकि हम जानते हैं कि ये जीवन एक नृत्य है, हम अभिनेता और परमात्मा नटराज|
हम सनातन के खोजी हैं क्यूंकि जो सनातन नहीं वो मिट जाना है| यहाँ पति-पत्नी भी एक दुसरे में सनातन यात्री खोज लेते हैं, इसलिए उन्हें रिश्ते बार बार बदलने की ज़रूरत नहीं पडती|
युग बदलने के साथ अब हम बदल चुके हैं| हम प्रगति पर भरोसा करते हैं, भविष्य की तरफ देखते हैं, और परिवर्तन को स्वीकार करते हैं| कुछ काल को छोड़कर अपने पुरातन अतीत को शिरोधार्य कर, नई परिस्थितियों में खुद को ढालकर, हम भविष्य को स्वर्णिम बनाने की दिशा में चल पड़े हैं|