कैसे बनते हैं रावण? ...रावण की त्रैलोक्य विजय -85


स्टोरी हाइलाइट्स

कैसे बनते हैं रावण--------------------------------------रावण की त्रैलोक्य विजय -85 how-ravana-is-made-ravanas-trialokya-vijay-85

कैसे बनते हैं रावण रावण की त्रैलोक्य विजय -85 यह कथा, स्वार्थ के लिये किसी परिवार के सौहार्द को समाप्त करने के षड़यंत्र पर प्रकाश डालती है। सत्ता लोलुप, नीति, सिद्धांत और समाज विरोधी तत्व कैसे, किसी का मानसिक शोषण करने में सफल हो जाते हैं। किसी घटना से इतिहास कैसे बदलता है। समाज और राष्ट्र कैसे बर्बाद हो जाते हैं। श्री विष्णु हरि ने माली का वध कर दिया था। सुमाली और माल्यवान अफ्रीका (पाताल) में भूमिगत हो गये। श्री हरि का त्रिलोकी नाथ के नाम से डंका बजता था। उनकी प्रसिद्धि यह थी कि वे युद्ध में शत्रु को जीवित नहीं छोड़ते थे। विश्व की दैत्य और दानव शक्तियां उनसे डरतीं थीं। कांपती थी। सुमाली ने सुना कि उसके नाती रावण, कुंभकर्ण और विभीषण,तपस्या करके गोआ (गौकर्ण ) से ऋषि विश्रवा के आश्रम में लौट आये हैं। ब्रह्मा जी ने उनको वरदान भी दे दिया है। वह परिवार और मंत्रियों, सचिवों सहित रावण से मिलने पहुंच गया। पाताल से बाहर आ गया। उसने दो ही बातों पर रावण को भरना शुरू किया। यह कि कुबेर जिस लंका में रहता है, वह हमारी ही है। और यदि तुम इसको कुबेर से छीन लो तो -तुम ही राजा होगे। मां तो रावण के कान पहले से ही भरती आ रही थी। हमेशा कुबेर के वैभव और अपनी गरीबी की तुलना करती रहती। रावण की त्रैलोक्य विजय -85 तब तक रावण भी ऐसा नहीं था। एक बार तो उसने सुमाली को साफ शब्दों में समझा दिया! मातामह, कुबेर मेरे बडे़ भाई हैं। भविष्य में ऐसा कभी सोचना भी नहीं। कहना तो अलग। वह मां से भी कह देता! मां क्या लगी रहती हो, हमेशा कि भाई के पास पुष्पक विमान है।मैं भी अपने पुरुषार्थ से उनसे अधिक सम्पन्न होकर बता दूंगा। सुमाली की छाती में धक्का लगता। वह चुप रह जाता। किंतु रावण का मातुल प्रहस्त भी कम नहीं था। वह योजनानुसार रावण के कान भरता ही रहता। एक तरह से इन सबका एक दल (गैंग) बन चुका था। लंका के आसपास के छोटे,छोटे द्वीप लूट कर या कहें कि जीतकर रावण का मनोबल बढा़ते रहते थे। मनोवैज्ञानिक रूप से रावण के कान भरते भरते एक दिन प्रहस्त ने कहा -रावण तुमको अपने मातामह से ऐसा नहीं कहना चाहिए था। समान शक्ति वाले वीरों में ऐसी बातों से निर्वाह नहीं होता। भाईचारा टिकता नहीं । फिर प्रहस्त ने एक कूटनीतिक और बेहद कुटिल उदाहरण प्रस्तुत किया। बोला -रावण तुम जानते हो! ऋषि कश्यप की पत्नियां दिति और अदिति सगी बहनें हैं। दिति के पुत्र दैत्य हैं। अदिति के पुत्र देवगण हैं, जो त्रैलोक्य के स्वामी हैं। जबकि दैत्य और देव ऋषि कश्यप के ही औरस पुत्र हैं। अर्थात् तुम्हारे (रावण) और कुबेर की तरह ऋषि विश्रवा के सगे पुत्र। सुमाली आदि श्री विष्णु हरि से पराजित हुए थे। अतः प्रहस्त ने इसी बिंदु को कुरेदा। रावण! तुमको पता है कि पहले पर्वत, वन और समुद्रों सहित यह सारी पृथ्वी दैत्यों के ही अधिकार में थी। क्योंकि वे बडे़ प्रभावशाली थे। किंतु सर्व शक्तिशाली विष्णु ने युद्ध में दैत्यों को मारकर यह अक्षय राज्य देवताओं के अधिकार में दे दिया। प्रहस्त,रावण को अप्रत्यक्ष रूप से भाई कुबेर के विरुद्ध भड़का रहा था। प्रहस्त बोला "इस तरह का विपरीत आचरण केवल आप ही नहीं करोगे। देवताओं और असुरों ने भी पहले इस नीति से काम लिया है। फिर स्नेह से कहा! हाथ पकड़ कर.! मेरी बात मान लो| रावण से जो बात सुमाली पहले से कह रहा था, किंतु मनवा नहीं पा रहा था। मां भी कह कह कर थक चुकी थी। दैत्यों और देवों के इस उदाहरण से यह सलाह अब रावण के भेजे में घुस गई। वह दो घडी़ चुप रहा। फिर बोला.! मातुल, आप जैसा उचित समझें। मैं वैसा ही करूंगा। इसके बाद की कथा हम पहले बता ही चुके हैं। मित्रो, आज की इस कथा का बाल्मीक रामायण के उत्तरकांड के सर्ग 10 और 11 में रोचक वर्णन किया गया है। किंतु हमने संबंधित श्लोकों को लिखना उचित नहीं समझा।कल हम चर्चा करेंगे कि कुबेर के एक परामर्श पर रावण कैसे प्रतिशोधी बन गया। धन्यवाद।