कर्म-दण्ड से कोई नहीं बच सकता -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

कर्म-दण्ड से कोई नहीं बच सकता- यह बहुत गूढ़ विषय है -दिनेश मालवीय भारत के धर्म और अध्यात्म दर्शन में इस बात को बहुत स्पष्ट रूप से जोर देकर कहा है कि व्यक्ति को कोई भी कर्म बहुत सोच-समझकर करना चाहिए. हर कर्म अपना परिणाम देता है. यदि आप कोई पाप-कर्म करते हैं, तो आपको उसका दण्ड न मिले यह मुमकिन ही नहीं है. कर्म की गति बहुत कठिन है. यह इतना सूक्ष्म विषय है कि इसे अनुभवी लोग ही समझ सकते हैं. हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण आते हैं, कि कोई व्यक्ति निर्दोष होते हुए भी दण्ड पा जाता है. वह अभी निर्दोष भले ही हो, लेकिन उसने कभी न कभी तो ऐसा काम किया ही है, जिसका दण्ड उसे अब मिल रहा है. अच्छे और बुरे दोनों कर्म जन्म-जन्मान्तर तक पीछा करते हैं और उचित परिणाम देकर ही मानते हैं. इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए अनेक उदाहरण दिए गये हैं. इनमे से सदन कसाई का उदाहरण बहुत सुंदर और प्रेरक है. इससे जहाँ इस बात की प्रेरणा मिलती है कि व्यक्ति को जानबूझकर कोई गलत काम नहीं करना चाहिए, वहीँ यह भी शिक्षा मिलती है कि भगवान सिर्फ भाव के भूखे हैं. उन्हें सिर्फ निश्छल प्रेम चाहिए. पुराने समय में सदन नाम का एक कसाई था. वह भगवान का अनन्य भक्त था. कसाई होते हुए भी उसका मन दया से भरा था. इसके चलते वह ख़ुद किसी जानवर का वध नहीं करता था. पुराने समय में व्यवसाय जाति के आधार पर तय होते थे. लिहाजा, अपना जाति-व्यवसाय होने की मजबूरी के चलते वह बाहर से मांस लाकर उसे बेचता था. लेकिन बेचने से पहले उसका भोग भगवान को लगाता था. वह भोग लगाते समय भगवान से कहता था कि मैं क्या करूँ, मुझे अपने परिवार का पालन करने के लिए प्रारब्ध के अनुरूप यही यही व्यवसाय मिला है. भगवान भी न किसी की जाति देखते हैं न वर्ण. वह सिर्फ यह देखते हैं कि भक्त का मन कितना पवित्र है और उनमें कितना रमा है. वह ख़ुद भी भक्त से दूर नहीं रहते. सदन के घर में एक शालग्राम की पिंडी थी. उसे पता नहीं था कि यह भी भगवान का एक रूप है. वह उसे मांस तौलने के लिए बाँट के रूप में इस्तेमाल करता था. एक दिन एक साधु उसकी दुकान के सामने से जा रहे थे. वह नज़र पड़ते ही शालग्राम को पहचान गये. शालग्राम पिण्डी का उपयोग मांस तौलने के लिए होता हुआ देख उन्हें बहुत दुःख हुआ. वह सदन से उसे मांगकर अपनी कुटिया में ले आये. साधु ने विधि-विधान से शालग्राम की पूजा की, लेकिन भगवान को उससे प्रसन्नता नहीं हुयी. रात में भगवान ने सपने में साधु से कहा कि तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आये हो? मुझे तो अपने भक्त सदन के घर में ही बहुत अच्छा लगता है. जब वह मांस का टुकड़ा तौलने के लिए मुझे उठाता है, तो उसके स्पर्श से मुझे बहुत आनंद प्राप्त होता है. यहाँ बेचैनी हो रही है. मुझे वापस वहीँ पहुँचा दो. साधु सुबह जागे और शालग्राम की पिण्डी सदन को वापस दे आये. साथ ही उसको शालग्राम के वास्तविक स्वरूप और भगवत्कृपा का महत्त्व भी बता आये. सदन को यह जान कर बहुत दुःख हुआ कि वह अनजाने में भगवान की पिण्डी का उपयोग मांस तौलने के लिए करता रहा. ग्लानि से भरकर वह पिण्डी लेकर पुरुषोत्तम क्षेत्र श्रीजगन्नाथपुरी को चल पड़ा. रास्ते में शाम को सदन एक गाँव में एक गृहस्थ के घर में ठहरा. उस घर में स्त्री-पुरुष केवल दो ही व्यक्ति थे. स्त्री का आचरण अच्छा नहीं था. वह इस स्वस्थ और सुंदर मेहमान को देख उसके प्रति आसक्त हो गयी. उसने सदन के साथ अशिष्ट चेष्टाएँ कीं. यह देखकर सदन ने हाथ जोड़कर कहा -“तुम तो मेरी माता हो! अपने बच्चे की परीक्षा मत लो. माँ! मुझे तुम आशीर्वाद दो.” स्त्री ने समझा कि सदन उसके पति के भय से उसकी बात नहीं मान रहा. उसने सोते हुए पति का सिर तलवार से काट दिया. फिर उसने कहा कि अब मत डरो. मैंने पति को मार डाला है. मुझे स्वीकार करो.” सदन भय से काँप उठा. जब किसी भी उपाय से सदन नहीं माना तो, स्त्री घर के दरवाजे पर छाती पीट-पीट कर रोने लगी. वहाँ लोग एकत्रित हो गये तो उसने कहा कि इस अतिथि ने मेरे पति को मार डाला है. वह मेरे साथ बलात्कार करना चाहता था. सदन ने कोई सफाई नहीं दी. वह जानता था कि उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा. ईश्वर को पूरी तरह समर्पित सदन सबकुछ उन्हीं की लीला मानकर चल रहा था. मामला अदालत में पहुँचा तो न्यायाधीश ने उसके दोनों हाथ काटने का आदेश दिया. उसके हाथ कट गये. इस पर भी उसके मन में अपने प्रभु से कोई शिकायत नहीं थी. वह भगवान के नाम का कीर्तन करते हुए जगन्नाथपुरी को चल पड़ा. उधर पुरी में प्रभु ने पुजारी को सपने में आदेश दिया कि मेरा भक्त सदन मेरे पास आ रहा है. उसके हाथ कट गये हैं. उसे बहुत पीड़ा हो रही है. उसे पालकी में आदर पूर्वक लिवा लाओ. पुजारी ने वैसा ही किया. सदन ने जैसे ही श्रीजगन्नाथजी को दंडवत कर कीर्तन के लिए भुजा उठायीं, तो उसके दोनों हाथ पहले की तरह ठीक हो गये. लेकिन सदन के मन में जिज्ञासा थी कि निर्दोष होते हुए भी उसके हाथ क्यों काटे गये. भगवान ने उसे सपने में बताया कि-“ तुम पिछले जन्म में काशी में एक सदाचारी ब्राह्मण थे. एक दिन एक गाय कसाई के घेरे से भागी जा रही ति. उसने तुम्हें पुकारा, लेकिन तुमने कसाई को जानते हुए भी गाय के गले में दोनों हाथ डालकर उसे भागने से रोक लिया. तुमने वह गाय कसाई को सौंप दी. वाही गाय इस जन्म में वह स्त्री बनी और कसाई उसका पति था. पिछले जन्म का बदला लेने के लिए उसने उसका सिर काट लिया. तुमने भयभीत गाय को दोनों हाथों से पकड़कर कसाई को सौंपा था. इस पाप के लिए तुम्हारे हाथ काटे गये. इस दण्ड से तुम्हारे पाप का नाश हो गया. पूरी बात सुन-समझ कर सदन भक्ति-भाव में विह्वल हो गया. उसने बहुत काल तक भगावन का नाम-कीर्तन करते हुए अन्तकाल में भगवान जगान्नाथ के चरणों में अपने प्राण त्यागे और परम धाम को प्राप्त हुआ.