मध्य प्रदेश सरकार को एक बड़ा झटका लगता दिख रहा है। मध्य प्रदेश सरकार अब चालू वित्तीय वर्ष में नया कर्ज नहीं ले सकेगी। केंद्र सरकार नए ऋण लेने के लिए राज्य की GDP की सीमा तय करेगी, इसी के आधार पर राज्य सरकार किसी भी प्रकार का ऋण ले सकती है। एमपी की राज्य सरकार पर कर्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। शिवराज सरकार से लेकर मोहन सरकार तक हर महीने कर्ज के तौर पर राशि उधार ले रही है।
बात करें प्रदेश की मोहन सरकार की तो अब तक प्रदेश की मोहन सरकार केंद्र से 4 बार कर्जा ले चुकी है। यानी कि लगातार कर्जा लेने के कारण प्रदेश सरकार की कर्जा लेने की लिमिट खत्म हो चुकी है। राज्य सरकार ने पिछले सप्ताह शुद्ध उधार सीमा तय करने के लिए केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था। जिसके आधार पर केंद्र सरकार शुद्ध उधार की सीमा प्रदेश सरकार के लिए तय कर सकती है। जब तक केंद्र सरकार की ओर से शुद्ध उधार लेने की सीमा तय नहीं की जाती तब तक प्रदेश सरकार अब कोई नया कर्जा नहीं ले पाएगी।
अधिकारियों को उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में जवाब मिल जाएगा, जिसके बाद राज्य सरकार नए वित्तीय वर्ष में पहला कर्ज लेने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है। सूत्रों का कहना है कि इस साल राज्य की शुद्ध उधार सीमा नहीं बढ़ाई जाएगी और यह 45,000 करोड़ रुपये के आसपास रहेगी।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 293 के अनुसार, यदि केंद्र किसी राज्य को ऋण देता है और उस ऋण का कुछ हिस्सा राज्य सरकार पर बकाया है, तो वह राज्य भारत सरकार की सहमति के बिना कोई ऋण नहीं ले सकता है। पिछले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव के बाद बनी नई सरकार को विरासत में 3.5 लाख करोड़ रुपए का ऋण मिला है और नवंबर से मार्च तक नई सरकार ने 17,500 करोड़ का नया कर्ज लिया गया है। अब इसे लेकर प्रदेश सरकार की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। अब इस पर केंद्र सरकार इंटरवीन करेगी और उधार सीमा तय करेगी।
आपको बता दें, कि प्रदेश सरकार को लाड़ली बहना समेत तमाम योजनाओं को पूरा करने के लिए लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे में उधार सीमा तय होने के बाद प्रदेश सरकार की ये सभी योजनाएं भी खटाई में पड़ सकती हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में मप्र सरकार ने 42,500 करोड़ रुपए उधार लिए थे।
अधिकारियों ने कहा कि मध्य प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) राज्य की शुद्ध उधार सीमा नहीं बढ़ाने का कारण है। जीएसडीपी काफी हद तक वही बनी हुई है। पिछले वित्तीय वर्ष में राज्य की जीएसडीपी रु. 15 लाख करोड़ और चालू वित्त वर्ष के लिए भी लगभग इतनी ही राशि होने का अनुमान है। राज्यों को अपने जीएसडीपी का तीन प्रतिशत तक उधार लेने की अनुमति है, जो लगभग 45,000 करोड़ रुपये होगा।
अधिकारियों ने कहा कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष की शुरुआत में पहला ऋण लेने से पहले केंद्र सरकार की सहमति लेना एक नियमित प्रक्रिया है और इसका आम चुनावों के लिए लागू आदर्श आचार संहिता से कोई लेना-देना नहीं है।
राज्य की वित्तीय स्थिति के आधार पर, राज्य सरकार किस सीमा तक उधार ले सकती है, इसकी सीमा तय की जाती है। सरकार द्वारा लिए गए ऋण का उपयोग राज्य में उत्पादक विकास कार्यक्रमों और परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जाता है।