दिग्विजय की सीट पर रहेगी सभी की निगाहें, चुनाव के बाद कांग्रेस में हो सकते हैं बड़े बदलाव


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स्टोरी हाइलाइट्स

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दिग्विजय सिंह की हार अथवा जीत न केवल उनके राजनीतिक भविष्य को तय करेंगे बल्कि कांग्रेस में बड़े बदलाव भी होंगे..!!

भोपाल: प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से राजगढ़ के चुनाव परिणाम को लेकर सभी की पैनी निगाहें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह की  हुई हार का उतना महत्व नहीं रहा जितना कि अब राजगढ़ लोकसभा चुनाव को लेकर रहेगा। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दिग्विजय सिंह की हार अथवा जीत न केवल उनके राजनीतिक भविष्य को तय करेंगे बल्कि कांग्रेस में बड़े बदलाव भी होंगे।

दिग्विजय सिंह के किले राजगढ़ लोकसभा सीट पर पिछले एक दशक से भाजपा के रोडमल नागर 

का परचम फहरा रहा है। इस चुनाव में दिग्विजय सिंह अपना गढ़ बचाने के लिए 33 साल बाद पुन: चुनाव मैदान में उतरे हैं। उन्होंने इस सीट पर पिछला चुनाव 1991 में लड़ा था। ऐसे में यह लोकसभा चुनाव राजगढ़ में किले को एक बार फिर मजबूती से स्थापित करने का एक मौका भी है। दिग्विजय सिंह के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला जहां दिलचस्प हो गया है वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में उत्साह है। अब तो चुनाव परिणाम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि राजा अपना किला राजगढ़ बचा पाते या नहीं।

राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र की पहचान राघौगढ़ के राजा व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह 1984 में पहली बार मैदान में उतरे थे। 1984 से लेकर 2014 के चुनाव तक अधिकांश समय यहां पर राघौगढ़ राजपरिवार या उनके उतारे हुए प्रत्याशी का ही कब्जा रहा है। दो बार दिग्विजय सिंह खुद सांसद चुने गए, तो पांच बार उनके अनुज लक्ष्मण सिंह सांसद चुने गए। 2009 के चुनाव में राजा के खास सिपहसालार नारायण सिंह आमलाबे भी लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए थे, हालांकि उस चुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के तौर पर उतरे लक्ष्मण सिंह को हराया था। 

2014 से बदला माहौल करीब 30 वर्ष तक यह सीट राजा के गढ़ के रूप में जानी जाती रही, लेकिन पिछले दो चुनाव से यहां किले द्वारा घोषित उम्मीदवारों को करारी हार का सामना करना पड़ा। 2014 के चुनाव में किले ने नारायण सिंह आमलाबे को लगातार दूसरी बार मैदान में उतारा, तो भाजपा के रोडमल ने इस चुनाव में राजा की उम्मीदवार आमलाबे को दो लाख 28 हजार के बड़े अंतर से हराया। इसके बाद 2019 के चुनाव में किले ने मोना सुस्तानी पर भरोसा जताया तो भाजपा ने फिर नागर को मैदान में उतारा था। 

इस चुनाव में भाजपा और रोडमल नागर और ताकतवर होकर उभरे और किले की नींव पर गहरी चोट पड़ी, क्योंकि नागर ने किले के प्रत्याशी को रिकार्ड चार लाख 31 हजार के बड़े अंतर से करारी शिकस्त दी थी। इस बार 2024 के चुनाव में रोडमल नागर लगातार तीसरी बार मैदान में हैं, वहीं उनके सामने कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। राजगढ़ से मैदान में राजा के उतरने की रणभेरी के बीच यहां के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालना जरूरी है।

विधानसभा चुनाव में मिली गहरी खाई को पाटने की चुनौती

राजगढ़ संसदीय क्षेत्र में टिकट दिग्विजय सिंह के बिना नहीं होते। ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीवारों को भाजपा उम्मीदवारों के सामने बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह व सुसनेर से भैरू सिंह बापू ही चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। जबकि छह विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की है। चांचौड़ा में उनके अनुज लक्ष्मण सिंह को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। 

ब्यावरा में भाजपा के नारायण सिंह पंवार के सामने कांग्रेस के पुरुषोत्तम दांगी 36 हजार के अंतर से हारे। राजगढ़ में अमर सिंह यादव के सामने कांग्रेस के बापू सिंह तंवर करीब 22 हजार से हारे, नरसिंहगढ़ में कांग्रेस के गिरीश भंडारी, भाजपा के मोहन शर्मा से 27 हजार के अंतर से हारे। सारंगपुर में कांग्रेस उम्मीवार को 23 हजार के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। खिलचीपुर में प्रियव्रत सिंह करीब 14 हजार के अंतर से हारे।