प्रश्न -- सुख का मात्रक क्या है ?? हमारे दुखो का कारण क्या हैं ??
स्टोरी हाइलाइट्स
प्रश्न -- सुख का मात्रक क्या है ?? हमारे दुखो का कारण क्या हैं ?? maximum विकारो का कारण क्या हैं ?? क्यो हमारा मन बार बार भूत काल की दुखद घटनावो.....
प्रश्न -- सुख का मात्रक क्या है ?? हमारे दुखो का कारण क्या हैं ??
प्रश्न -- सुख का मात्रक क्या है ?? हमारे दुखो का कारण क्या हैं ?? maximum विकारो का कारण क्या हैं ?? क्यो हमारा मन बार बार भूत काल की दुखद घटनावो को य़ाद करता हैं ??
क्यो वर्तमान में जी नहीं पाता ??
एक प्रयास --
इन सब का एक ही कारण है -- बिना कथा रूप कान्हा के, हमारे मन को झूठे अभिमान का सुख लेने की आदत, लत लग चुकी है. क्यो की झूठे अभिमान का सुख बहुत बडा सुख हैं. क्या हमने कभी सोचा हैं कि सुख को नापने का पैमाना क्या हैं ?? छोटा या बडा सुख हम नापेंगे कैसे ?? solid (ठोस) को हम लोग ग्राम, किलोग्राम में नाप लेते हैं , liquid को लीटर में , electric को volt watt में , light को lux में , time को day weak hour mint sec में,
Temperature को Centigrate Farenhite में
बहुत सारी चीजो के मात्रक unit हम ने निकाल लिये ..
परंतु ज़िस सुख की तलाश में पूरी दुनिया हैं , उसी सुख को नापने का पैमाना नहीं जाना हमने कभी ?? सुख को नापने का पैमाना हैं -- ये 6 शर्ते , ज़िस सुख में जितनी ज्यादा शर्ते पूरी हो जाती हैं , वो उतना ही बडा सुख होता हैं
1-- जो सुख मिले repeat करने में सुख की मात्रा कम ना हो
2-- वो सुख हर जगह ले सके
3--. वो सुख कभी भी ले सके
4--. उस सुख को पाने में मेहनत ना करनी पड़े
ये चारो शर्ते झूठे अभिमान के सुख में मिलती हैं, लोगो की निन्दा करके , निंदा सुनकर, बहस करके, लोगो को प्रश्न के रूप में तर्क कुतर्क करके , उन्हें चुप करा के, हमे झूठे अभिमान का सुख ही मिलता है.
हमारा मन लोगो की सिर्फ बाहरी क्रिया पर दोषारोपण करता है, उस व्यक्ति को मन ही मन नीच, दोषी साबित करता है और खुद को महान साबित करता हैं और झूठे अभिमान का सुख ले लेता हैं.
जब कि कोई भी क्रिया (work) सिर्फ क्रिया होती है,
उस क्रिया को करने का उद्देश्य और परिस्थिति ही उस क्रिया को पाप कर्म या पुण्य कर्म में बदलती है,
उदाहरण -- एक सैनिक बॉर्डर पर 50 लोग को गोली से मार देता है तो वो मनुष्य हत्या की क्रिया भी पुण्य कर्म है, सहज कर्म है, क्योकि देश की रक्षा का उद्देश्य है,
Result - परमवीर चक्र
वही सैनिक घर आ कर , अपने व्यक्तिगत स्वार्थ , अहंकार में पड़ोसी, रिश्तेदार को गोली मार दे तो वही क्रिया पाप कर्म है
Result -- फाँसी की सजा
हमारा मन झूठे अभिमान का सुख कहाँ कहाँ से ले लेता हैं , इसे जानने में भी 3-4 साल लग जाते हैं. परंतु जान लेने से भी ये तब तक नहीं छूटेगा जब तक इसे 5 या 6 शर्ते पूरी होने वाले सुख का अनुभव और आदत नहीं हो जाती है ...
5 वी शर्त --. उस सुख को पाने में पाप - पुन्य का द्वंद ना आये क्यो की ये दुविधा ; ये खटक ; हमारे सुख के प्रवाह को बाधित करता हैं. त्याग के सुख में पहली दुसरी तीसरी और पाँचवी शर्त पूरी होती हैं, यानी त्याग का सुख भी बहुत बड़ा सुख है (4 शर्ते पूरी करने वाला सुख).
परन्तु इसमें भी 4 शर्ते ही पूरी होती हैं , साथ ही त्याग के सुख को पाने में मेहनत बहुत करनी पड़ती हैं , अपनी इक्छा को काट कर दूसरो को , अपनो को , पैसा, वस्तु, सेवा देना बहुत मुस्किल कार्य हैं.
6 ठवी शर्त ---. हमारा सुख किसी वस्तु , व्यक्ति, परिस्थिती पर depend ना हो , निर्भर ना हो. ये सभी 6 शर्ते पूरी होती हैं.
प्रभु स्मरण या सदगुरू स्मरण , भजन के सुख में, कथा रूप कान्हा के संग से जो प्रेम भाव का सुख मिलता है मन को, कान्हा हमारे करीब आने लगा है ये अनुभव होने लगता है , इस अनुभव में जो सुख मिलता है , उसमे 5 या 6 शर्ते पूरी होती है.
ये भजन का सुख मन को जैसे जैसे मिलता जाएगा, इसकी प्रैक्टिस, आदत मन को लगती जाएगी, वैसे वैसे मन झूठे अभिमान के सुख में जाना कम करेगा, बन्द करेगा