रत्नवती-Rani Ratnavati


स्टोरी हाइलाइट्स

आमेर नरेश श्री मानसिंह के छोटे भाई का नाम माधव सिंह था और इन्हीं की। रत्नावती थी।.........रत्नवती-Rani Ratnavati | Ratnavati

रत्नवती-Rani Ratnavati..
आमेर नरेश श्री मानसिंह के छोटे भाई का नाम माधव सिंह था और इन्हीं की। रत्नावती थी। वे भक्ति में लीन रहती थीं। जप, पूजा और सस्वर पाठ आदि महल में अखंड रूप से चलता रहता था दूसरी रानियाँ रत्नावती से ईर्ष्या करने लगीं।

रानी पर भक्ति रंग एक दासी के सत्संग से चढ़ाया। दासी ने रानी को बताया कि कृष्ण-भक्ति का तीर जिसे लग जाता है, उसके पास रोने के अलावा और कोई चारा नहीं होता, वह उन्हें छोड नहीं पाता है। रानी के मन में यह विश्वास हो गया कि दासी कोई सामान्य नारी नहीं है। वह परम भगवद् भक्त है।

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जब वह रानी के पास बैठकर प्रभु-गुनगान करती, उस समय रानी उसे दासी नहीं, परम भक्त के रूप में देखती और पूजती थी। वह अब दासी न रहकर रानी की सखी और पथ-प्रदर्शिका बन गई थी। रानी का मन भी भक्ति भावना में डूबता चला गया।

उसने साधुओं के लिए एक आश्रम बनवा दिया गया जो साधु वहाँ आते, उनकी बहुत सेवा होती थी।माधवसिंह उन दिनों दिल्ली में थे। रानी के क्रियाकलापों की चर्चा आम होने लगी थी।

मंत्रियों ने माधव सिंह को सूचित किया कि पत्नी रत्नावती लोक-लाज और कुल मर्यादा को त्याग साधुओं के सत्संग में मुक्त भाव से भाग ले रही है, जिससे राज-परिवार और वंश की अपकीर्ति हो रही है। माधोसिंह आमेर आए और रानी को बुरा-भला कहा।

इस पर रानी ने कहा-'ईश्वर भक्ति में मेरा रानी होना रोडा बनता है। मैं कैसी रानी हूँ? मेरे शरीर के किस भाग का नाम रानी है? मेरा तो यह शरीर और स्वरूप भी हमेशा रहने वाला नहीं है।' मगर राजा को ये बातें पसन्द नहीं आईं और वे क्रोधित हो गए। रानी ने अपने केश भी मुंडवा दिए।

वे अब मुक्त भाव से भजन-कीर्तन करने लगी। राजा को यह अच्छा न लगा। उसने मंत्रियों से सलाह कर रानी को मरवाने के लिए पिंजरे में बन्द शेर महल में भेजा, जो बहुत ही खूंखार और नरभक्षी था। रानी उस समय पूजा कर रही थी। शेर जैसे ही रानी के सामने आया, वैसे ही आकर चुपचाप खड़ा हो गया।

रानी ने उसके माथे पर तिलक लगाया और उसे नरसिंह भगवान् का रूप मानकर उसकी आरती उतारी। रत्नवती का जीवन सफल हो गया। उसे साक्षात् भगवान् के दर्शन हो गए। राजा को जब यह मालूम हुआ कि शेर ने पिंजरा लाने वालों को मार दिया और रत्नावती को कुछ नहीं कहा तो वह तुरंत आकर उसके चरणों में गिर पड़ा।

इसी प्रकार एक बार मानसिंह और माधव सिंह, दोनों भाई नाव में बैठकर जा रहे थे। दैवयोग से नाव डूबने लगी। वे घबरा गए और जैसे ही उन्होंने रत्नावती का नाम लिया तो नाव नदी के किनारे लग गई। दोनों भाई बच गए।

इन घटनाओं और चमत्कारों को देखकर रत्नावती के पति माधवसिंह ही नहीं, सारा राजपरिवार रत्नावती जी का भक्त हो गया। सभी उन्हें श्रद्धा और भक्ति भाव से देखने और पूजने लगे। यह थी एक नारी के विश्वास की महिमा।


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