फिर तो जंगलों की सुरक्षा माफिया और लकड़ी चोरों को सौंप दें


स्टोरी हाइलाइट्स

* लकड़ी चोर के आरोपी की मौत पर 25 लाख और वन कर्मियों की मौत पर चार लाख

भोपाल: विदिशा वन मंडल की लटेरी की घटना को लेकर वन कर्मियों पर दर्ज आपराधिक प्रकरण और एक डिप्टी रेंजर की  गिरफ्तारी के बाद से महकमे के हर अधिकारी से लेकर वीट गार्ड के मन मस्तिष्क में एक ही बात कौंध रही है कि राज्य सरकार को उस पर तो जंगलों की सुरक्षा माफिया और लकड़ी चोरों को सौंप देना चाहिए. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी लटेरी के जंगलों से हो रही चोरी की हालात को तो नजदीक से जान लेते या फिर 2 दिन से सोशल मीडिया पर लटेरी और मक्सूदनगढ़ के लकड़ी चोरों के वीडियो देख लेते तो शायद डिप्टी रेंजर एवं अन्य वन कर्मियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज करने से पहले उस घटना की जांच कराते और जांच प्रतिवेदन के बाद आगे करवाई करवाते. लटेरी की घटना के बाद कौन अधिकारी और कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर वनों की सुरक्षा करेगा? लाख टके का सवाल आज प्रशासनिक गलियारों में गूंज रहा है.

राजनीति प्रोटेक्शन की बदौलत ही विदिशा के लटेरी और गुना के मक्सूदनगढ़ क्षेत्र में संगठित लकड़ी चोरों का गिरोह बेखौफ हो गए हैं. लटेरी की इस वारदात के बाद तो यह डर भी सताने लगा है कि कहीं यह सिस्टम इन लकड़ी माफिया के लिए भी अभयारण्य का इंतज़ाम न कर दे. प्रदेश में  टिम्बर माफिया  किस कदर जंगलों से लेकर सिस्टम के कमजोर हिस्सों पर हावी हो चुका है. वह गरीब आदिवासियों को जरूरत के लिए कर्ज देकर उन्हें अपने चंगुल में लेता है. फिर इस रकम के एवज में लकड़ी की अवैध कटाई और चोरी कराई जाती है.

फंसने या मरने वाला तो वह कर्ज में दबा आदिवासी ही होता है और टिम्बर माफिया सुरक्षित रहता है. खुद विभाग की रिपोर्ट बताती है कि जिले में उसकी 21 हजार हेक्टेयर जमीन पर खेती की जा रही है. विदिशा जिले की दक्षिण रेंज में झूकरजोगी, काटरआड़ी, तिलोनी, दप्कन, बैरागढ़, कोटरा, कोलुआपठार, जमोनिया, मुस्करा और मुरवास बीट तो जैसे तस्करों के स्वर्ग में बदल गए हैं. इनमें से किसी भी गांव में चले जाइए.  आदिवासियों के घरों के सामने सागौन के ताजा काटे गए लट्ठे दिख जाएंगे. पूछने पर पेशेवर तरीके से जवाब मिलता है कि घर बनाने के लिए लकड़ी रखी गयी है. जबकि रात ढलते ही टिम्बर माफिया के ट्रक आकर वह लकड़ी ले जाते हैं.

एसोसिएशन पर उठते सवाल-

जंगल महकमे में आईएफएस एसोसिएशन, राज्य वन सेवा संघ, मप्र रेंजर एसोसिएशन और वन कर्मचारी संयुक्त संघ सक्रिय है. रेंजर्स और वन कर्मचारी संघ ने तो अपना विरोध दर्ज कराया है किंतु आईएफ एसोसिएशन और राज्य वन सेवा संघ किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है. आईएफएस एसोसिएशन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को लटेरी की वास्तविक घटना से अवगत करा सकें.

आई एफ एस एसोसिएशन की स्थिति ठीक वैसी ही हो गई है जैसे राजा महाराजाओं के दल में हाथी का हुआ करता था. यानी जब हमले होते थे, तब एक तीर लगते अपनी जान बचाने के लिए हाथी अपने ही सैनिकों को बांधते हुए भाग जाते थे. एसोसिएशन ने कभी भी जंगलों की सुरक्षा को लेकर सवाल नहीं खड़े किए. वह हमेशा तब सक्रिय हुई जब उनके पदाधिकारियों को प्रमोशन और साइनपोस्टिंग की जरूरत पड़ी.

गत 3 वर्षों की कटाई के आंकड़े-

वर्ष अवैध कटाई जप्त लकड़ी घमी 

2019 - 44614 8389.745
2020 - 48035 12667.214
2021- 40090 8393.5223
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विदिशा वन मंडल के आंकड़े-
2020 - 829 10.807
2021- 638 13.310
2022 (8 माह) 217 03.958
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(दोनों आंकड़े वन विभाग की अधिकृत वेबसाइट से लिए गए हैं)

वनों की सुरक्षा करते 7 साल में हुई 8 वनकर्मियों की मौत-

प्रदेश के वनों की सुरक्षा करते हुए हर साल एक वन कर्मी की औसतन मौत हो रही है. यह आंकड़े 2016 से अगस्त 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार पिछले 7 सालों में जंगलों की सुरक्षा करते हुए आठ वन कर्मियों की मौत हुई है. ग्रामीण और संगठित आपराधिक गिरोह के हमले से करीब डेढ़ सौ के लगभग वन विभाग का मैदानी अमला घायल हुआ. गंभीर पहलू यह है कि वन कर्मियों की मौत पर पीड़ित परिवारों को न ही पर्याप्त मुआवजा दिया जाता है और न ही परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी मिलती है.

लंबे अरसे से वन विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा शासन से आधुनिक हथियार और गोली चालन के अधिकार की मांग की जा रही है. अभी तक शासन स्तर पर इन मांगों पर गंभीरता से विचार मंथन नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा वन कर्मचारी संघ द्वारा लगातार ड्यूटी में तैनात बन कर्मियों की मौत को शहीद का दर्जा देने की मांग भी की जा रही है. इन मांगों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है.