तम्बाकू: मनुष्य-जाति का कट्टर दुश्मन


स्टोरी हाइलाइट्स

परम पिता परमात्मा की चेतन सृष्टि का सर्वोत्तम प्राणी मनुष्य है क्योंकि उसके पास सत्य-असत्य, हित-अहित और लाभ-हानि को जानने-समझने के लिए विशेषकर बुद्धिरूपी अलौकिक साधन है। मनुष्य बुद्धि के साधन की कसौटी से इस लोक व परलोक के अनुकूल पूँजी जुटा सकता है।

परम पिता परमात्मा की चेतन सृष्टि का सर्वोत्तम प्राणी मनुष्य है क्योंकि उसके पास सत्य-असत्य, हित-अहित और लाभ-हानि को जानने-समझने के लिए विशेषकर बुद्धिरूपी अलौकिक साधन है। मनुष्य बुद्धि के साधन की कसौटी से इस लोक व परलोक के अनुकूल पूँजी जुटा सकता है। बुद्धि की शुद्धि का आधार आहार-शुद्धि है। 'जैसा आहार वैसी डकार।' सत्वगुणी कल्याण-मार्ग का पथिक होता है। रजोगुणी संसार की विविध वासनाओं में आसक्त रहता है परंतु तमोगुणी अधःपतन के मार्ग पर जाता है।
 
तम्बाकू अर्थात् तमोगुण की खान- आजकल मनुष्य तम्बाकू के पीछे पागल बनकर सर्वनाश के मार्ग पर दौड़ रहा है। मनुष्य जाति को मानो तम्बाकू का संक्रामक रोग लगा है। बीड़ी सिगरेट और चिलम में भरकर तम्बाकू की आग मनुष्य जी भर के फूँक रहे हैं, भगवद् भजन करने के साधनरूप मुख व जीभ को त्रासजनक रूप से दुर्गन्ध से भरे रखते हैं। गला छाती, पेट, जठरा व आँतों को सड़ा देते हैं। खून को कातिल जहर से भर देते हैं। दाँतों पर घिस के दाँत सड़ा देते हैं। चबाकर जीभ, मसूड़े, तालू व कंठ के अमीरस को विषमय कर डालते हैं। आत्मदेव के देहमन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट करके बरबादी के पथ पर दौड़ रहे हैं। Related image अरे मेरे बुद्धिशाली भाइयो ! फूँकने, खाने, चबाने, दाँतों में घिसने, सूँघने आदि के व्यसनों द्वारा इस देश के करोड़ों नहीं अरबों रूपयों का धुआँ करने का पाप क्यों कर रहे हो? पसीने की कमाई को इस प्रकार गँवाकर सर्वनाश को क्यों आमंत्रित कर रहे हो?
शरीर, मन, बुद्धि और प्राण को पवित्र तथा पुष्ट करने वाले शुद्ध, दूध, दही, छाछ, मक्खन और घी तो आज दुर्लभ हो गये हैं। इनकी आपूर्ति में तम्बाकू का कातिल जहर शरीर में डालकर पवित्र मानव देह को क्यों अपवित्र बना रहे हो?
तम्बाकू में निकोटीन नाम का अति कातिल घातक जहर होता है। इससे तम्बाकू के व्यसनी कैंसर व क्षय जैसे जानलेवा रोग के भोग बनकर सदा के लिए 'कैन्सल' हो जाते हैं। आजकल ये रोग अधिक फैल रहे हैं। तम्बाकू के व्यसनी अत्यंत तमोगुणी, उग्र स्वभाव के हो जाने से क्रोधी, चिड़चिड़े व झगडालू बन जाते हैं। दूसरों की भावनाओं का उन्हें लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहता।
अरे, मेरे पावन व गरीब देश के वासियो ! महान पूर्वजों द्वारा दिये गये दिव्य, भव्य संस्कारों के वारिसदारो ! चेतो ! चेतो ! तम्बाकू भयानक काला नाग है। तम्बाकू के कातिल नागपाश से बचो। अपने शरीर, मन, बुद्धि, धन, मान, प्रतिष्ठा को बचाओ ! सर्वनाशक तम्बाकू से बचो, अवश्य रखो।
धूम्रपान है दुर्व्यसन.............
धूम्रपान है दुर्व्यसन, मुँह में लगती आग।
स्वास्थ्य, सभ्यता, धन घटे, कर दो इसका त्याग।।
बीड़ी-सिगरेट पीने से, दूषित होती वायु।
छाती छननी सी बने, घट जाती है आयु।।
रात-दिन मन पर लदी, तम्बाकू की याद।
अन्न-पान से भी अधिक, करे धन-पैसा बरबाद।।
कभी फफोले भी पड़ें. चिक1 जाता कभी अंग।
छेद पड़ें पोशाक में, आग राख के संग।।
जलती बीड़ी फेंक दीं, लगी कहीं पर आग।
लाखों की संपदा जली, फूटे जम के भाग।।
इधर नाश होने लगा, उधर घटा उत्पन्न।
खेत हजारों फँस गये, मिला न उसमें अन्न।।
तम्बाकू के खेत में, यदि पैदा हो अन्न।
पेट हजारों के भरे, मन भी रहे प्रसन्न।।
करे विधायक कार्य, यदि बीड़ी के मजदूर।
तो झोंपड़ियों से महल, बन जायें भरपूर।।
जीते जी क्यों दे रहे, अपने मुँह में आग।
करो स्व-पर हित के लिए, धूम्रपान का त्याग।।
 
1. अचानक होने वाला दर्द- बहुत खतरनाक है पान मसाला, धूम्रपान से भी खतरनाक है पान मसाला या गुटखा। सुपारियों में प्रति सुपारी 10 से 12 घुन (एक प्रकार के कीड़े) लग जाते हैं, तभी वे पान मसालों या गुटखा बनाने में हेतु काम में ली जाती हैं। इन घुनयुक्त सुपारियों को पीसने से घुन भी इनमें पिस जाते हैं। छिपकलियाँ सुखाकर व पीसकर उनका पाउडर व सुअर के मांस का पाउडर भी उसमें मिलाया जाता है। धातु क्षीण करने वाली सुपारी से युक्त इस कैंसरकारक मिश्रण का नाम रख दिया - 'पान मसाला' या 'गुटखा'। एक बार आदत पड़ जाने पर यह छूटता नहीं। घुन का पाउडर ज्ञानतंतुओं में एक प्रकार की उत्तेजना पैदा करता है। पान मसाला या गुटखा खाने से व्यक्ति न चाहते हुए भी बीमारियों का शिकार हो जाता है और तबाही के कगार पर पहुँच जाता है। पान मसाले खाने वाले लोग धातु-दौर्बल्य के शिकार हो जाते हैं, जिससे उन्हें बल तेजहीन संतानें होतीं हैं। वे लोग अपने स्वास्थ्य तथा आनेवाली संतान की कितनी हानि करते हैं यह उन बेचारों को पता ही नहीं है।
पान मसाला या गुटखा खाने की आदत को छोड़ने के लिए 100 ग्राम सौंफ, 10 ग्राम अजवाइन और थोड़ा सेंधा नमक लेकर उसमें दो नींबुओं का रस निचोड़ के तवे पर सेंक लें।यह मिश्रण जेब में रखें। जब भी उस घातक पान मसाले की याद सताये, जेब से थोड़ा सा मिश्रण निकालकर मुँह में डालें। इससे सुअर का माँस, छिपकलियों का पाउडर व सुपारियों के साथ पिसे घुन मिश्रित पान मसाला मुँह में डालकर अपना सत्यानाश करने की आदत से आप बच सकते हैं। इससे आपका पाचनतंत्र भी ठीक रहेगा और रक्त की शुद्धि भी होगी।