मैं किससे प्यार करूं?


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रेम इससे भी बड़ा है| प्रेम सागर से गहरा और आसमान से विशाल है| प्रेम में पड़ने का अर्थ सिर्फ इतना ही नहीं कि किसी लड़के या लड़की के प्रेम में|

मैं किससे प्यार करूं? हर व्यक्ति को प्यार करना है| लेकिन प्यार क्यों करना है? क्योंकि उसके बदले में उससे प्यार की जरूरत है| प्रेम किया ही इसलिए जाता है कि उसके बदले में प्रेम की आकांक्षा होती है| यदि किसी के बारे में यह कहा जाए कि वह प्यार में पड़ गया है| तो तुरंत सवाल उठेगा कि किसके? और बदले में यही आकांक्षा रहेगी कि नाम ऑपोजिट सेक्स से हो| यानी लड़का प्रेम में पड़ा है तो वह लड़की के और लड़की प्रेम में पड़ी है तो वह लड़के के| इससे ज्यादा और इससे आगे हमारी सोच जाती ही नहीं है| प्रेम इससे भी बड़ा है| प्रेम सागर से गहरा और आसमान से विशाल है| प्रेम में पड़ने का अर्थ सिर्फ इतना ही नहीं कि किसी लड़के या लड़की के प्रेम में| प्रेम संपूर्ण के साथ भी हो सकता है| प्रेम संपूर्णता के साथ भी हो सकता है| प्रेम ब्रह्मांड की प्रत्येक व्यक्ति वस्तु और प्रकृति से हो सकता है| प्रेम स्वरूप से हो सकता है तो कुरूप से भी हो सकता है| प्रेम आकार से भी हो सकता है और निराकार से भी| प्रेम दृश्य से भी हो सकता है और अदृश्य से भी प्रेम के सौंदर्य को देखने के लिए एक खास तरह की नजर चाहिए| जो प्रेम की सुंदरता को देख सकता है वही प्रेम करने का अधिकारी होता है और उसी को प्रेम प्राप्त होता है| आप प्रेम करने के लिए लड़की या लड़का देख रहे हैं| क्या आपने सुबह की खूबसूरत सूर्य की किरणों से प्रेम किया है? क्या आपने ब्रह्म मुहूर्त में चलने वाली प्राणवायु से प्रेम किया है? क्या आपने शाम को शांत वातावरण में बहने वाली शुद्ध हवा से प्रेम किया है? क्या आपने अपने पास मौजूद किसी पेड़ या पौधे को प्रेम किया है? क्या आपने कभी लहरों से प्रेम किया है क्या आपने कभी नदी की कलकल से प्रेम किया है? आप इन सब से प्रेम तब कर सकेंगे जब आपने उनका अनुभव किया हो| लेकिन आपके पास तो समय नहीं है| हम सब जीवन की आपाधापी में इतने व्यस्त हैं कि हम प्रकृति के रग रग में मौजूद सौंदर्य का ना तो पता कर पाते हैं नहीं कभी अनुभव कर पाते| किसी और से प्रेम तब हो सकता है जब आप अपने आप को भूल सकें, क्योंकि जब तक आप को मैं का ज्ञान है तब तक पर से लगाव नहीं हो सकता| आप किसी लड़की या लड़के को चाहते हैं तब भी उसके केंद्र में आप खुद होते हैं| आप दूसरे का सौंदर्य देखते हैं लेकिन उसके आईने में खुद को परखते हैं|खास बात यह है कि किसी व्यक्ति के प्रेम में पढ़कर उससे उसी तरह का प्रेम हासिल करने के लिए आपको उसके योग्य बनना पड़ेगा| और वह भी तब जब उसके पास इसके लिए स्पेस हो, क्योंकि हो सकता है कि उसने पहले से ही अपने प्रेम का स्थान किसी और को दे रखा है| वह पहले से ही इंगेज है तो आपका प्रेम कैसे स्वीकार करेगा और उसके बदले में प्रेम कैसे देगा? लेकिन प्रकृति से, ब्रह्मांड से, परमात्मा से, परमात्मा की कृतियों से प्रेम करने में कोई शर्त नहीं| आपको योग्य होने की जरूरत भी नहीं| जिसको आप प्रेम कर रहे हैं, जिससे प्रेम करने की आकांक्षा रख रहे हैं| यदि वह प्रकृति बहुत खूबसूरत है तो उसके मुकाबले आपको ठहरने की कोई जरूरत नहीं| आप जैसे हैं वैसे ही प्रेम दे सकते हैं और बदले में आपको प्रकृति से उतना ही प्रेम मिलेगा| प्रकृति आपके हाव-भाव, स्मार्टनेस, बातचीत, आपके पॉकेट का वजन नहीं देखेगी| दूसरों से प्रेम करने से पहले खुद से भी प्रेम करना सीखिए| अपने अंदर का सौंदर्य देखिए, बाहर की बनावट को मत निहारते रहिए| बाहर आप थोड़े छोटे हैं, आपके नए नैन नक्श थोड़े कम तीखे हैं, क्या फर्क पड़ता है? बाहर का सौंदर्य सिर्फ व्यक्ति देखता है| प्रकृति आपके अंदर का सौंदर्य देती है| परमात्मा को आपके शरीर की बनावट से कोई लेना-देना नहीं| परमात्मा आपके भाव देखता है, उस भाव के अंदर मौजूद रस, भक्ति और प्रेम देखता है| खुद को थोड़ा समय दीजिए यह प्रश्न अपने आप तिरोहित हो जाएगा कि प्रेम किससे किया जाए|