क्या हम अपने मन में आ रहे गंदे और अश्लील विचारों को रोक सकते हैं? 


स्टोरी हाइलाइट्स

आज के दौर में खुद को गंदे विचारों से बचाना बहुत बड़ी बात है|चारों तरफ सोशल मीडिया के कारण अश्लील और गंदे विचारों की भरमार है

क्या हम अपने मन में आ रहे गंदे और अश्लील विचारों को रोक सकते हैं?  आज के दौर में खुद को गंदे विचारों से बचाना बहुत बड़ी बात है। चारों तरफ सोशल मीडिया के कारण अश्लील और गंदे विचारों की भरमार है। इन विचारों का शिकार हर कोई होता है। और अवचेतन मन ऐसे विचारों को तुरंत ग्रहण करता है। क्या अपने दिमाग को इस प्रदूषण से बचाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए आपको एक कहानी सुनाते हैं। ALSO READ देवराज इंद्र का वाहन- ऐरावत बात बहुत पुरानी है स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र ने तीन महर्षियों को अपने धाम में आमंत्रित किया। इनके बारे में कहा जाता था कि यह ऐसे संत हैं जो तमाम भ्रमों से पूरी तरह मुक्त हैं। दरअसल देवराज इंद्र इन ऋषियों के कारण डर गए थे उन्हें लगा कि यह तपस्वी संत यदि पूर्ण सिद्ध हो गए तो उनका सिंहासन जाना तय है। अब इंद्र देवता तो इंद्र देवता ठहरे उन्होंने स्वर्ग की सबसे खूबसूरत अप्सरा उर्वशी के साथ मिलकर, ऋषियों को माया के वशीभूत करने की योजना बनाई। इन महर्षियों को स्वर्ग बुलाया गया। ऋषि स्वर्ग पहुंचे तो देवराज ने उनकी खूब आवभगत की उन्हें आदर पूर्वक बैठाया। ALSO READ उर्वशी ने क्यों दिया अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप ? इंद्र की सभा में अप्सराओं का नृत्य प्रारंभ हुआ। अप्सराओं का यह नृत्य इतना मनमोहक था कि देवराज इंद्र भी मोहित हो रहे थे क्योंकि अप्सराएं आज कुछ अलग ही रंग में थी अप्सराओं ने सुंदरता की सारी सीमाएं लांघ दी थी। समय निकला और बाकी अप्सराएं नृत्य के मंच से अलग होती गई। अब स्टेज पर सिर्फ सिर्फ उर्वशी ही नाच रही थी। उर्वशी ने अपने सौंदर्य का जाल फैलाना शुरू किया। वह एक-एक करके अपने वस्त्र निकालती जा रही थी। तभी एक ऋषि विचलित होकर बोले कृपया यह सब बंद कर दें यह अश्लीलता है। दूसरे ऋषि ने कहा आप यह क्या कर रहे हैं नृत्य बंद नहीं होगा उर्वशी जो कर रही है उसे करने दें। आपको यदि कोई दिक्कत है तो आप अपनी आंखें बंद कर लें। ऋषि ने आंखें बंद कर ली लेकिन बंद आंखों में भी उन्हें उर्वशी ही उर्वशी दिखाई दे रही थी। जो उर्वशी उन्हें बंद आंखों से दिखाई दे रही थी वो और ज्यादा खूबसूरत थी। इस उर्वशी के तन पर एक भी कपड़ा दिखाई ना देता था। ALSO READ क्या वेदों में अश्लीलता हैं? ऋषि बहुत दुविधा में फंसे उन्होंने सोचा कि यह क्या हो रहा है बंद आंखों से दिखनें वाली उर्वशी तो निर्वस्त्र है इससे कम कामुक तो बाहरवाली उर्वशी है। इधर बाहर वाली उर्वशी भी सारी सीमाएं लांघ रही थी। उर्वशी ने अब अपने प्रदर्शन की पराकाष्ठा प्रदर्शित की। अब उसके वक्ष पर एक भी वस्त्र ना रहा। इससे दूसरे ऋषि विचलित हो गए और कहने लगे यह तो पराकाष्ठा है मैं इसे सहन नहीं कर सकता यह सब बंद किया जाए। तब तीसरे ऋषि बोले यदि आपको ज्यादा समस्या है तो आप अपनी आंखें बंद कर लीजिए लेकिन यह नृत्य बंद नहीं होगा। दूसरे ऋषि ने भी आंखें बंद कर ली लेकिन बंद आंखों से उन्हें उर्वशी का वो रूप दिखाई दिया जो जीती जागती उर्वशी से ज्यादा कामुक थी। बाहरवाली के तन पर कुछ कपड़े तो थे। दूसरे ऋषि बहुत विचलित हुए। इधर तीसरे ऋषि उर्वशी का नृत्य तल्लीनता से देख रहे थे। ALSO READ 16 पौराणिक कथाएं – पिता के वीर्य और माता के गर्भ के बिना जन्मे पौराणिक पात्रों की उर्वशी ने अब सारी सीमाएं लांग दी और अब उसके तन पर कोई कपड़ा नहीं था। तीसरे ऋषि तब भी विचलित नहीं थे और वह बहुत ध्यान से नृत्य देख रहे थे। उर्वशी अचंभित थी। आखिर इस अवस्था में मुझे नाचते देखने के बावजूद भी तीसरे ऋषि विचलित क्यों नहीं है? ऋषि ध्यान से देख रहे थे, उनके मन में ख्याल था कि शायद और कुछ भी होगा जो उर्वशी  उतारेगी। शायद उर्वशी अपनी चमड़ी उतारेगी। देखूं तो आखिर इस चमड़ी के अंदर और क्या है? उर्वशी के पास अब उतारने के लिए कुछ भी नहीं था। वह हैरत में थी कि इस अवस्था में भी वह ऋषि को विचलित नहीं कर पाई। दुनिया में पहला ऐसा व्यक्ति देखा जो से इस अवस्था में देखकर भी शांत और सहज है। वह ऋषि के सामने नतमस्तक हो गई। गंदगी दृश्य में नहीं बल्कि हमारी आंखों के पीछे मौजूद हमारी अंतर्दृष्टि में होती है। आंखें बंद करके हम अपने अंदर की गंदगी को साफ नहीं कर सकते। जितना हम अपनी आंखें बंद करेंगे उतना ही हमारी अंदर की गंदगी हमें परेशान करेगी। आप अपने आप को शुद्ध, सात्विक कहते हैं लेकिन बाहर तामसिकता देखकर आपकी सात्विकता को सांप सूंघ जाता है। खुद को सकारात्मक कहते हैं लेकिन बाहर की नकारात्मकता आप को हिला देती है। यकीन मानिए यदि आपको बाहर की नकारात्मकता, अश्लीलता से असहजता होती है तो यह असहजता आपके अंदर की गंदगी के कारण है। जब तक आप अपने अंदर की नकारात्मकता को बाहर नहीं निकालेंगे। जब तक आप अपने अंदर के डर और अश्लीलता को बाहर नहीं निकालेंगे तब तक आपको बाहर के दृश्य विचलित करते रहेंगे। तामसिकता शरीर में नहीं बल्कि उस शरीर को देखने की दृष्टि में है। ALSO READ "कामवासना और अश्लीलता !" – ओशो तामसिकता दृश्य में नहीं उस दृश्य के पीछे खड़े हो जाने वाले भावों में है। अपने चश्मे को बदलिए दृश्य बदल जाएंगे। अपनी दृष्टि को बदलिए कुछ भी अश्लील नजर नहीं आएगा। तीसरे ऋषि के लिए सब कुछ सत्य था इसलिए वह विचलित नहीं हुए। जो डगमगा गए वह ऋषि अब भी स्थूल संसार में भटक रहे थे।