जीव को किसने बांधा है ?


स्टोरी हाइलाइट्स

Soul : इस स्वप्न रूपी जीव Soul को संसार में किसने बांधा है? जिसने बांधा है, वही इसके बन्धन को खोलेगा, कोई दूसरा उसका बंधन नहीं खोल सकता है...

"ए जिन बांध्या सो खोलहीं, तो लो न छूटे बंध ।या विध खेल खाबिंद को, तो औरों कहा सनन्ध ।।" इस स्वप्न रूपी जीव Soul को संसार में किसने बांधा है? जिसने बांधा है, वही इसके बन्धन को खोलेगा, कोई दूसरा उसका बंधन नहीं खोल सकता है। इस ब्रह्मांड के स्वामी और पूज्य ईश ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि की गति भी यही है तो औरों की बात क्या की जाए?  अब प्रश्न यह उठता है कि जीव को इस स्वापनिक संसार में किसने बांधा है तथा क्यों बांधा है? कुछ कहते हैं कि जीव का निर्माण जड़ और चेतन दो तत्वों से हुआ है। जड़ और चेतन की गांठ तो जीव को बाद में लगी है। जीव तो जड़ चेतन की गांठ लगने के पहले भी था, क्योंकि जीव को अनादि कहा गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह जीव स्वापनिक संसार की रचना के पहले अनादि रूप में कहाँ था? यह संसार अक्षर पुरुष की नींद में उसके चित्त में बना है। रचना के पूर्व यह जीव उनके चित्त में कल्पना रूपी बीज के रूप में था। स्वप्न की रचना के पहले चित्त के अंदर सृष्टि की रचना हेतु कल्पना रूपी बीज पैदा हुआ, फिर उसी अनुरूप रचना हुई। अक्षर पुरुष की माया शक्ति के तीन गुणों के द्वारा जीव का शरीर निर्मित हुआ तथा इन्ही तीन गुणों के द्वारा कर्म की उत्पत्ति तथा उनके फल को भोगने का बंधन जीव पर लगा दिया गया। जीव जैसा कर्म करेगा उसी के अनुरूप सुख-दुख रूपी फल को प्राप्त करता हुआ जन्म मृत्यु को प्राप्त होता रहेगा। इस प्रकार जीव को कर्म के बंधन में बांधने तथा खोलने का अधिकार अक्षर पुरुष को ही है। स्वप्न का पात्र रचना करने वाले की नींद से बाहर नहीं जा सकता है यह वाक्य कटु सत्य है। इस सिद्धांत के अनुसार जीव कभी भी अपनी तुरिया अथवा तुरीयातीत अवस्था में स्वयं नहीं आ सकता है। इसको अपनी तीन अवस्थाओं(जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) में ही घूमने का अधिकार है। पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत के आदेश से अक्षर पुरुष ने इन जीवों की रचना कर इनको कर्म के बंधन में बांध दिया। इनकी रचना का कारण यह है कि परमधाम की ब्रह्मात्माओं को दुख रूपी जन्म मृत्यु वाला खेल दिखाना था। जब तक इस सृष्टि रचना का कारण समाप्त नहीं हो जाता तब तक इन जीवों का बंधन कायम रहेगा। स्वप्न जगत के जीव नारायण की नींद से कभी बाहर नहीं जा सकते हैं और इनको, नारायण द्वारा रचित 14 लोकों के ब्रह्मांड में स्थित बैकुंठ में कर्मों के अनुसार, चार प्रकार की मुक्ति(सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य तथा सायुज्य) प्राप्त होती है। लेकिन यह मुक्ति स्थाई नहीं है, संसार की पुन: रचना होती है, तो इन जीवों को पुनः शरीर धारण करना पड़ता है। स्वप्न के जीवों की तीन अवस्थाओं में से सुषुप्ति अवस्था में जीव का मन और इच्छा सोई रहती हैं लेकिन यह उनकी आनंद की स्थिति होती है। इसमें जीव का आवागमन नहीं होता है। यह स्थिति उस समय तक रहती है जब तक संसार की रचना पुनः नहीं होती है। अतः यह मुक्ति भी स्थायी नहीं है। जीवों का निज घर तो तुरिया के आगे तुरियातीत अवस्था में है। जीव की स्थायी मुक्ति तो यहीं पर है।   हम सभी भाग्यशाली हैं कि अब इस स्वप्न जगत में ब्रह्मात्माओं का अवतरण हो चुका है और उनके लिए पराज्ञान(ब्रह्म ज्ञान) भी उतर चुका है। जिसके द्वारा जीवों की स्थाई मुक्ति का रास्ता खुल चुका है।                                                                                                                                                                                                                            - बजरंग लाल शर्मा