भोपाल के असली सूरमा भोपाली नाहर सिंह थे -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

भोपाल के असली सूरमा भोपाली नाहर सिंह थे -दिनेश मालवीय हाल ही में बॉलीवुड के मशहूर हास्य कलाकार जगदीप को फिल्मों में अपने  लम्बे करियर में सबसे बड़ी पहचान शोले में उनके द्वारा निभाए गये किरदार सूरमा भोपाली से मिली. इस फिल्म में सूरमा भोपाली को बहुत कॉमिक केरेक्टर के रूप में पेश किया गया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोपाल में जिस शख्स को सूरमा भोपाली कहा जाता था, वह कौन था? शायद ज्यादातर भोपाली भी उसे नहीं जानते होंगे. नई पीढ़ी के भोपालियों से तो इसकी उम्मीद करना भी बेकार है. मशहूर पत्रकार स्वर्गीय नासिर कमाल ने अपने एक लेख में इस असली सूरमा भोपाली के बारे में जो बताया, उससे पता चलता है कि वह बहुत कमाल का क़िरदार था. इस शख्स का नाम नाहरसिंह था. उन्हें लोग प्यार से ‘मामा’ और सूरमा भोपाली कहते थे. वह भोपाल में उसी समय हुए जब शोले फिल्म के लेखक जावेद अख्तर भोपाल में ही रहते थे.ये लोग सैफिया कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे. यह 1960 के दशक की बात है. जावेद ने नाहरसिंह को बहुत करीब से देखा औरवह उनकी हाजिरजबावी और मजाकिया अंदाज से वह बहुत प्रभावित थे. लेकिन शोले में सूरमा भोपाली का जो क़िरदार सामने आया उसमे असली सूरमा भोपाली के नाम के अलावा कोई समानता नहीं थी. नासिर भाई ने लिखा है कि नाहरसिंह एक मंझोले कदकाठी के, काले रंग के बेहद हाजिरजबाव और बहुत बड़े दिल वाले इंसान थे. वह जिंदगी को बहुत बेपरवाह अंदाज़ में जीते थे. हमेशा काला चश्मा और गोल केप पहनते थे. उनके मज़कियापन और लतीफों के खजाने की वजह से वह काफी लोकप्रिय थे और लोग उनसे बहुत प्यार करते थे. किसी भी परेशानी में फँसे अपने दोस्तों की खातिर वह किसी से भी दो-दो हाथ करने को हमेशा तैयार रहते थे. वह किसीसे नहीं डरते थे. इसीलिए उन्हें भोपालियों ने “सूरमा भोपाली” के ख़िताब से नवाज़ा था. वैसे भी उनका नाम नाहर यानी शेर तो था ही. नाहरसिंह को अपनी शैक्षिणक संस्था सैफिया कॉलेज से बहुत मोहब्बत थी. कॉलेज की hocky team बहुत मज़बूत थी, जिसने अनेक टूर्नामेंटों में बड़ी-बड़ी टीमों के छक्के छुड़ा दिए थे. सूरमा भोपाल नगरनिगम में नौकरी करते थे. लेकिन उनके कॉलेज की टीम जहाँ भी खेलने जाती थी, वह वहाँ unofficial cheerleader के रूप में अनिवार्य रूप से मौजूद रहते थे. वह अक्सर रेलवे स्टेशन जाते समय खिलाडियों को उनके घर से लेते थे. मेच के दौरान जब भी उन्हें लगता कि अम्पायर उनकी टीम के साथ ‘नाइंसाफी’ कर रहा है या फिर मुकाबिल टीम रफ खेल रही है, तो वह तपाक से मैदान में कूद जाते थे. जब भिड़ने का मौका आजाता था, तो वह पिंडली की हड्डी, घुटनों और कलाइयों पर हॉकी स्टिक से सधे हुए वार करके सामने वाले को खूना-खून कर देते थे, जिसे अंपायर तक नहीं देख पाता था. ऐसा करने के बाद वह कहते  थे-“फूल खिला दिया” यहाँ तक कि वह टीम के साथ ही ठहरते थे और कभी-कभी अपना सफ़र का खर्च भी ख़ुद ही उठाते थे. नेशनल प्लेयर रहे रफत मोहम्मद खान ने नाहरसिंह के बारे में बहुत-सी बातें लिखी हैं. वह लिखते हैं कि नाहरसिंह बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति थे. सड़क पर कहीं गणेश बीड़ी के बंडल का रेपर पड़ा दिख जाए, तो उसे उठाकर, अनजाने बीड़ीबाजों को गालियाँ देते हुए रेपर को अपनी जेब में रख लेते  थे. बाद में बहुत सम्मान के साथ उसे किसी अच्छी जगह ठिकाने लगा देते थे. रफत खान ने लिखा है कि एक बार सैफिया कॉलेज की टीम ग्वालियर में सिन्धिया गोल्ड कप खेल रही थी. उस वक्त olympian इनाम-उर-रहमान अपने पूर शबाब पर थे. उन्हें रोक पाना मुश्किल होता था. यह मेच ग्वालियर की एक लोकल टीम के साथ था. मुकाबला काँटे का था. अचानक स्टैंड से कोई चिल्लाया-“ पाकिस्तानी है! मारो!” दूसरे ही पल नाहरसिंह स्टैंड के सामने जाकर चिल्लाये “ तुम महासभाई हो”. फिर बोले “ मेरे भोपाल में कोई मुस्लिम किसी हिन्दू खिलाड़ी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं कर सकता. आओ, सामने आओ. मैं तुमसे मुकाबला कर सकता हूं”. इसके बाद वह फूट-फूट कर रो पड़े. उस वक्त ग्वालियर के पुलिस एस.पी. कैलाश सक्सेना थे, जो भोपाल के ही थे. उन्होंने बड़ी मुश्किल से सूरमा को समझाया. जब शोले रिलीज हुयी, तो नाहरसिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उन्हें बदनाम किया गया है. यह मामला अदालत के बाहर निपटा, हालाकि इससे शहर में काफी सनसनी फ़ैल गयी. सन 1979 में एक रात वो नाहरसिंह अपने साथ काम करने वाले एक शख्स को स्कूटर पर नगर निगम की भदभदा चौकी छोड़ने गये. लौटते वक्त एक ट्रक ने उनके स्कूटर को टक्कर मार दी. सूरमा की मौत हो गयी. उन्हीं के साथ ही एक सच्चा भोपाली क़िरदार भी मर गया. तो मियां ऐसे थे अपने असली सूरमा भोपाली