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84 महादेव की धर्मयात्रा अंक 4: डमरूकेश्वर महादेव: नारी सम्मान और धर्म की स्थापना का पावन प्रतीक 

सार

डमरूकेश्वर की यह कथा केवल पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि आज के समाज के लिए भी एक गहन प्रेरणा है।यह हमें तीन अमूल्य सत्य सिखाती है —सत्य और असत्य का संघर्ष शाश्वत है।जब असत्य शक्तिशाली प्रतीत होता है, तब भी सत्य की विजय निश्चित होती है। वज्रासुर का संहार इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है,नारी सम्मान ही मानवता की कसौटी है..!!

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विस्तार

उज्जैन की दिव्य भूमि, जहां प्रत्येक कण में शिवत्व का स्पंदन है, जहां शिप्रा की लहरों में अनादिकाल से भक्ति की गूंज बहती आई है — वहीं रामघाट के समीप स्थित है श्री डमरूकेश्वर महादेव का पावन मंदिर। यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक संदेश है — नारी सम्मान और धर्म की पुनर्स्थापना का, असत्य पर सत्य की अडिग विजय का, और उस दिव्य क्षण का जब स्वयं महादेव ने अपनी डमरू से अन्याय को ललकारा था।

वैवस्वत कल्प का वह समय था जब रूरू नामक एक महाअसुर का पुत्र वज्रासुर अपने अत्याचारों से तीनों लोकों को कंपा रहा था। उसका बल अदम्य था, पर उसकी बुद्धि अहंकार से अंधी हो चुकी थी। उसने देवताओं के लोकों पर अधिकार कर लिया, वेद पाठ और यज्ञ जैसे पुण्य कर्म रोक दिए, और धर्म का प्रकाश बुझाने का प्रयास किया।देवता भयभीत थे, ऋषिगण व्याकुल। तभी ब्रह्मांड में एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई — एक तेजस्विनी स्त्री, जो समस्त देवियों की आदिशक्ति का रूप थी। उसके अट्टहास से अनेकों देवियां उत्पन्न हुईं जिन्होंने असुर के विरुद्ध संग्राम छेड़ दिया। परंतु छल में निपुण वज्रासुर ने अपनी माया से देवियों को मोह में डाल दिया और उन्हें भ्रमित कर दिया।

नारी की अस्मिता जब संकट में पड़ी, तब देवर्षि नारद ने महाकालवन में तपस्यारत भगवान शिव से सहायता की याचना की।शिव की करुणा जब नारी के प्रति पीड़ा में परिवर्तित हुई, तब उनका क्रोध रौद्र बन उठा। उन्होंने उत्तम भैरव का रूप धारण किया — नेत्रों से ज्वाला, मस्तक पर चंद्रमा, और हाथों में डमरू।

फिर आरंभ हुई वह दिव्य गर्जना, जिससे दिशाएं कंपायमान हो उठीं। जैसे ही डमरू बजा, उसके नाद से एक ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हुआ — वही डमरूकेश्वर लिंग, जो आज भी शिप्रा तट पर विद्यमान है।उस लिंग से निकली अग्निज्वाला ने वज्रासुर का अंत कर दिया। असुर का अहंकार भस्म हुआ और धर्म का सूर्य पुनः उदित हुआ।देवताओं ने उस स्थल को डमरूकेश्वर नाम दिया, जहां महादेव की डमरू से अधर्म का संहार हुआ था।

शिप्रा तट के राम घाट की सीढ़ी के ऊपर स्थित यह मंदिर आज भी अपनी पवित्रता और ऊर्जा से ओतप्रोत है। इसके समीप तोलापुरी मठ में प्राचीन गुरुगादी और बारह समाधियाँ विद्यमान हैं, जो साधना और तपस्या की अमिट परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।

यहां आने वाले श्रद्धालु कंकू, अक्षत, बेल पत्र, मोली, श्रीफल और प्रसाद अर्पित कर महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कहते हैं — डमरूकेश्वर के दर्शन मात्र से दुःखों का नाश होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह स्थान केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आत्मबोध का केंद्र है, जहां भक्त अपने भीतर के असुर को पहचानकर उसे समाप्त करने का संकल्प लेते हैं।

डमरूकेश्वर की यह कथा केवल पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि आज के समाज के लिए भी एक गहन प्रेरणा है।यह हमें तीन अमूल्य सत्य सिखाती है —सत्य और असत्य का संघर्ष शाश्वत है।जब असत्य शक्तिशाली प्रतीत होता है, तब भी सत्य की विजय निश्चित होती है। वज्रासुर का संहार इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है।नारी सम्मान ही मानवता की कसौटी है।

                                                                                                                       Image

वज्रासुर ने जब देवियों का अपमान किया, तब स्वयं शिव को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसका तात्पर्य है कि नारी की अस्मिता पर संकट आने पर मौन रहना अधर्म के समान है।जो नारी की रक्षा करता है, वही देवत्व को प्राप्त करता है।जो नारी के सम्मान के लिए खड़ा होता है, वह स्वयं शिवत्व का अंश बन जाता है। जो उसका अपमान करता है, वह असुरता के मार्ग पर चलता है।

आज जब आधुनिक समाज में नारी के प्रति अत्याचार, हिंसा और असमानता की घटनाएं बढ़ रही हैं, तब डमरूकेश्वर मंदिर की कथा एक दर्पण बनकर हमें यह स्मरण कराती है —कि नारी का सम्मान केवल नैतिकता का प्रश्न नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है।महादेव की डमरू की वह गूंज आज भी शिप्रा के जल में, मंदिर की दीवारों में, और श्रद्धालुओं के हृदय में सुनाई देती है —“जहां नारी का अपमान होगा, वहीं अधर्म का अंत भी सुनिश्चित है।”

महाकाल की नगरी में स्थित यह मंदिर आज भी धर्मयात्रियों को यह प्रेरणा देता है कि जैसे महादेव ने देवियों की रक्षा हेतु डमरू उठाई, वैसे ही प्रत्येक समाज को भी अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए।यह स्थान हमें सिखाता है कि नारी केवल पूजनीय नहीं, बल्कि सृष्टि की संचालक शक्ति है।जब उसका सम्मान सुरक्षित है, तभी संसार में शांति और धर्म स्थिर रह सकता है।डमरूकेश्वर महादेव केवल एक मंदिर नहीं — यह वह चेतना है, जो समाज को जाग्रत करती है।

यह वह डमरू है, जिसकी गूंज युगों से यही कहती आई है  “नारी सम्मान ही धर्म है, और धर्म की रक्षा ही मानवता का परम कर्तव्य।”