राजनीति में एआई का प्रतिगामी यूज लोकतंत्र की चिंता बढ़ा रहा है. विरोधी की छवि खराब और बदनाम करने का एआई टूल बन गया है. प्रधानमंत्री की स्वर्गवासी माताजी के एआई जेनरेटेड वीडियो पर राजनीतिक विवाद बना हुआ है..!!
राजनीति में एआई का प्रतिगामी यूज लोकतंत्र की चिंता बढ़ा रहा है. विरोधी की छवि खराब और बदनाम करने का एआई टूल बन गया है. प्रधानमंत्री की स्वर्गवासी माताजी के एआई जेनरेटेड वीडियो पर राजनीतिक विवाद बना हुआ है.
इसके लिए दिल्ली पुलिस द्वारा कांग्रेस आईटी सेल के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कर ली गई है. यह वीडियो पटना कांग्रेस कमेटी द्वारा अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया गया है. वीडियो में कांग्रेस के मंच से कहे गए अपशब्द को पीएम द्वारा राजनीतिक मुद्दा बनाए जाने पर स्वर्गवासी माँ अपने व्यूज दे रही हैं. पहले तो कांग्रेस यह मानने को तैयार नहीं थी कि उसके मंच से कांग्रेस के किसी कार्यकर्ता द्वारा गाली दी गई है. जब यह मुद्दा गर्माने लगा तो फिर इस पर सफाई दी जाने लगी. अब इस बात को एआई वीडियो के माध्यम से अपने ऑफिशियल हैंडल पर अपलोड कर कांग्रेस ने एक तरीके से यह स्वीकार कर लिया है, कि गाली कांड से उसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संबंध रहा है.
बिहार में अभी चुनाव शुरू नहीं हुआ है. इसके पहले ही एआई जेनरेटेड डीपफेक वीडियो के गोले दागे जा रहे हैं. एआई की तकनीक अनेक क्षेत्रों में समाज के लिए उपयोगी साबित हो रही है, तो राजनीति में इसका दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है. कांग्रेस जिस दिशा में आगे बढ़ रही है उससे तो यही लगता है कि वह देश में डीपफेक इलेक्शन चाहती है. कांग्रेस का टारगेट एक ऐसा वर्चुअल एहसास निर्मित करना है, जिससे उसके विरोधियों की छवि खराब हो. उन्हें बदनाम किया जा सके. ऐसा वातावरण बनाया जा सके जिससे कि जमीनी हकीकत पर लोकतंत्र खड़ा होने की वजाए डीपफेक मुद्दों पर चुनावी लड़ाई को खड़ा किया जा सके.
एआई का उपयोग पूरी दुनिया में चुनावी राजनीति में एक सशक्त हथियार के रूप में बढ़ता जा रहा है. अब तो ऐसे वीडियो को लाखों के व्यूज मिलते हैं. वर्चुअल दुनिया भावनाओं पर काम नहीं करती, बल्कि एल्गोरिदम उसका आधार होता है. इसके लिए जो उसमें अपलोड किया जाता है, वही डाटा जेनरेट होता है. एआई डिजिटल गवर्नेंस में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहा है.
अल्बानिया दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है, जिनके पास एक एआई मंत्री है. यह कोई इंसान नहीं है, बल्कि पिक्सल और कोड से बनी एक वर्चुअल मंत्री है. जो पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुताबिक काम करती है. इसका नाम डिएला रखा गया है. इसे सरकारी फंडिंग प्रोजेक्ट्स और पब्लिक टेंडरों में भ्रष्टाचार को रोकने की जिम्मेदारी दी गई है. भारतीय चैनलों में भी एआई एंकर बहुत पहले से इंट्रोड्यूस किए गए हैं.
राजनीति में इसका जिस तरह से दुरुपयोग चालू हुआ है, उसका अंत कहां जाकर रुकेगा इस पर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता. कोई एक दल नहीं सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दल एआई जेनरेटेड कंटेंट का सहारा ले रहे हैं. कांग्रेस की गलती यही है, कि उसने पीएम की माँ का वीडियो अपने ऑफिशियल हैंडल पर डाला है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लेकर भी बहुत सारे एआई जेनरेटेड वीडियो पब्लिक डोमेन में सर्कुलेट हो रहे हैं, लेकिन उनकी जिम्मेदारी कोई राजनीतिक दल लेने को तैयार नहीं है. सरकारों के सामने एआई तकनीक की चुनौती बढ़ती जा रही है.
राज और नीति से बने राजनीति कभी भी नीति से नहीं चलती. उसकी नीति जीत कर सत्ता हासिल करना है. इसके लिए किसी भी अनीति का सहारा लिया जा सकता है. एआईसे हासिल कृत्रिम बुद्धिमत्ता का भी इसी अनीति में उपयोग किया जा रहा है. चुनावी विश्लेषण भी इस पर निर्भर करते हैं. चुनाव आयोग डिजिटल वोटर लिस्ट इसीलिए राजनीतिक दलों को नहीं दे रही है. एक बार यह डाटा डिजिटल फॉर्मेट में लीक हो गया तो फिर एआई के जरिए इनका किस-किस तरह से दुरुपयोग किया जाएगा, इस पर किसी का भी नियंत्रण नहीं रहेगा. डीपफेक फोटो और जेनरेटेड कंटेंट से पूरी मतदाता सूची अवैध घोषित कराई जा सकती है.
इसमें राजनीतिक नैतिकता का भी सवाल है. वैसे नैतिकता और नीयत की कल्पना राजनीति से करना अब बुद्धिमानी का विषय नहीं रह गया. चुनाव के समय ऐसे-ऐसे मुद्दे और उनसे जुड़े डीपफेक वीडियो प्रचलन में आ जाते हैं, कि रोटी, कपड़ा, मकान जैसे लोकतंत्र के बुनियादी मुद्दे गायब हो जाते हैं. सभी राजनीतिक दल ऐसा चाहते हैं, कि बुनियादी मुद्दों पर जनता में चर्चा ना हो. ऐसे मुद्दों पर चुनावी जंग लड़ी जाए जो भावना से जुड़े हों, जाति और धर्म से जुड़े हों. सोशल मीडिया से जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन इससे साइबर और पॉलिटिकल फ्रॉड भी बढ़ते जा रहे हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी की मां का एआई जेनरेटेड वीडियो कांग्रेस की बुद्धिमत्ता का फेक यूज ही कहा जाएगा. समाज फेक न्यूज़ से परेशान है और राजनीतिक दल फेक न्यूज़ और फेक वीडियो फैलाकर एक फेक बेस बनाना चाहते हैं. गलत कंटेंट से चुनावी हेर-फेर की संभावना बढ़ती है.
राजनीतिक दलों की एआई पॉलिटिक्स चुनावी परिणामों में जनता के विश्वास और भरोसे को खत्म कर सकती है. इसकी नियामक चुनौतियां भी हैं. नेताओं और राजनीतिक दलों को एआई की विघटनकारी क्षमता के बारे में पूरी तरह से अवगत होना जरूरी है.