राहुल गांधी का एटम बम और हाइड्रोजन बम कर्नाटक में असेंबल हो रहा है. दिल्ली में राहुल गांधी के हाथों फोड़ा जा रहा है. यह बम जो जो थमा रहे हैं, वह एक सियासी जाल है, जिसमें राहुल गांधी उलझते दिखाई पड़ रहे हैं..!!
जब पहले पत्रकार वार्ता राहुल गांधी ने की थी तब कर्नाटक के एक मंत्री ने वोट चोरी पर कांग्रेस के आधिकारिक रुख के एकदम विपरीत स्टैंड लिया था. जिससे कांग्रेस आलाकमान को शर्मिंदगी हुई. कांग्रेस ने कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के. राजेन्ना को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया. अब फिर राहुल गांधी ने कर्नाटक से ही एक विधानसभा आलंद में वोटर डिलीशन पर आरोप लगाया है.
ऐसा लगता है कि राज्य में सीएम और डिप्टी सीएम गुटों के बीच जो खींचतान चल रही है, इस सियासी जाल में राहुल गांधी उलझते जा रहे हैं. राहुल गांधी के आरोपों पर इलेक्शन कमीशन की ओर से प्रतिक्रिया में बहुत स्पष्टता से कहा गया है, कि किसी भी मतदाता का नाम ऑनलाइन डिलीट नहीं हो सकता. डिलीशन के पहले संबंधित मतदाता को सुनवाई करने का मौका अनिवार्य रूप से मिलेगा.
जिस आलंद विधानसभा क्षेत्र को लेकर राहुल गांधी 6018 वोटो के डिलीशन की बात कर रहे हैं उस पर आयोग द्वारा कहा जा रहा है, कि इतने आवेदन जरूर आए थे, लेकिन वेरिफिकेशन में केवल 24 मतदाताओं के नाम डिलीट किए गए थे. चुनाव आयोग ने पाया था, कि कुछ लोगों का नाम डिलीट करने के लिए साजिशन प्रयास किया जा रहे हैं. इसलिए उसके खिलाफ आयोग की मशीनरी ने एफआईआर दर्ज कराई थी.
इसी मामले की जांच कर्नाटक की सीआईडी कर रही है. राहुल गांधी ने सीआईडी जांच से जुड़े तथ्य सार्वजनिक करके संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया है. अगर इस पर कोई टिप्पणी की जानी थी तो वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री या पुलिस प्रमुख द्वारा ही करना संविधान सम्मत माना जाएगा. दुर्भाग्य है कि राहुल गांधी जब संविधान के विरुद्ध आचरण कर रहे थे, तब संविधान बचाने का दावा भी पेश कर रहे थे.
पत्रकारों के सवाल पर कि क्या वह इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाएंगे, तो राहुल गांधी कहते हैं, कि वह लोकतंत्र के प्रोटेक्टर नहीं हैं. अदालत सहित जो प्रोटेक्टर हैं, उन्हें स्वत: इस पर संज्ञान लेना चाहिए. जब राहुल गांधी के आरोप तथ्यात्मक हैं, तब उन्हें ना तो चुनाव आयोग को शपथ पत्र देने से डरना चाहिए और ना ही अदालत में जाकर चुनाव प्रक्रिया शुद्धिकरण के लिए लड़ाई लड़ने से बचना चाहिए.
राहुल गांधी के आरोपों और चुनाव आयोग की ओर से स्पष्टीकरण से कांग्रेस को वैसे ही शर्मिंदगी हुई है, जैसी कर्नाटक के मंत्री के बयान से हुई थी. अब सवाल यह उठता है, कि जो मामला दो साल पुराना है, उसके बारे में तथ्यात्मक खबरें मीडिया में प्रकाशित हो चुकी हैं. उन्हीं बातों को राहुल गांधी द्वारा क्यों उठाया गया. इसको राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए राहुल गांधी को किसने दिया.
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार आंतरिक कारणों से संकट में है. जब सरकार बनी थी तब सिद्धा रमैया और डी. के. शिवकुमार के बीच ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का वायदा राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने किया था. पहला कार्यकाल सिद्धा रमैया को दिया गया था. उनके ढाई साल पूरे हो गए. तब डी. के. शिवकुमार की ओर से वायदा पूरा करने के लिए कहा गया, लेकिन राहुल गांधी मुकर गए.
तब से वहां आंतरिक खींच-तान सरकार को संकट में डाल रही है. लगता तो यही है, कि वोट चोरी के आरोप बिना तथ्यों के लगाने के लिए कांग्रेस के एक गुट द्वारा राहुल गांधी को ऐसी जानकारियां दी गईं.
क्या यह राहुल गांधी के खिलाफ कोई राजनीतिक साजिश है? कर्नाटक के राजनीतिक हालात तो यही बता रहे हैं कि वहां से राहुल गांधी को एक्सपोज करने का कोई अभियान चलाया जा रहा है.
लोकतंत्र में अराजकता और अनरेस्ट फैलाने का आरोप राहुल गांधी पर बीजेपी लगा रही है. उसका यह भी कहना है, कि बांग्लादेश जैसा राहुल गांधी देश के लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ झूठ फैलाकर अराजकता पैदा करना चाहते हैं.
राहुल गांधी जिन मुख्य चुनाव आयुक्त पर सीधा आरोप लगा रहे हैं, उनकी नियुक्ति की कमेटी में राहुल गांधी भी शामिल थे. मिनट्स में उनके भी हस्ताक्षर होंगे, जिनको नियुक्त करने में वह स्वयं भागीदार हैं. उन पर दो साल पुराने मामले में चोरी जैसे आरोप लगाना नाजायज है.
राहुल गांधी की राजनीति समझना मुश्किल हो गया है. वह झूठे आरोपों के सहारे अपना आधार बढ़ाना चाहते हैं. यह तो वैसे ही है जैसा राहु नाम के ग्रह ने किया था. चुपके से बैठकर देवताओं के साथ अमृत पान कर लिया.
लोकतंत्र क्या ऐसे ही राहुकाल से गुजर रहा है? जिसमें झूठ का सहारा लेकर सत्ता का अमृत चखने की कोशिश हो रही है.
भेड़िया आया भेड़िया आया यह कहानी बहुत पुरानी है. भेड़िया की कहानी बार-बार झूठ कहते कहते जब सही में भेड़िया आये तो कोई बचाने नहीं गया. राहुल गांधी भी वोट चोरी का भेड़िया बार-बार दिखा रहे हैं. उनकी नीयत पर शक नहीं है, लेकिन उनकी जुबानी भेड़िया की कहानी कभी सही होने पर भी देश भरोसा नहीं कर पाएगा.