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राजनीति में वंशवाद से भ्रष्टाचार आबाद

सार

    भारत के पड़ोसी देश नेपाल में राजनीतिक भ्रष्टाचार देश को लील गया. नेपाल के प्रधानमंत्री को पद छोड़ना पड़ा. नेपाल छोड़कर भी उन्हें भागना पड़ सकता है. नेपाल सरकार के मंत्रियों की पिटाई हो रही है..!!

janmat

विस्तार

    राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास संसद और मंत्रियों के घरों को आग के हवाले किया जा रहा है. नेपाल जल रहा है. राजनेता और राजनीतिक परिवार जान बचाने के लिए छिपते फिर रहे हैं. इन हालातो के लिए नेपाल सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगाए गए प्रतिबंध को भले ही तात्कालिक कारण माना जा रहा है, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक परिवारों और सरकारी तंत्र का भयावह भ्रष्टाचार रहा है. देश के युवाओं ने जब अपना भविष्य अंधकार में देखा तो भ्रष्ट पॉलिटिक्स के खिलाफ विद्रोह कर दिया. अभी भी वहां  स्थितियां भयावह बनी हुई हैं.

    भारत और नेपाल पड़ोसी हैं. दोनों देशों के अच्छे रिश्ते हैं. वहां राजनीतिक भ्रष्टाचार से उत्पन्न विद्रोह पर भारत की सजगता जरूरी है. भारत के लगभग सभी पड़ौसी देश श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मालदीव और म्यांमार में अराजक स्थितियां बनी हुई हैं. श्रीलंका और बांग्लादेश में तो तख्ता पलट हो चुका है. सभी देशों में राजनीतिक भ्रष्टाचार प्रमुखता से उछलता रहता है. इन सभी देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. महंगाई चरम पर है.

    नेपाल के हालात दुनिया भर की सरकारों के लिए चिंता का सबब हैं, क्योंकि सरकारों में भ्रष्टाचार आम बात है. भारत भी उससे अछूता नहीं है. यहां भी करप्शन बड़ा मुद्दा बनता रहा है. करप्शन के आरोपों पर भारत में सरकारों का बदलाव क्रांति की संभावनाओं को कमजोर कर देता हैं. अगर भारत में 2014 में सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ होता तो करप्शन को लेकर यहां भी विद्रोह जैसे हालात पैदा हो सकते थे.

    नेपाल के हालात यही संकेत कर रहे हैं कि भारत सहित हर देश की सरकार को राजनीतिक और ब्यूरोक्रेटिक भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाना चाहिए. भ्रष्टाचार के मामले पर कई देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ है. पिछले तीन आम चुनाव से सरकार में बदलाव इसीलिए नहीं हुआ, क्योंकि राजनीतिक भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सामने नहीं आया. यद्यपि विपक्षी दल चुनावी राजनीति में करप्शन को सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाते हैं, लेकिन वह प्रभावहीन साबित हो जाते हैं. 

    इसका कारण यह है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की ऐसी छवि है, जिस पर भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप चस्पा नहीं हो पाता. मुख्यमंत्री के रूप में भी उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे. सांप्रदायिकता के आरोप जरूर उन पर लगते रहे हैं. लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप कभी भी उन पर नहीं लगाए जा सके.

    भारत की राजनीति में वंशवाद ही आगे बढ़ता रहा. आजादी के समय से ही गांधी परिवार की रहनुमाई में कांग्रेस ने सत्ता चलाई. भले ही केंद्र में कांग्रेस आज सत्ता में नहीं है, लेकिन कुछ राज्यों में उनकी सरकारें हैं. कांग्रेस वंशवाद पर ही कायम है. आज भी इस पार्टी का दारोमदार गांधी परिवार विशेष कर राहुल गांधी पर टिका हुआ है. राजनीतिक परिवारों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते हैं. यहां तक कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी नेशनल हेराल्ड से जुड़े केस में अदालत में मामला चल रहा है. 

    भारत में प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों पर अगर नजर डाली जाएगी, तो गांधी परिवार के अलावा उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव परिवार, बिहार में लालू यादव की फैमिली, बंगाल में ममता बनर्जी का परिवार, तमिलनाडु में एमके स्टालिन फैमिली, महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार मुख्य रूप से सक्रिय दिखाई पड़ते हैं. इन परिवारों से जुड़ी पर्टियों में वंशवाद का ही फेस पार्टी पर काबिज़ होता है. इन सभी परिवारों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं.       

    सभी राज्य सरकारें घाटे में हैं. कर्जों पर सरकारें चल रही हैं. इसके बाद भी राजनेताओं और उनके परिवारों का रहन-सहन, शानो-शौकत आम जनता को चिढ़ाता है. सरकारी दल के पास तो सिस्टम है, करप्शन की गुंजाइश है, लेकिन विपक्षी नेता भी जिस ठाठ-बाट से रहते हैं, वह राजनीति को सबसे लाभकारी धंधा स्थापित करता है. एक बार चुनाव जीत लेना जीवन भर के लिए जरूरी संपत्ति बनाने की गारंटी बन जाता है.

       भारत में प्रभावी राजनीतिक परिवारों को अपनी इमेज को लेकर सावधान होने का समय है. उनकी लाइफ स्टाइल शानो-शौकत और अकूत संपत्तियां सोशल मीडिया के जमाने में देश से छिपी नहीं रह सकतीं. देश के लोगों को वास्तविकता समझ में आ ही जाती है. अस्थिर पड़ौसियों के बीच भारत की अर्थव्यवस्था तेज गति से बढ़ रही है. भ्रष्टाचार रोकने के लिए और गंभीर कदम उठाने की जरूरत है. भारत का युवा भी बहुत लंबे समय तक राजनीति में वंशवाद को शायद अब बर्दाश्त नहीं करेगा. 

    दूसरों का हश्र देखकर खुद को सुधारना ही बुद्धिमान की निशानी है. भारत के राजनीतिक परिवारों को सुधरने का वक्त है. दूसरे को चोर कहने से खुद की चोरी नहीं छुपेगी. भ्रष्टाचार के अकूत पैसों से राजा बाबू की पॉलिटिक्स लंबी चलना मुश्किल दिखाई पड़ता है.