उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस गठबंधन केवोट चोरी हो गए हैं. एनडीए प्रत्याशी सी पी राधाकृष्णन को उनके गठबंधन की संख्या से अधिक वोट मिले हैं..!!
कांग्रेस गठबंधन के 15 सांसदों ने क्रास वोटिंग की है. इस क्रॉस वोटिंग का मतलब वोट चोरी के साथ खुली बगावत भी है. क्रॉस वोटिंग पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी कहते हैं, “Tha main nara these days is वोट चोर गद्दी छोड़ and that is being proved across the country we will prove it again and again in more and more dramatic ways.”
राहुल गांधी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि उनका यह नारा राजनीति का नाटकीय तरीका है. भविष्य में भी ऐसे नाटकीय तरीकों का उपयोग उनके द्वारा किया जाएगा. लोकतंत्र की राजनीति करने वाले राहुल गांधी ऐसे अलोकतांत्रिक आरोपों से खुद अपना पैर कुल्हाड़ी पर रख रहे हैं. राहुल गांधी ने उपराष्ट्रपति चुनाव में वैचारिक लड़ाई का नारा देकर अपने गठबंधन का प्रत्याशी उतारा था. परिणाम यह निकला कि गठबंधन के प्रत्याशी को अपनी ही पार्टी के पूरे मत दिलाने तक में राहुल गांधी असफल हो गए. वैचारिक लड़ाई का नारा खुद की पार्टी में वोट चोरी पर आ गया.
कांग्रेस का ढांचा चरमरा गया है. उसके संचालन के तरीकों और सांसदों के विचार में मतभेद है. उस मतभेद को दूर करने के बदले राहुल गांधी कांग्रेस में भाजपा तलाशने लगते हैं. क्रॉस वोटिंग की जांच होना चाहिए, लेकिन पार्टी में जो भी राहुल गांधी के वैचारिक विरोधी हैं, उन सांसदों को इसमें लपेट दिया जाएगा. यह जानना कोई मुश्किल नहीं है, कि किस सांसद ने पार्टी लाइन के खिलाफ वोट दिया है.
कांग्रेस की यह जानने में कोई रुचि नहीं दिखती है. कांग्रेस तो राहुल गांधी की गलत बात को को भी सही साबित करने में जुट जाती है. जो नेता या सांसद खुलकर अपनी बात रखते हैं, उनको बागी मान लिया जाता है. इसके पहले राष्ट्रपति के चुनाव में भी कई राज्यों में कांग्रेस के विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी. https://x.com/ANI/status/1966073315526611449
मध्य प्रदेश में ही लगभग 20 विधायकों ने एनडीए उम्मीदवार वर्तमान राष्ट्रपति के पक्ष में मतदान किया था. उस समय ऐसा कहा गया था, कि पार्टी इसकी जांच कराएगी. और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी. फिर बाद में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. क्रॉस वोटिंग पार्टी के साथ क्रॉस फायरिंग जैसा है. दोनों तरफ से फायरिंग हो रही है. कांग्रेस ऐसे सांसदों को बागी स्थापित करना चाहती है और ऐसे सांसद अपने को वैचारिक रूप से सशक्त बताने में लगे हैं.
ऑपरेशन सिंदूर के समय भी कांग्रेस का ऐसा ही रुख़ था. विदेश जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल में जिन कांग्रेस सांसदों को सरकार द्वारा भेजा गया था, उन्हें तो कांग्रेस में बागी मान ही लिया गया है. वाइस प्रेसिडेंट के चुनाव में भी क्रॉस वोटिंग के लिए कम से कम उन सांसदों को तो कांग्रेस में जिम्मेदार माना ही जा रहा होगा.
क्रॉस वोटिंग से बढ़ी किसी भी पार्टी की पराजय नहीं हो सकती. इसका मतलब यह होता है, कि पार्टी के सांसद, संगठन के तरीके और लीडरशिप के विचारों से असहमत हैं. यह एक तरह से पार्टी के खिलाफ़ खुला युद्ध है. जिन कांग्रेस सांसद ने क्रॉस वोटिंग की है उनका अगले चुनाव के पहले पार्टी से प्रस्थान भी हो सकता है.
कांग्रेस के अलावा शिवसेना उद्धव ठाकरे और एनसीपी शरद पवार गुट के सांसदों के क्रास वोटिंग की संभावना है. आम आदमी पार्टी के सांसदों द्वारा भी एनडीए उम्मीदवार के लिए मतदान करना बताया जा रहा है.
कांग्रेस सहित विपक्षी राजनीतिक दल सोशल मीडिया एक्टिविस्ट के रूप में ज्यादा सक्रिय दिखाई पड़ते हैं. उनके अधिकांश नेता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी बात कहकर ऐसा मान लेते हैं कि देश उनके विचारों से सहमत है. वोट चोरी के आरोपों में भी ऐसी ही गलतफ़हमी काम कर रही है.
नेपाल का GEN-Z विद्रोह राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ा सबक है. युवाओं के इस आंदोलन में 28 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को शामिल नहीं किया गया. युवा यह मानते हैं, कि इस उम्र के बाद व्यक्ति युवा नहीं होता. उसकी और युवाओं की सोच में अंतर होता है. दूसरी तरफ 56 साल के राहुल गांधी को कांग्रेस युवा मानती है. GEN-Z आंदोलन का सबसे बड़ा सबक राजनीतिक परिवारों के लिए है. भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के लिए है, वंशवादी राजनीति के लिए है. राजनीतिक तानाशाही के खिलाफ है. इन संदेशों को राहुल गांधी और कांग्रेस को पढ़ना और गुनना चाहिए.
सोशल मीडिया इक्सट्रिमिज्म एक पॉलिटिकल टूल किट बन गया है. सोशल मीडिया प्रेक्टिस से सोशल जस्टिस नहीं आएगा. इसके लिए जमीन पर एक्शन करना होगा. ऐसा आचरण दिखाना होगा, जिसमें ईमानदारी दिखती हो. राजनीतिक बेईमानी और आरोपों की नाटकीयता आजकल कांग्रेस में ज्यादा हो रही है. सरकार की आलोचना भी लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीके से ही हो सकती है.
कांग्रेस कमजोर होती गई है, लेकिन राहुल गांधी और उनकी सेना मजबूत होती गई है. GEN-Z के छिपे संदेशों नहीं समझने की गलती कांग्रेस को नहीं करनी चाहिए. युवा झूठ और सच का अंतर समझता है . ये पब्लिक है सब जानती है. सरकार और विपक्ष दोनों की भूमिकाएं जानती है.