केंद्र और राज्य के सरकारी तंत्र में आठवें पे कमीशन की खुशी है. वेतन और पेंशन दोनों में इजाफा होगा. वेतन आयोग लागू होने के बाद जो रिटायर होंगे, उन्हें ज्यादा फायदा होगा. जो उसके पहले रिटायर हो जाएंगे, उन्हें थोड़ा कम होगा..!!
सभी राज्यों में केंद्रीय वेतनमान के अनुरूप वेतनमान लागू है. राज्य सरकारें केंद्र के वेतन आयोग की लागू की गई सिफारिशों को राज्यों में उनके वेतनमान के अनुरूप बहुत कम समय में लागू कर सकते हैं. कर्मचारी ऐसा मानकर चल रहे हैं कि अगले चुनाव के पहले तो इसका लाभ मिल ही जाएगा. चुनाव एक ऐसा अवसर होता है, जब सरकारी तंत्र की वाजिब मांगे मान ली जाती हैं.
केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर सरकारी पद बड़ी संख्या में रिक्त पड़े हुए हैं. राज्यों में प्रमोशन में आरक्षण की नीतियों पर न्यायिक रोक के कारण प्रमोशन रुके हुए हैं. पे कमीशन की खुशी प्रमोशन पॉलिसी के गम में गुम हो जाती है. केवल प्रमोशन के पद खाली नहीं है, बल्कि एंट्रेंस लेवल पर भी बड़ी संख्या में पद खाली हैं. इसका कारण सरकारों की खराब वित्तीय स्थितियां हैं. साथ ही भर्ती प्रक्रिया में कानूनी दांव-पेंच भी. भर्ती के लिए काम करने वाले आयोग, मंडल जब भी भर्तियों की प्रक्रिया प्रारंभ करते हैं, तो कभी पेपर लीक के कारण, कभी आरक्षण के कारण, यह अभियान रुक जाते हैं.
मध्य प्रदेश में ओबीसी रिजर्वेशन को लेकर कानूनी विवाद चल रहा है. वर्तमान में 14 प्रतिशत आरक्षण लागू है, जबकि सरकारें ओबीसी को 27 परसेंट देना चाहती हैं. इसका पहला आदेश कमलनाथ की सरकार में निकला था. तब से लेकर अब तक यह मामला अदालत में उलझा हुआ है. जब भी भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ होती है, तब कोई नया आवेदन अदालत में चला जाता है. पूरी प्रक्रिया रुक जाती है. रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है. हर राजनीतिक दल चुनाव में इसके लिए लोक-लुभावन वायदे करते हैं.
अभी बिहार में तो दोनों गठबंधन करोड़ों सरकारी नौकरी देने का वादा कर रहे हैं. मध्य प्रदेश में भी भर्तियां प्रभावित हो रही हैं. लगभग नौ साल पहले प्रमोशन में आरक्षण की पॉलिसी पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. वर्तमान सरकार ने व्यापक विचार विमर्श के बाद नई प्रमोशन पॉलिसी घोषित की थी, लेकिन इस पर भी कोर्ट का स्टे हो गया. अदालत ऐसा संख्यात्मक आंकड़ा सरकार से मांगती है, जिससे यह साबित हो, कि सरकारी पदों में किन वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं है.
राज्य सरकार ने जब यह आंकड़ा पहली बार उच्च न्यायालय में पेश किया, तब न्यायाधीश महोदय की टिप्पणी गौर करने लायक है. जब आरक्षित पद पहले से भरे हुए हैं, तो फिर समानता के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन की आवश्यकता क्यों है? यह आंकड़ा एक बार में सरकार नहीं दे पाई, धीरे-धीरे दे रही है. जब दोबारा कोर्ट में आंकड़ा दिया गया, तब यह तथ्य सामने आया कि मध्य प्रदेश में सरकारी तंत्र में 58 प्रतिशत पद खाली हैं.
इसका मतलब वर्तमान में टोटल संख्या का केवल 42 प्रतिशत अमला ही पूरी सरकार का कामकाज संभाल रहा है. सरकार तो चल ही रही है. इसका मतलब कि आधे स्टाफ में ही काम चल सकता है. फिर सरकार का बोझ बढ़ाने की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए? कोई सरकार यह कहने को तैयार नहीं है, कि इतनी बड़ी संख्या में पद खाली होने के बाद भी उनकी सरकार के संचालन में बुनियादी समस्याएं आ रही हैं. मतलब सरकारी पदों का सरकार के संचालन का कोई सीधा संबंध नहीं है.
सीधी भर्ती के पदों में भर्ती के लिए बने आयोग और मंडल की कार्य प्रणाली भी सवालों के घेरे में रहती है. कोई राज्य नहीं है, जहां भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने की घटनाएं न होती हों. मध्य प्रदेश में तो व्यावसायिक परीक्षा मंडल का घोटाला राष्ट्रीय सुर्खियां बन चुका है. अब राज्य के मुख्यमंत्री यह घोषणा कर रहे हैं, कि एक नया कर्मचारी चयन आयोग बनाया जाएगा. जो सभी विभागों की भर्तियां एक ही परीक्षा के जरिए करेगा.
हर मुख्यमंत्री के सामने चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता का प्रश्न खड़ा रहता है. हर मुख्यमंत्री नई प्रक्रिया बनाने की कोशिश करता है. इसी कड़ी के अंतर्गत व्यापम का गठन किया गया था. उसके पहले भी कर्मचारी चयन मंडल बनाए गए थे. अब घोषणा के मुताबिक नया आयोग भी अस्तित्व में आ जाएगा. अब तक के अनुभव तो चयन आयोगों की निष्पक्षता प्रमाणित नहीं करते हैं. नए आयोग के गठन से कार्यप्रणाली कैसे सुधरेगी? जब कार्य प्रणाली सुधारने की कोशिश नहीं की जाएगी तो फिर पारदर्शिता और निष्पक्षता कहां से आएंगे.
सामाजिक न्याय का एक पक्ष अन्याय से जुड़ जाता है. सामाजिक न्याय में समाधान होना चाहिए. समाधान सहमति पर आधारित होता है. ऑल इंडिया सर्विसेज में प्रमोशन में रिजर्वेशन नहीं है. सीधी भर्ती में रिजर्वेशन समानता का अच्छा प्रयास हो सकता है, लेकिन प्रमोशन में रिजर्वेशन से नए तरह की असमानता विकसित होती है. इसलिए न्यायालयों के दृष्टिकोण को राजनीतिक सरकारों को समझने की जरूरत है. प्रमोशन में रिजर्वेशन पूरी तरह से खत्म करना समानता का न्याय होगा.
प्रमोशन में ओबीसी का रिजर्वेशन नहीं है, अगर प्रमोशन में रिजर्वेशन खत्म नहीं किया गया तो आगे चलकर यह मांग उठेगी. रिटायरमेंट जिस तेजी से हो रहे हैं उससे सरकारों में अमले की संख्या और भी घटती जाएगी. डिजिटल गवर्नेंस के कारण सरकारी तंत्र का पुराना अमला उतना प्रभावी नहीं बचा है.
पूरी सरकारें संविदा और आउटसोर्स के भरोसे चल रही हैं. इतनी बड़ी संख्या में पद खाली हैं, फिर भी वेतन भत्तों पर खर्च कम नहीं हो रहा है. यही बताता है, कि भर्तियों पर खयाली सरकार काम चलाने के लिए आउटसोर्सपर चल रही है.
खाली पदों के साथ खयाली सरकारें खयाली पुलाव ज्यादा पका रही हैं. खुद पका रहे हैं, खुद खा रहे हैं, पब्लिक तो जैसे-तैसे अपना काम निकालने में ही जुटी रहती है.