कुल्हाड़ी भूल जाती है लेकिन पेड़ को याद रहता है कि उसे किसने काटा था. राहुल गांधी के सवालों की कुल्हाड़ी चल तो रही है, मोदी सरकार के खिलाफ लेकिन इसका असर देश पर पड़ रहा है. राहुल गांधी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर जो भी सवाल खड़े कर रहे हैं, वह पाकिस्तान में हाथों हाथ लिए जा रहे हैं.पाक मीडिया में प्राइम टाइम के हीरो राहुल गांधी बने हुए हैं..!!
देश में राजनीतिक द्वन्द मीरजाफ़र और जयचंद तक पहुंच गया है. पाकिस्तान हार कर भी अपने को जीता साबित करने का झूठा प्रोपेगेंडा कर रहा है. भारत जीत कर भी आंतरिक राजनीति के एजेंडा में घिरा हुआ है. यह पहला अवसर था जब ऑपरेशन के बारे में विदेश मंत्रालय और सेना ने सारी बातें देश के सामने रखी.
प्रेस ब्रीफिंग में यह बताया जा चुका है कि भारत के किसी भी ऐसेट का सैन्य कार्रवाई में नुकसान नहीं हुआ. राहुल गांधी ने विदेश मंत्री जयशंकर के एक वीडियो पर यह सवाल खड़े किए कि, उन्होंने ऑपरेशन के पहले ही पाकिस्तान को बता दिया था. यह बताना अपराध है. इसके कारण देश के कितने विमान को नुकसान हुआ. इस पर भी राहुल गांधी सवाल कर रहे हैं.
विदेश मंत्री स्वम और विदेश मंत्रालय बार-बार स्पष्ट कर रहा है कि, ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को सचेत किया गया था कि भारत की लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है. पाकिस्तानी सेना और सिविलियन से भारत का कोई युद्ध नहीं है. फिर भी पाकिस्तान आर्मी ने सैन्य कार्रवाई की. तब भारत ने उस पर मिसाइल अटैक किया.
यह बात सेना भी बता चुकी है कि, ऑपरेशन सिंदूर में आतंकी ठिकानों को उड़ाने के बाद विरोधी देश को भारत के आतंक विरोधी अभियान की जानकारी दी गई थी. इसके बावजूद पाक सेना ने भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की जिसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया. इतनी स्पष्टता के बाद भी राहुल गांधी के सवाल आत्मघाती होने के साथ ही राष्ट्रघाती भी साबित हो रहे हैं.
राहुल गांधी देशभक्त परिवार के वारिस हैं. उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं है लेकिन जब राजनीति दिमाग पर चढ़ जाती है तो फिर ऐसी गलतियां होती हैं. राहुल गांधी का बीजेपी सरकार खासकर पीएम नरेंद्र मोदी के साथ दुश्मनीपूर्ण व्यवहार कांग्रेस का चरित्र बन गया है.
ऑपरेशन सिंदूर पर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की ओर से जिस तरह के सवाल खड़े किए गए, उनसे पाकिस्तान तो खुश हुआ लेकिन इसका खामियाज़ा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा. ऐसा लगने लगा है, कांग्रेस पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन पीएम नरेंद्र मोदी को समझती है. पाकिस्तान के आतंक पर भारत की इतनी बड़ी जीत पर वर्तमान सरकार को बधाई देने के बदले कमियां निकालकर लगभग वही सवाल पूछना, जिस भाषा में पाकिस्तान बात कर रहा है, कांग्रेस के लिए आत्महत्या साबित होगा.
पुलवामा के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक पर भी सबूत कांग्रेस द्वारा मांगे गए थे. उसके बाद हुए चुनाव में देश ने वह सबूत दे दिया था. इस बार भी कांग्रेस गलत ट्रैक पर चली गई लगती है. कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश कह रहे हैं कि, पहलगाम के आतंकी अभी पकड़े नहीं गए हैं, आतंकवादी घूम रहे हैं और सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भी घूम रहा है.
पवन खेड़ा इस ऑपरेशन को सिंदूर का सौदा बता रहे हैं. राफ़ेल पर नींबू मिर्ची लगाने का निंदनीय कार्य पहले ही कांग्रेस द्वारा किया जा चुका है. पीएम नरेंद्र मोदी का सिर तन से जुदा फोटो लगाकर सोशल मीडिया पर कांग्रेस के द्वारा पोस्ट की भी देशव्यापी आलोचना हुई.
राहुल गांधी पढ़े लिखे और अनुभवी व्यक्ति हैं. उनका राजनीतिक लक्ष्य केवल यह हो सकता है कि, पीएम मोदी और बीजेपी को पाकिस्तान पर भारत की जीत का क्रेडिट नहीं लेने दिया जाए. वह ऐसा मानते होंगे कि अगर देश के लोगों ने यह पूरा क्रेडिट मोदी और बीजेपी को दे दिया तो फिर भविष्य के चुनाव में कांग्रेस का स्कोप सीमित हो जाएगा. ऐसा सोचना उनका गलत भी नहीं है, लेकिन इसके लिए जो रास्ता चुना गया वह तो एकदम से उल्टा पड़ गया.
जिस भाषा में पाकिस्तान प्रोपेगेंडा कर रहा है. राहुल गांधी के सवाल इस प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाने में उपयोग किए जा रहे हैं. ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि जानबूझकर राहुल गांधी पाकिस्तान के हाथ में खेल रहे होंगे, लेकिन राजनीति जो ना कराये वही कम होता है.
राहुल गांधी का स्टैंड कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भी कांग्रेस का स्टैंड विभाजित रहा. ऑपरेशन सिंदूर में कुछ नेताओं ने अपनी देशभक्ति की प्रतिष्ठा को पूर्ण ढंग से स्थापित किया. असदुद्दीन ओवैसी, उमर अब्दुल्ला और शशि थरूर जैसे नेताओं ने जिस तरह के बयान दिए, उससे उनकी छवि और राष्ट्रभक्ति निखरी है.
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में सांसदों के नाम सरकार द्वारा मांगे गए. कांग्रेस ने जो नाम दिए उसके बदले केंद्र सरकार ने एक पदेन व्यवस्था के तहत ऐसे सांसदों का चयन किया, जो या तो विदेश मंत्रालय की स्टैंडिंग कमेटी में सदस्य हैं या फिर विदेश मंत्रालय में काम करने का अनुभव रहा है. शशि थरूर और कांग्रेस के बीच वैचारिक मतभेद बहुत लंबे समय से चल रहे हैं. जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हुआ था तब भी थरूर चुनाव में उतरे थे. उसके बाद से ही उन्हें पार्टी में अलग-थलग किया जा रहा है.
कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन मंत्री केसी वेणुगोपाल भी उसी राज्य से आते हैं, जिस राज्य से शशि थरूर सांसद हैं. राज्य की राजनीति भी इसका एक कारण हो सकती है. पार्टी की आंतरिक राजनीति को राष्ट्रहित के मुद्दों में शामिल करना ही कांग्रेस की गलत रणनीति है. ऑपरेशन सिंदूर को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस का स्टैंड सरकार के साथ एकजुटता का था.
प्रधानमंत्री ने भी यह बात राष्ट्र के अपने संबोधन में कही थी लेकिन ऑपरेशन की सक्सेस के बाद भारत की विक्ट्री पर सवालिया निशान जाने अनजाने में कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो रहा है.
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कांग्रेस में विभाजन की स्थिति है. जो सांसद डेलिगेशन में जा रहे हैं उनका स्टैंड कांग्रेस के ऑफिशियल स्टैंड से अलग दिखाई पड़ता है. मीरज़ाफर और जयचंद की कंट्रोवर्सी तो अनावश्यक है लेकिन देश के हर नेता को इसका तो ध्यान रखना ही चाहिए कि, और ऐसी बात से बचें, जो पाक की ख़ुशी का कारण बने.
सवाल पूछने के बहुत अवसर हैं. चुनाव मैदान में मोदी को हराने की इच्छा किसी भी दल की हो सकती है, लेकिन इस इच्छा के लिए देश को हराने की राजनीति अक्षम्य है. राहुल गांधी के लिए फिलहाल तो पाकिस्तान के खिलाफ सख्त से सख्त स्टैंड और भाषा में सवाल खड़े करने का वक्त है.