किसानों के सम्मान में कसीदे पढ़ने से सरकारें कभी नहीं चूकतीं. किसानों को अन्नदाता और भगवान बताया जाता है, लेकिन खाद के लिए इन्ही किसानों पर डंडे बरसाए जाते हैं..!!
किसान सम्मेलन और महासम्मेलन चुनावी एजेंडा हो सकता है, लेकिन खाद का समुचित इंतजाम हमेशा सरकारी लापरवाही का शिकार हो जाता है. कोई ऐसा साल नहीं जाता, जब उर्वरकों के लिए किसानों को सड़कों पर ना आना पड़ता हो. राज्य में उर्वरक के प्रबंधन और वितरण में इतना हंगामा क्यों होता है? मध्य प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है. खाद की कमी है या कालाबाजारी का जुआ खेला जा रहा है, यह बात समझना मुश्किल है.
सरकार में कोई भी दल हो, कोई भी मुख्यमंत्री हो लेकिन किसानों को खाद का इंतजाम पर्याप्त कभी नहीं होता. नकली खाद का भी मुद्दा होता है. पहले भी केंद्रीय कृषि मंत्री मध्य प्रदेश से ही थे और अभी भी लंबे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान केंद्रीय कृषि मंत्री हैं. नकली खाद बीज का भी मामला सामने आता है. किसान खेती के लिए प्रकृति पर निर्भर रहता है. जितनी अस्थिरता प्राकृतिक होती है, उससे ज्यादा सरकारी प्रबंधन के कारण उत्पन्न हो जाती है. खाद के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री वितरण के लिए कलेक्टर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. जब खाद ही उपलब्ध नहीं होगी तो फिर कोई भी कलेक्टर कितना भी प्रबंधन कर ले.
राज्य के कृषि मंत्री के क्षेत्र में खाद के लिए किसानों का हंगामा और प्रशासन की कार्यवाही चिंतित करने वाली है. क्या इसमें कोई बाजार का गणित है? निजी डीलरों की इसमें भूमिका है. उर्वरकों का सरकारी क्षेत्र में प्रबंधन क्या असफल होता जा रहा है?
खाद की कमी के कारण अन्न उत्पादन प्रभावित होना राष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आता है. इसके लिए जवाबदारी और जिम्मेदारी तय होना जरूरी है. किसानों पर जिस तरह से अन्याय और अमानवीयता बढ़ती जा रही है, उसके लिए मानव अधिकार आयोग ने भी सरकार से सवाल जवाब किया है. सरकारों में कृषि और सहकारिता विभाग किसानों के हित में काम करने के लिए होता है. इन्हीं विभागों की जिम्मेदारी विभिन्न फसलों में खाद की आवश्यकता का आंकलन, आपूर्ति और वितरण का प्रबंध करना आता है.
मध्य प्रदेश विधानसभा के हाल ही में संपन्न सत्र में भारत के नियंत्रक महा लेखा परीक्षक द्वारा मध्य प्रदेश में उर्वरक के प्रबंधन एवं वितरण पर 31 मार्च 2022 को समाप्त वर्ष के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया है. इस प्रतिवेदन में जो कुछ लिखा गया है, वह आंख खोलने वाला है. पक्ष-विपक्ष दोनों के विधायकों ने इन प्रतिवेदनों को केवल सजा कर रख दिया होगा. इनका पढ़ने की अगर कोशिश की गई होती तो सरकारों और सरकारी सिस्टम की गलतियां, लापरवाही पता लग जाती. जब तक गलतियों का ही पता नहीं होगा, तब तक सुधार के बारे में तो सोचा ही नहीं जा सकता.
नियंत्रक महा लेखा परीक्षक के प्रतिवेदन के अनुसार शासन की विभाग द्वारा भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार प्रत्येक फसल मौसम के लिए उर्वरक की आवश्यकता का पर्याप्त रूप से आंकलन नहीं किया. बिना जिलों से जानकारी लिए आंकलन किया गया. परिणाम स्वरुप मांग आवश्यकता पर आधारित नहीं थी. जिलों की मिट्टी की स्थिति के आधार पर आंकलन नहीं किया गया. इसलिए उर्वरकों का असंतुलित उपयोग हुआ. जिसका असर मृदा स्वास्थ्य पर भी पड़ा.
यह प्रतिवेदन यह भी कहता है, कि उर्वरक अधिक दर पर विक्रय किया गया. महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन यह भी कह रहा है, कि अमानक उर्वरकों को कई क्षेत्रों में वितरित करने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया.
प्रतिवेदन के अनुसार राज्य जिला स्तर पर जारी उर्वरक व्यवसाय के लिए विनिर्माण, प्रमाण पत्रों और प्राधिकार पत्रों के नवीनीकरण की निगरानी के लिए कृषि विभाग द्वारा कोई ऑनलाइन तंत्र विकसित नहीं किया गया था. राज्य के प्रवर्तन अधिकारियों के स्वीकृत पदों में 40 से 76% पद रिक्त थे. जिससे उर्वरक नियंत्रण आदेश एवं आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों का लागू होना प्रभावित हुआ.
महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन शासन के विभागों में सजावटी दस्तावेज के रूप में रख दिए जाते हैं. उनके आधार पर दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय नहीं होती. यह प्रतिवेदन बीजेपी और कांग्रेस दोनों सरकारों के कार्यकाल का है. प्रतिवेदन भले ही तीन साल पुराना हो लेकिन उर्वरक प्रबंधन और वितरण की वर्तमान व्यवस्था भी पुरानी ढर्रे पर ही संचालित होती दिखाई पड़ती है.
किसान खाद के लिए पैसे दे रहा है. कोई उसे फ्री में खाद नहीं मिल रही है. कारण कोई भी हो खाद मांग और आपूर्ति में संतुलन जरूरी है. अगर किसी भी स्तर पर इसमें सिस्टम की लापरवाही साबित होती है, तो ऐसे मामले में इतना सख्त कदम उठाने जाना चाहिए, जो नजीर बन सके.
एक भी अन्नदाता पर खाद के लिए किसी भी तरह का अन्याय सरकारों के लिए बदनुमा दाग है. खाद के प्रबंधन और वितरण की अराजकता को तत्काल दूर किया जाना चाहिए. कोई कितना भी सफल या साहसी नेता हो उसकी सफलता खाद वितरण की असफलता से आंकी जाएगी.