निर्वाचन आयोग द्वारा बारह राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुननिरीक्षण, एसआईआर अभियान अनाउंस कर दिया गया है. एक्शन प्लान जारी हो चुका है..!!
जिन राज्यों में एसआईआर हो रहा है उनमें भाजपा शासित राज्यों के अलावा विपक्षी दलों के राज्य बंगाल, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं. बिहार में एसआईआर का ही इन राज्यों की सरकारों द्वारा विरोध किया गया था. तो खुद के राज्य में तो उस पर आर पार की लड़ाई छेड़ दी गई है.
वोटर लिस्ट लोकतंत्र की नींव है. संविधान इसी नींव पर लोकतंत्र की इमारत बनाता है. जब नींव ही कमजोर होगी तो फिर तो इमारत का कमजोर होना स्वाभाविक है. वोटर लिस्ट शुद्धिकरण भाजपा और विपक्षी दलों की राजनीति में फंस गया है. निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन आयोग पर भी विपक्षी दल अविश्वास व्यक्त कर रहे हैं. आयोग की प्रक्रिया को ही भाजपा का सहयोग बताना संवैधानिक मर्यादा और गरिमा का उल्लंघन है. एसआईआर पहली बार नहीं हो रहा है. आजादी के बाद नौवीं बार हो रही है. निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर राजनीतिक दल स्वयं की विश्वसनीयता खत्म कर रहे हैं.
बिहार में जब एसआईआर हो रहा था, तब कोई मतदाता सर्वोच्च न्यायालय नहीं गया था, बल्कि भाजपा को छोड़कर हर राजनीतिक दल की ओर से सर्वोच्च अदालत में केस दायर किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई. आधार कार्ड को भी पहचान के रूप में स्वीकार करने के निर्देश दिए थे. जिस पर अमल कर लिया गया है. विवाद इस पर है, कि निर्वाचन आयोग को हर पात्र भारतीय नागरिक मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में सुनिश्चित करना है.
इसमें ही घुसपैठिए भी प्रभावित होते हैं. निर्वाचन आयोग का काम घुसपैठिए चिह्नित करने नहीं है, बल्कि उसका दायित्व प्रत्येक पात्र मतदाता का नाम वोटर लिस्ट में शामिल करना है. पात्रता में प्रत्येक वयस्क भारत का नागरिक शामिल है. आधार कार्ड नागरिकता की पहचान नहीं है. आधार कार्ड अकेले के आधार पर अगर मतदाता सूची का अपडेशन किया जाएगा तो फिर ऐसा भी संभव है, कि विदेशी नागरिक भी मतदाता सूची में शामिल हो जाएं. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड को केवल पहचान के लिए स्वीकार करने की बात कही है.
सुप्रीम कोर्ट स्वयं मानता है कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है. ऐसी स्थिति में निर्वाचन आयोग केवल आधार कार्ड के आधार पर मतदाता सूची में किसी का नाम शामिल नहीं कर सकता. उसे यह सुनिश्चित करना ही पड़ेगा कि प्रत्येक मतदाता भारत का नागरिक है.
एसआईआर पर विवाद जब भी खड़ा किया जाता है, वह वोट बैंक से जुड़ता है. घुसपैठिए एक राष्ट्रीय त्रासदी हैं लेकिन चुनाव के समय घुसपैठियों का मुद्दा तेजी से उठाया जाता है. फिर सरकारें उस पर आंख मूंद लेती हैं. इस साल जरूर प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय स्तर पर डेमोग्राफी मिशन घोषित किया है, जो घुसपैठियों की समस्या पर विचार कर उचित कदम उठाएगा.
घुसपैठिए शब्द उसी तरह से विवादास्पद बन गया है, जैसे धर्मनिरपेक्षता, तुष्टिकरण और वोट बैंक घुसपैठ को भी एक खास समुदाय से जोड़ दिया गया है. इसकी जड़ें देश के विभाजन से जुड़ी हुई हैं. जब धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया गया था, तो फिर भारत को बांटकर बने देश से उस धर्म के लोगों को भारत में शरणार्थी कैसे माना जा सकता है. शरणार्थी तो वह होता है जो प्रताड़ित होकर आया है. जिस धर्म का देश बन गया उस धर्म के लोग अपने देश में प्रताड़ित कैसे माने जा सकते हैं.
राजनीति अपनी जगह है, लेकिन इलेक्शन कमीशन तो एक भी ऐसे मतदाता को लोकतंत्र के महापर्व में शामिल नहीं होने दे सकता. जो भारत का नागरिक नहीं है.यह केवल इलेक्शन कमीशन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी राजनीतिक दलों का दायित्व है कि मतदाता सूची को ईमानदारी से शुद्धिकरण में कमीशन का पूरा सहयोग करें. आयोग का अपना कोई तंत्र नहीं है. राज्य सरकारों के तंत्र के माध्यम से आयोग काम करता है. जिन राज्यों में एसआईआर का सरकारें विरोध कर रही है वहां इसको सही ढंग से क्रियान्वित करना आयोग के सामने चुनौती है.
विपक्षी दलों और चुनाव आयोग की पूरी प्रक्रिया में टकराव बढ़ता हुआ दिखाई पड़ सकता है. बंगाल में तो शुरु भी हो चुका है. ममता सरकार ने एसआईआर की प्रक्रिया प्रारंभ होने के दौरान ही बहुत सारे सरकारी, अधिकारियों कर्मचारियों के ट्रांसफर कर दिए हैं जो नियमानुसार नहीं किए जा सकते हैं.
लोकतंत्र को एक मुश्त वोट बैंक के नाम पर बलि पर नहीं चढ़ाया जा सकता है. घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी निश्चित रूप से केंद्र सरकार की है, लेकिन सीमावर्ती राज्य की सरकारें अपनी भूमिका से भाग नहीं सकती हैं. समस्या की जड़, बहुमत का जुगाड़ है. इसके लिए राजनीतिक दल सब तरह के हथकंडे अपनाते हैं. जिसमें घुसपैठिए भी शामिल हैं.
एसआईआर को राजनीति का मुद्दा बनाना लोकतंत्र को हराने की साजिश कही जा सकती है. खुद की जीत के लिए राजनीतिक दल लोकतंत्र को हराने से भी परहेज नहीं करते हैं. यही राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी है.
निष्पक्षता, विश्वसनीयता और सख्ती के साथ कदम निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा बढ़ाएंगे जहां तक संभव होस भी दलों को भरोसे में लेकर निष्पक्षता और मजबूती के साथ इसे पूरा करना भारतीय लोकतंत्र को शुद्ध और मजबूत करेगा.