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बीएलए समस्या विचारधारा का संकट

सार

राज्य की स्थापना दिवस पर कांग्रेस की दो खबरें चर्चा में हैं. संगठन सृजन कार्यक्रम में कांग्रेस नवनियुक्त जिला अध्यक्षों का पहला आवासीय प्रशिक्षण पचमढ़ी में प्रारंभ हुआ है..!!

janmat

विस्तार

    पहले दिन प्रशिक्षणकर्ताओं द्वारा विचारधारा पर अडिग रहने, संगठन मजबूत करने और सबको साथ लेकर चलने का मंत्र दिया गया. राजनीतिक संगठन का यही मंत्र हो सकता है, लेकिन इसी मार्ग को तो कांग्रेस ने छोड़ दिया है. कांग्रेस के सामने बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति है. हिंदुत्व के चिंतन में कांग्रेस के सामने आइडेंटिटी का क्राइसिस है. जैसे बीजेपी ने मुस्लिम वोट बैंक को छोड़ दिया है, वैसे शायद कांग्रेस ने हिंदुत्व को छोड़कर जातिवाद को अपनी विचारधारा बना लिया है.

    दूसरी खबर जो चर्चा में है, कांग्रेस एमपी में दस हज़ार बूथों पर अब तक बीएलए नहीं बना पाई है. राज्य में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण एसआईआर प्रारंभ हो चुका है. कांग्रेस इस प्रक्रिया का विरोध जरूर कर रही है, लेकिन इसमें सक्रियता से शामिल होकर वोटर लिस्ट के शुद्धिकरण में भूमिका निभाने में अक्षम साबित हो रही है. बूथ लेवल एजेंट पार्टी का जमीनी आधार है. जो संकट दिल्ली में खड़ा है वही बूथ पर भी खड़ा दिखाई पड़ता है. आम कार्यकर्ता महत्वहीन है. कांग्रेस ही ऐसी शिकायत करती रही है कि उसके एजेंट को विरोधियों ने खरीद लिया.

    खरीदने की प्रक्रिया में बिकने वाला सबसे महत्वपूर्ण है. मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिकने वालों की संख्या ज्यादा दिखती है. कांग्रेस के विधायक टूटने के बाद ही बीजेपी को मध्य प्रदेश में दोबारा सत्ता मिली थी. प्रशिक्षण कार्यक्रम में विचारधारा की बात की जा रही है. जहां विचारधारा होती है, वहां बिक्री योग्य माल नहीं होता. नेता कार्यकर्ता विचारधारा से जुड़े होते हैं. कांग्रेस की समस्या ही है, कि उसकी विचारधारा का तराजू एक तरफ झुक गया है.

    पहले कांग्रेस सबको साथ लेकर चलने में भरोसा करती थी. धीरे-धीरे उसकी सोच एक वोट बैंक की तरफ झुकती गई. कांग्रेस की सरकारों की कार्यप्रणाली ऐसी रही, कि नियम कानून को भी एक खास समुदाय की खुशी के लिए बनाया गया. शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राजीव गांधी की सरकार ने संसद में बदलकर सबको साथ लेने की विचारधारा छोड़ने की खुली गारंटी दे दी.

    कांग्रेस को बीएलए नहीं मिलना, उनका विरोधियों के साथ मिल जाना विचारधारा का ही संकट है. जिस देश की बड़ी आबादी हिंदुत्व विचारधारा पर जीती है, उस देश में कांग्रेस हिंदुत्व की आस्था और प्रतीकों के प्रति जिस तरीके का नजरिया दिखाती है, वह भी उसे दूरगामी नुकसान पहुंचा रहा है. बीजेपी का विकास कांग्रेस की एकतरफा विचारधारा की प्रतिक्रिया से जुड़ा हुआ है.

    राष्ट्र के सामने जो भी महत्वपूर्ण विषय जनमानस को उद्वेलित कर रहे हैं उस पर भी कांग्रेस गोल-मोल मैसेज देती रहती है. कांग्रेस का संदेश गांधी परिवार से जुड़ा हुआ है. भाजपा राम मंदिर को भारत की विकास यात्रा से जोड़ती है, तो कांग्रेस खासकर गांधी परिवार राम मंदिर नहीं जाकर जाने-अनजाने हिंदू विरोधी संदेश ही दे रहे हैं. 

    कांग्रेस का  संगठन नव सृजन कार्यक्रम अच्छा प्रयास हो सकता है, लेकिन विचारधारा के लेवल पर एक तरफा ही सोच ही दिखाई पड़ती है. तो फिर संगठन की भूमिका तो सृजन की बची ही नहीं है. घुसपैठियों पर कांग्रेस की विचारधारा अस्पष्ट है. पाकिस्तान और कश्मीर पर कांग्रेस की नीति भी हिंदुत्व चिंतन के खिलाफ ही दिखाई पड़ती है. एनआरसी और सीएए पर कांग्रेस के विरोधी विचार भी उसकी एकतरफा सोच को ही प्रतिबिंबित करते हैं.

    कांग्रेस जिस भी राज्य में ट्रैक से उतरती है, फिर वह लंबे समय तक सत्ता से बाहर होती है. यूपी, बिहार, बंगाल, गुजरात जैसे राज्यों में जहां कांग्रेस आजादी के बाद दशकों तक सत्ता में रही है. पिछले तीन-चार दशक से इन राज्यों में उसके विधायकों की संख्या गिनती योग्य भी नहीं रही.  

    मध्य प्रदेश में भी दिग्विजय सिंह सरकार के बाद बीस सालों से भाजपा सत्ता पर काबिज़ है. केवल पंद्रह महीने के लिए कमलनाथ की सरकार आई थी. मध्य प्रदेश में कांग्रेस यूपी के रास्ते पर ही जाती दिखाई पड़ रही है. केवल उसे इस बात का लाभ यहां मिलता है, क्योंकि यहां बीजेपी कांग्रेस का सीधा मुकाबला होता है. कोई क्षेत्रीय दल यहां ताकतवर नहीं है. एमपी की कांग्रेस में जो पीढ़ी बदलाव हुआ है, वह पूरे प्रदेश में अपनी पहचान स्थापित नहीं कर पा रहा है. 

    पुराने और नए नेताओं के बीच द्वंद आए दिन जग जाहिर रोते रहते हैं. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह अब रिटायरमेंट की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं.

     देश के हिंदुत्व चिंतन में कांग्रेस की आइडेंटिटी क्राइसिस बढ़ती जा रही है. कांग्रेस देश की समस्याओं से कटी हुई लगती है. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कांग्रेस जिन मुद्दों पर बीजेपी को घेरने की कोशिश करती है, वह सब मिसफायर हो जाते हैं. नेताओं की विश्वसनीयता और विचारधारा कांग्रेस का बड़ा संकट है.

    वंशवाद की राजनीति कांग्रेस में फैमिली बिजनेस बन गई है. शशि थरूर अगर ऐसा कहने की हिम्मत कर रहे हैं इसका मतलब है की पार्टी की कमजोरी के लिए वह इसे जिम्मेदार मानते हैं. इसका सीधा इशारा राहुल गांधी की ओर जाता है.

    कांग्रेस से जुड़ा आम कार्यकर्ता और समर्थक हिंदुत्व चिंतन पर पार्टी के विरोधी रुख से धीरे-धीरे निराश हो रहा है चुनाव परिणाम भी इसी और इशारा कर रहे हैं. फिर भी कांग्रेस एक तरफा सोच की तरफ ही आगे बढ़ रही है.

     एमपी में अगला चुनाव कांग्रेस के लिए आखिरी मौका है. यह ट्रेन भी चूक गई तो यहां भी यूपी बिहार जैसा कांग्रेस पिछलग्गू पार्टी बन जाएगी.