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जातिगत जनगणना से क्या निकलेगा?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 08 May

सार

भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने घोषणा कर दी है कि जाति गणना अगली जनगणना का हिस्सा होगी, कुछ भी हो ,भाजपा ने विपक्ष के जातीय गणना के मुद्दे की हवा निकाल दी है, यह आश्चर्यजनक निर्णय विषम परिस्थितियों के बीच आया है जब देश को उम्मीद थी कि सरकार पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करेगी..!!

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विस्तार

ऐसा क्या और क्यों हो गया कि लंबे समय तक असहमति के बाद आखिरकार भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने घोषणा कर दी है कि जाति गणना अगली जनगणना का हिस्सा होगी। कुछ भी हो ,भाजपा ने विपक्ष के जातीय गणना के मुद्दे की हवा निकाल दी है। यह आश्चर्यजनक निर्णय विषम परिस्थितियों के बीच आया है जब देश को उम्मीद थी कि सरकार पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करेगी।

यूँ तो , भाजपा ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित चुनावी प्राथमिकताओं से प्रभावित नहीं होंगे। निस्संदेह, राजग का अल्पकालिक लक्ष्य इस साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव जीतना है। वहीं बड़ा उद्देश्य देशभर में जाति के मुद्दे पर कांग्रेस और अन्य प्रतिद्वंद्वी दलों को पछाड़ना है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2023 में यह कहकर चीजों को सरल बनाने की कोशिश की थी कि देश में चार ही जातियां हैं- महिलाएं, युवा, किसान और गरीब। यही वजह है कि ध्रुवीकरण की अपनी ताकत के प्रति आश्वस्त भगवा पार्टी ने विपक्ष को जाति का कार्ड खेलने दिया। इसका झटका भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में लगा। ये परिणाम भाजपा के लिये आंख खोलने वाला था। हालांकि, वह नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी के सहयोग से किसी तरह सरकार बनाने में कामयाब हो गई। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते ही भाजपा को जाति जनगणना के मुद्दे पर यह फैसला लेना पड़ा है। 

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के दबाव ने भी इस निर्णय में बड़ी भूमिका निभाई है। एक अन्य प्रमुख कारण भीमराव अंबेडकर की विरासत को लेकर खींचतान भी है। कोई भी राजनीतिक दल सामाजिक न्याय के उनके महान सपने को पूरा करने के लिये आधे-अधूरे दृष्टिकोण को अपनाने का जोखिम नहीं उठा सकता, खासकर भाजपा। कहा जा रहा है कि जाति जनगणना के जरिये नीति निर्माताओं को विशिष्ट समुदायों की आवश्यकता के अनुसार कल्याणकारी योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।

इसमें दो राय नहीं कि जाति आधारित जनगणना में पारदर्शी सूचनाओं के संग्रह और डेटा के सार्थक उपयोग से सामाजिक असमानताओं को दूर करने में काफी हद तक मदद मिल सकती है। लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि इसके लिये समय सीमा तय की जाए, क्योंकि पहले ही जनगणना में काफी देरी हो चुकी है। यह भी हकीकत है कि केंद्र सरकार के लिये अगली जनगणना के साथ ही जाति गणना कराने का फैसला खासा चुनौतीपूर्ण है। जिसके गहरे निहितार्थ सामने आ सकते हैं, जो राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य में बदलावकारी प्रभाव छोड़ सकते हैं। 

बहुत संभव है कि इसके बाद आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग भी जोर पकड़े, लेकिन प्रथम दृष्टया भाजपा विपक्ष के बड़े हथियार को हथियाने में सफल रही है। उल्लेखनीय है कि साल 1931 तक हुई जनगणना में जाति गणना भी शामिल रही है, लेकिन स्वतंत्र भारत में इसकी अावश्यकता को नकार दिया गया। हालांकि, अनुसूचित जाति और जनजाति की गणना की जाती रही। वैसे साल 2011 में सामाजिक व आर्थिक उद्देश्यों के लिये जाति गणना की तो जरूर गई, लेकिन विसंगतियों के चलते आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया। जबकि पिछले कुछ समय से विपक्ष आरक्षण को तार्किक बनाने के लिये जाति गणना की वकालत करता रहा है। 

पहले भाजपा भारतीय समाज के हित में जाति गणना के प्रस्ताव को अप्रासंगिक बताती रही है, लेकिन देश के राजनीतिक परिदृश्य में विपक्ष द्वारा इसे बड़ा मुद्दा बनाने के बाद केंद्र को इस बाबत फैसला लेने को बाध्य होना पड़ा। हालांकि, इस गणना के आंकड़े सामने आने के बाद आबादी के अनुरूप आरक्षण देने की मांग जोर पकड़ सकती है। कुछ राज्यों के अनुभव इस बात की पुष्टि करते हैं। पिछले दिनों कांग्रेस शासित कर्नाटक में ऐसे जातिगत गणना के आंकड़े लीक होने पर खासा विवाद सामने आया है। हालांकि, राजग सरकार दलील दे रही है कि जातिगत जनगणना से देश सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त होगा।