गोडसे भक्त की एंट्री पर दो फाड़ होती कांग्रेस: क्यों मचा बवाल, 'अपनों' ने ही उठाए कमलनाथ पर सवाल : रंजन श्रीवास्तव
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के केरल में दिए गए बयान कि उत्तर भारत में जहां से वे 15 साल लोक सभा सांसद रहे वे एक विभिन्न तरह के पॉलिटिक्स के आदी थे, के 48 घंटे के अंदर ही नाथूराम गोडसे भक्त बाबूलाल चौरसिया मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर रहे थे। जहां राहुल गाँधी पर भाजपा को केरल सहित 4 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में विधान सभा चुनाव के पूर्व करारा हमला करने का मौका मिल गया है विशेषकर उनके द्वारा केरल की पॉलिटिक्स की उत्तर भारत के सन्दर्भ में विशेष प्रशंसा करने पर, मध्य प्रदेश कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष कमल नाथ अपने पार्टी लीडर्स के ही निशाने पर हैं।
भले ही राहुल गाँधी ने ये नहीं सोचा हो पर सत्ता पक्ष को ये कहने का जरूर मौका मिल गया है कि क्या इसी तरह के उत्तर भारत के पॉलिटिक्स की बात राहुल गाँधी कर रहे थे जिसे कांग्रेस स्वयं ही पोषित कर रही है?
किसी भी व्यक्ति का किसी भी राजनितिक दल में शामिल होना लोकतंत्र में आम बात है। आयाराम गयाराम भी एक राजनीतिक संस्कृति बन चुका है। इसलिए बाबूलाल चौरसिया का कांग्रेस में शामिल होना एक बहुत ही सामान्य बात होती जिसकी कोई चर्चा भी नहीं होती अगर वे कल तक गोडसे कि विचारधारा का सम्मान नहीं कर रहे होते। वैसे चौरसिया 2015 के पहले कांग्रेस में ही थे। और एक तरह से उनकी ये घर वापसी है पर पिछले 5 - 6 वर्षों में वे जिस विचारधारा से जुड़े थे तथा जिस तरह से एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया में वायरल हुआ जिसमें वे नाथूराम गोडसे के अर्ध प्रतिमा (Bust) के सामने आरती करते दिखाई दे रहे हैं उसे पचा पाना बहुत से कांग्रेस नेताओं के लिए मुश्किल हो रहा है जैसा की उनके बयानों से जाहिर है।
कांग्रेस इस विषय पर दो पक्ष में बंट चुकी है। कमल नाथ के समर्थक नेताओं जिनमें पूर्व मंत्री पी सी शर्मा, जीतू पटवारी और सज्जन सिंह वर्मा हैं का ये कहना है कि गोडसे विचारधारा समर्थक का कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय गाँधी के विचारधारा की जीत है पर उनका तर्क पूर्व मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व लोक सभा सांसद लक्ष्मण सिंह, मिनाक्षी नटराजन, मानक अग्रवाल तथा कुछ अन्य नेताओं के गले नहीं उतर रहा। विरोध का स्तर ये है कि अरुण यादव ने अपने ट्विटर अकाउंट पर खुला पत्र लिख डाला है बजाय इसके कि वे अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखते। अन्य नेताओं ने भी खुलेआम विरोध किया है जो कि कांग्रेस संस्कृति के अनुरूप है पर साथ में यह उनके गुस्से का भी इजहार करता है कि इस निर्णय से वे किस हद तक असहमत हैं।
जहां अरुण यादव ने इस मुद्दे पर विरोध करते हुए ये कहा है कि इसके लिए वे राजनीतिक क्षति भी सहने को तैयार हैं मानक अग्रवाल ने सीधे कमल नाथ से पूछा है कि वे इस बात को स्पष्ट करें कि वे गोडसे विचारधारा के साथ हैं या गाँधी विचारधारा के?
विरोध कि गूँज दिल्ली तक सुनाई दे रही है। इधर इंदौर में प्रदेश कांग्रेस प्रभारी मुकुल वासनिक इस विषय पर पत्रकारों के सवालों से बचते नज़र आये। उनका कहना था कि वे इस विषय पर जानकारी लेकर कुछ बोलेंगे। यह वही मुकुल वासनिक हैं जिन्होंने नवंबर 2019 में भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर द्वारा नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहे जाने पर प्रतिक्रिया देने में जरा भी देरी नहीं दिखाई थी और उन्होंने पूछा था कि भाजपा को ये स्पष्ट करना चाहिए कि प्रज्ञा ठाकुर राष्ट्रवादी हैं या राष्ट्र विरोधी। खैर बाद में उन्होंने इस मामले को पटाक्षेप करने के लिए कहा कि कांग्रेस हमेशा महात्मा गाँधी के विचारधारा पर चलती रही है और चलती रहेगी।
कमल नाथ का बयान भी मुकुल वासनिक के बयान से मिलता जुलता ही रहेगा जब भी वो इस मामले पर अपना वक्तव्य देंगे। प्रदेश कांग्रेस समिति के वर्किंग प्रेसिडेंट जीतू पटवारी ने विरोध कर रहे कांग्रेस के नेताओं को याद दिलाया है कि गाँधी जी की विचारधारा ये थी कि अपराध से घृणा करों अपराधी से नहीं।
बाबूलाल चौरसिया का कहना है कि उनसे कोई अपराध हुआ ही नहीं है। वे तो एक षड़यंत्र के शिकार हैं। जो वीडियो वायरल हुआ है वह उसी षड़यंत्र का हिस्सा है। वो बार बार सबको याद दिलाना चाहते हैं कि अखिल भारतीय हिन्दू महासभा से उनका नाता कुछ वर्षों का ही रहा है और वे मूलतः कांग्रेसी हैं। पर उनकी परेशानी ये है कि उनका हिन्दू महासभा से सम्बन्ध और उनके द्वारा नाथूराम गोडसे के अर्ध प्रतिमा के सामने आरती उनके कांग्रेसी होने पर भारी पड़ रही है।
कांग्रेस नेताओं का विरोध पार्टी नेतृत्व को भारी पड़ सकता है अगर भाजपा ने गोडसे बनाम गाँधी विचारधारा का मुद्दा बाबूलाल चौरसिया के सन्दर्भ में मध्य प्रदेश में आगामी नगरीय चुनावों में तथा देश में होने वाले 4 राज्यों और एक यूनियन टेरिटरी के असेंबली चुनावों में पुरजोर तरीके से उठा दिया और कांग्रेस का ये कदम कहीं आत्मघाती गोल न साबित हो जाए।