दिन में तीन युग, सनातन धर्म में दिनचर्या का वैज्ञानिक निर्धारण -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत के मूल जीवन-दर्शन में वैसे तो काल की अवधारणा यह है कि उसका न कोई आदि है न अंत है. उसकी न तो गणना की जा सकती और न विभाजन.....

दिन में तीन युग सनातन धर्म में दिनचर्या का वैज्ञानिक निर्धारण -दिनेश मालवीय भारत के मूल जीवन-दर्शन में वैसे तो काल की अवधारणा यह है कि उसका न कोई आदि है न अंत है. उसकी न तो गणना की जा सकती और न विभाजन. लेकिन लौकिक अध्ययनों और अन्य उद्देश्यों के लिए काल की गणना की गयी है. इससे व्यवहारिक जीवन के सुनियोजित संचालन में मदद मिली है. इस कालगणना के अनुसार दिन का भी विभाजन और कालावधि तय की गयी है. भगवतगीता के अनुसार ब्रह्मा का एक दिवस एक हज़ार महायुग का होता है. यानी ब्रह्मा के एक दिवस मे 4 अरब 32 करोड़ सौर वर्ष होते हैं. इसके बाद ब्रहम प्रलय होती है और ब्रह्मा फिर से श्रृष्टि का निर्माण करते हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार दिन और रात मिलाकर 24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं. औसतन एक प्रहर में तीन घंटे होते हैं, जिनमें दो मुहूर्त होते हैं. दिन में चार और रात में चार, इस प्रकार आठ प्रहर होते हैं. इन प्रहरों तथा कालावधियों के लिए सनातन धर्म में जीवनचर्या निश्चित की गयी है, जिसका आधार बहुत वैज्ञानिक है. इसका पालन करने से हम अनेक तरह की बुराइयों और तकलीफों से बच सकते हैं. दिन के इन 24 घंटों के विषय में गहराई से विचार करने पर एक बहुत महत्वपूर्ण बात सामने आती है. इससे यह स्पष्ट होता है कि एक दिन में तीन में हम तीनों युगों -सतयुग, द्वापरयुग और कलियुग को जीते हैं. इस बात को संध्यावंदन आदि के लिए किये गए विधान से भी समझा जा सकता है. संध्या वंदन यानी धार्मिक-आध्यात्मिक साधनाओं के लिए पूर्वान्ह और उषाकाल निर्धारित किया गया है. यह वह समय होता है जब दिन और रात मिलते हैं. सांध्यकाल में ही प्रार्थना या पूजा आरती की जाती है. रात में 12 बजे से 4 बजे तक प्रार्थना या आरती को वर्जित माना गया है. सूर्योदय के समय दिन का पहला प्रहर शुरू होता है. इस समय को हम सतयुग कह सकते हैं. इस दौरान स्वाभाविक रूप से पूरी प्रकृति सत्वगुण से सरावोर होती है. इस कालावधि में व्यक्ति के मन में सत्वगुण की प्रधानता होती है. पर्वत, बाग़-बगीचे, जलाशय सहित प्रकृति के किसी भी अंग को देख लें, उनमें सात्विकता का धवल प्रकाश स्पष्ट दिखाई देता है. इस समय अधिकतर लोग पूजा-पाठ, ध्यान-योग आदि आध्यात्मिक साधनाएँ करते हैं. दूसरे धर्मों में भी इस समय उपासना का विधान है. सुबह होने पर रात के तमोगुण के प्रभाव को दूर करने के लिए घर के साथ मन की भी साफ-सफाई की जाती है. जिस तरह झाडू से घर के कोने-कोने से कचरा दूर किया जाता है, वैसे ही साधक भी अपने मन के कोने-कोने से मैल को दूर करते हैं. ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय के समय को सात्विक साधना के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. इस दौरान सात्विक शक्तियाँ सक्रिय रहती हैं. अदृश्य संतपुरुष और देवता साधकों के लिए सहायक होते हैं. इस प्रहर में सुबह-सुबह सामान्यत: बुरे से बुरे व्यक्ति के मन में भी बहुत बुरे भाव नहीं रहते. वह भी कुछ देर के लिए ही सही, सत्वगुण से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता. दिन भर अनेक बुरे काम करने वालों को भी इस समय भजन-पूजन करते, मंदिर जाते और दान-धर्म करते देखा जा सकताहै. दिन जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, उसमें रजोगुण की प्रधानता हो जाती है. रजोगुण कर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस दौरान हम कर्म करते हैं, धन-सम्पत्ति अर्जित करते हैं, यश और कीर्ति के लिए प्रयास करते हैं. नयी योजनाएँ बनाते हैं और उन पर अमल करते हैं. इस कालावधि में सोने की मनाही है. दिन में सोने को स्वास्थ्य के साथ-साथ भौतिक प्रगति के लिए भी प्रतिकूल माना गया है. दोपहर का समय अपरान्ह 4 बजे तक चलता है. इस दौरान दैवीय शक्तियाँ कर्मठ लोगों की सहायक होती हैं. इसके बाद रजोगुण का प्रभाव फीका होने लगता है. हम अपने कर्म-व्यवसाय को समेटने लगते हैं. चार बजे के बाद सूर्यास्त होने तक सायंकाल चलता है. इस संधिकाल को ईश आराधना के लिए उपयुक्त माना गया है. इसके बाद रात्रिकाल शुरू होता है, जिसमें तमोगुण की प्रधानता होती है. हमारे तन-मन की चुस्ती-फुर्ती कम होने लगती है. हम नींद के आगोश में जाना चाहते हैं. तमों गुण की प्रधानता वाले लोगों के लिए यह भोगकाल भी होता है. व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार रात्रिकाल को व्यतीत करता है. पापकर्म करने वालों के लिए रात्रिकाल सबसे उपयुक्त होता है. तमोगुण प्रधान लोग इस दौरान अनेक पापकर्म करते हैं. इसीलिए कहा गया है कि रात में निशाचरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है. इस दौरान अनेक अदृश्य दुरात्मायें पापकर्म करने वालों की सहायक होती हैं. इस दौरान वाममार्गी साधक तमोगुणी तंत्र-मंत्र और भूत-प्रेतों की साधना करते हैं. मसान भी जगाते हैं. दिन के इस तरह के गुण-विभाजन के अनुरूप यदि हम अपनी दिनचर्या को ढाल लें, तो हमारे आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक विकास में भी बहुत गति आ सकती है. इसीलिए हमारे शास्त्रों और ज्ञानी-संतों ने दिन के विभाजन के अनुसार हमारे लिए तय किया है कि किस समय क्या कर्म करना चाहिए और किस समय क्या कर्म नहीं करना चाहिए. इस विषय में विस्तार से जानने के लिए हमें अपने शास्त्रों का समय-समय पर अध्ययन करते रहना चाहिए. इसके अलावा हमारे पूर्वजों ने जीवन के विभिन्न अवसरों के लिए जो नियम-विधान निश्चित किये हैं, उन्हें समझकर उनका पालन करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि इनके पीछे उनका बहुत दीर्घ अनुभव छुपा होता है.