अपनों से बड़ों के सामने ये न करें -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

अपनों से बड़ों के सामने ये न करें -दिनेश मालवीय हमारे प्राचीन शास्त्र मानव मनोविज्ञान और व्यवहारिक धरातल पर आधारित हैं. इनमें अनेक बातें देश-काल और परिस्थिति के अनुसार बदल सकती हैं, लेकिन अनेक बातें ऐसी हैं, जो सदा-सर्वदा प्रासंगिक हैं. अपने आदरणीय और बड़े लोगों के सामने कुछ बातें करने और  न करने का इन शास्त्रों में जो उपदेश दिया गया है, वह आज भी प्रासंगिग है और भविष्य में भी सदा रहेगा. शास्त्रों में गुरु, शासक और श्रेष्ठ यानी आदरणीय और बड़े लोगों के सामने उनकी अनुमति के बिना न बैठने की सीख दी गयी है. यह सीख कितनी व्यवहारिक है, इसका परीक्षण आप ख़ुद कर सकते हैं. किसी बड़े अधिकारी या शासक के सामने जाकर उसके बिना कहे या उससे बिना पूछे कुर्सी पर बैठ कर देखिये. हो सकता है वह मुंह से कुछ न कहे, लेकिन उसके चेहरे के भाव देखने की कोशिश करें. उसे निश्चित ही बुरा लगता है. आप पूछ कर बैठकर देखिये, वह आपके प्रति सकारात्मक हो जाएगा और आपको अच्छा response देगा.यही बात अन्य श्रेष्ठ व्यक्तियों पर भी लागू होती है. इसके अलावा, इन लोगों से ऊंचे आसन पर भी न बैठने की सीख दी गयी है. शास्त्रों में कहा गया है कि अपने से बड़ों और गुरु की बात को नहीं काटना चाहिए और न बीच में ही रोककर अपनी बात कहनी चाहिए. उनकी बात का तर्क द्वारा खंडन करना भी हो तो बहुत विनम्रता से इस तरह किया जाए कि उनकी अवमानना न हो. परन्तु ऐसा भी उनकी बात पूरी होने पर ही करना चाहिए. बीच में बात काटने से वह जो बात कह रहे हैं, उसको अंत तक सुनने से हम वंचित रह जाते हैं. आपके अलावा और भी जो लोग उस बात को सुन रहे हैं, वे भी पूरी बात नहीं सुन पाते.हो सकता है कि अंत तक सुनने के बाद हमारे मन में जो भ्रम या जिज्ञासा हैं वे शांत ही हो जाएँ.लिहाजा, उनकी बात पूरी होने के बाद ही अपनी कोई जिज्ञासा प्रकट करनी चाहिए. गुरु की बात को बीच में काटना शिष्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण भी माना गया है. देव-प्रतिमा, ग्यानी, अग्नि, गुरु, शासक आदि के सामने पैर फैलाकर बैठने की भी मनाही की गयी है. इससे उनका अनादर होता है. उनके सामने थूंकने और मल-मूत्र त्याग करने का भी निषेध किया गया है. यह भी उनके प्रति अनादरसूचक है. अपने से बड़ों को उनका नाम लेकर नहीं बुलाना चाहिए और न उन्हें ‘तुम’ आदि कहकर संबोधित करना चाहिए. बहुत ज्यादा क्रोध आने पर भी सम्मानीय व्यक्ति की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए. चाणक्य के अनुसार किसी बड़े व्यक्ति का अपमान करने के लिए उसे तमाचा मारने या गाली देने की ज़रुरत नहीं पड़ती. उसके आदेश या उपस्थिति की उपेक्षा कर देना या उसे उचित सम्मान न देना ही उसे मार डालने जैसा होता है. इसके अलावा, राजा, ज्ञानी और चिकित्सक से विवाद नहीं करने को कहा गया है. इनसे विवाद करके आप हमेशा नुकसान में ही रहेंगे, कभी कोई फायदा नहीं होने वाला. शास्त्रों में अपने से बलवान व्यक्ति से स्पर्धा करने, बालक, वृद्ध और मूर्ख से विवाद करने का निषेध किया गया है. इसका कारण यह है कि यदि आप उनसे जीत भी गये तो यश नहीं मिलेगा और यदि हार गये तो अपकीर्ति होगी. मूर्ख और नीच से बहस करना अपना अपमान करवाना ही है. बुजुर्गों से विवाद करना उनका अपमान है.उनकी कोई बात अनुचित भी लगने पर उस समय सुन लेना चाहिए. बाद में उपयुक्त अवसर देखकर आप अपने मत से उन्हें अवगत करा सकते हैं. बलवान से स्पर्धा करके तो आपको हार ही जानना है. किसी कारण से यदि जीत भी गये तो आगे चलकर इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. इसके अलावा एक अच्छी और व्यवहारिक शिक्षा यह दी गयी है कि देव मंदिर, ज्ञानी और अपनों से बड़ों के पास पहुँचने से पहले अपने वाहन से उतर जाना चाहिए. ऐसा न करना शिष्टाचार के विरुद्ध है. आप ऐसा करके देखिये. किसी बड़े व्यक्ति के सामने वाहन पर बैठे रहिये या उसके पास तक अपने वाहन पर सवार होकर जाइए, आप देखेंगे कि उसके चेहरे पर आपके प्रति नकारात्मक भाव आ जायेंगे. इन बातों का ख्याल रखकर आप अनेक व्यावहारिक परेशानियों से बच सकते हैं.