हनुमानजी द्वारा शनि का मानमर्दन -हनुमान भक्तों को क्यों नहीं सताते शनि  -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

हनुमानजी द्वारा शनि का मानमर्दन- हनुमान भक्तों को क्यों नहीं सताते शनि  -दिनेश मालवीय हनुमानजी के चरित्र के इतने पहलू हैं कि जीवनभर भी उनका वर्णन किया जाए तो कम है. उनके अन्य गुणों के साथ ही एक विशेष गुण यह है कि वह स्वभाव से  बहुत भोले और दया के सागर हैं. वह असीम बलवान होने के बावजूद किसीसे लड़ना-भिड़ना नहीं चाहते. लेकिन कोई लड़ने पर आमादा हो ही जाए या किसीका भला करने के लिए यदि उसका मानमर्दन भी करना पड़े, तो वह इसमें भी पीछे नहीं रहते. शनि महाराज के साथ ऐसा ही हुआ था. एक बार जब सूर्यास्त होने को था, तब हनुमानजी राम-सेतु के पास अपने आराध्य के ध्यान में मग्न थे. उसी समय सूर्य-पुत्र शनिदेव समुद्र तट पर टहल रहे थे. उन्हें अपनी ताकत और पराक्रम पर बहुत घमंड था. वह सोचने लगे कि उनसे बलवान श्रृष्टि में कोई है ही नहीं. उनके मन में ऐसा भाव आया कि कोई तो ऐसा मिले जिससे मैं भिड़कर दो-दो हाथ कर सकूँ. आखिर मेंरी ताकत का कोई तो उपयोग होना चाहिए. शनि महाराज ऐसा विचार कर ही रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि ध्यानमग्न बैठे हुए हनुमानजी पर पड़ी. उन्होंने उन्हें पराजित करने का फैसला किया. वह उनके पास पहुँच कर बहुत उद्दंडता से बोले कि- है बन्दर! मैं प्रख्यात शक्तिशाली शनि तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ. तुम सावधान हो जाओ, मैं तुम्हारी राशि पर आ रहा हूँ. हनुमानजी ने विनम्रता से कहा कि है शनिदेव! मैं वृद्ध हो गया हूँ और अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूँ. आप कृपया मेरे ध्यान में विध्न मत डालिए और चले जाइए. लेकिन घमंड में चूर कोई व्यक्ति विनम्रता को कहाँ मानता है? शनि बोले-“ मैं कहीं जाकर लौटना नहीं जानता और जहाँ जाता हूँ, वहाँ अपनी प्रबलता और प्रधानता सिद्ध करके ही रहता हूँ. हनुमानजी ने बार-बार शनिदेव से प्रार्थना की और उनके भजन में विघ्न न डालने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि आप कहाँ इस बूढ़े से युद्ध करने की ठान रहे हैं, किसी और वीर की तलाश कर लीजिये”. अहंकार से भरे शनिदेव बोले-“तुम्हें कायरता शोभा नहीं देती. तुम्हारी दशा देखकर मेरे मन में करुणा का भाव तो आ रहा है, लेकिन मैं तुमसे युद्ध अवश्य करूँगा. इतना ही नहीं, उन्होंने हनुमानजी का हाथ पकड़ लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगे. हनुमानजी ने झटककर अपना हाथ छुड़ा लिया. शनि फिर उनका हाथ पकड़कर युद्ध के लिए खींचने लगे. हनुमानजी ने कहा-‘ आप नहीं मानेंगे’. धीरे से ऐसा कहते हुए कपिवर ने अपनी पूंछ बढ़ाकर शनि को उसमें लपेटना शुरू कर दिया. देखते ही देखते शनि महाराज आकंठ उसमें बंध गये. उनका अहंकार और ताकत किसी काम नहीं आये और वह असहाय और निरुपाय होकर पीड़ा से छटपटाने लगे. इसी बीच राम-सेतु की परिक्रमा का समय हो गया. हनुमानजी हथ और दौड़ते हुए सेतु की प्रदक्षिणा करने लगे. शनिदेव पूरी ताकत लगाकर भी बंधन को शिथिल नहीं कर सके. हनुमानजी अपनी पूँछ को रास्ते में पड़े शिलाखंडों पर पटकते भी जा रहे थे. शनिदेव की दशा बहुत दयनीय हो गयी. उनके शरीर से रक्त बहने लगा और पीड़ा असहनीय हो गयी. हनुमानजी थे कि परिक्रमा किये जा रहे थे और बीच-बीच में शिलाओं पर पूँछ के फटके भी लगा रहे थे. शनिदेव कातर होकर हनुमानजी से कृपा करने की प्रार्थना करने लगे. वह बोले-“ करुणामय भक्तराज! मुझपर कृपा कीजिए. मुझे प्राणदान दीजिये”. दया की मूर्ति हनुमानजी ने कहा-“ यदि तुम मेरे भक्त की राशि पर कभी न जाने का वचन दो, तो मैं तुम्हें मुक्त कर सकता हूँ. यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हें कठोरतम दंड दूंगा”. शनिदेव ने वचन दिया कि-“ है कपिवर! निश्चय ही मैं आपके भक्त की राशि पर कभी नहीं जाऊंगा. हनुमानजी ने शनिदेव को छोड़ दिया. शनि ने अपना शरीर सम्हालते हुए अपने गर्व का मर्दन करने वाले हनुमानजी को सादर प्रणाम किया और अपनी चोट से होने वाली पीड़ा को मिटाने के लिए उनसे तेल मांगने लगे. हनुमानजी ने उन्हें तेल प्रदान कर उनके कष्ट को दूर किया.इसीलिए आज भी शनिदेव को संतुष्ट करने के लिए भक्तगण उन्हें तेल चढाते हैं.