सुग्रीव और अंगद की रोचक अंतर्कथा...! रावण की त्रैलोक्य विजय - 33 


स्टोरी हाइलाइट्स

सुग्रीव और अंगद की रोचक अंतर्कथा...! रावण की त्रैलोक्य विजय 33  रमेश तिवारी मित्रो, गत अंक में हम रावण के महिष्मती (जो मंडला ही था) आगमन ,और वहीं सहस्त्रबाहू से उसके युद्ध और फिर मित्रता की प्रामाणिकता के अनेक तथ्य उद्घाटित कर चुके हैं। किंतु अभी बहुत से ऐसे और भी प्रमाण हैं, जिन्हें हम कथाओं के अंत में और भी विस्तार से लिखेंगे। आज तो हम श्रीराम द्वारा लंका पर आक्रमण के पूर्व की दो घटनाओं का चित्रण करना चाहते हैं। जिनसे यह सिद्ध होता है कि श्रीराम कितने बडे़ कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी थे। उनको अपनी स्वमी भक्ति और निष्ठा दिखाने के लिए सुग्रीव और अंगद ने अपना शौर्य और चतुराई का स्वयं ही प्रमाण दिया। अभी युद्ध प्रारंभ नहीं हुआ था।रावण ने लंका के चारों द्वारों पर अपने महा प्रतापी सेना नायकों की नियुक्ति करदी थी। रावण के कौन ,कौन से योद्धा किन किन द्वारों पर नियुक्त थे,यह गुप्त जानकारी श्रीराम को मिली। यह जानकारी देने वाले विभीषण और उसके साथ शरणागत हुए ,चार राक्षस मंत्रियों -अनल, पनस,सम्पाति और प्रमति उपलब्ध करवा रहे थे। यह चारों ही भाई , रावण के मातामह सुमाली के भ्राता माल्यवान के पुत्र थे। माल्यवान अंत तक रावण के साथ लंका में ही रहा। परन्तु वह रावण द्वारा सीता के अपहरण का विरोध करता रहा। रावण माल्यवान को फटकारता भी रहता था।माल्यवान सहित एक बडा़ वर्ग था राक्षसों का जो यह मान बैठा था कि अब रावण का अंत निश्चित है। अतः उस वर्ग की निष्ठा विभीषण के साथ हो गई थी। वह वर्ग यह भी जानता था कि श्रीराम वचन के पक्के हैं। और यह भी कि विभीषण का राजा बनना तय है। अतः लंका की पूरी गुप्त सूचनायें विभीषण के उन मंत्रियों के गुप्तचर, उनको भेज रहे थे। इन सब में अग्रणी तो विभीषण की पत्नी सरमा भी थी। जो कि गंधर्व राज शैलूष की पुत्री थी।और अशोक वाटिका में सीता से मिलती रहती थी। अतः श्रीराम ने भी अपने प्रमुख योद्घाओं को संबंधित द्वारों का सूक्ष्मता पूर्वक उत्तरदायित्व सौंपने की दृष्टि से निरीक्षण किया। इसी समय एक अप्रत्याशित घटना घटी। रावण अपने एक महालय से सेना का व्यूह देख रहा था। किंतु यह क्या हुआ...! सुग्रीव ने तो अचानक छलांग लगा दी। महालय पर चढ़ गया। और रावण से भिड़ गया। बाल्मीकी रामायण में इस द्वंद युद्ध का वर्णन बिल्कुल आजकल देखी जाने वाली फाइट डब्ल्यू,डब्ल्यू ई की तरह लिखा है। राम और लक्ष्मण हतप्रभ थे। यह हुआ क्या..? सुग्रीव के इस अकथनीय और अवांछनीय दुस्साहस की आवश्यकता क्या थी...? और...! जब सुग्रीव लौटा तो श्रीराम ने सुग्रीव को यह कहकर प्रेम मिश्रित डांट भी पिलाई कि -वानर राज तुम हमारी सेना के प्राण हो। प्रमुख हो। यदि तुम्हें कुछ हो जाता तो....? भविष्य में ऐसा कभी नहीं करना। निश्चित ही भाई बाली को मरवा कर राजा बने सुग्रीव में अभी तक इस पाप का अपराध बोध था। जिसको कुंठा कहना अधिक सार्थक होगा। वह निष्ठा के अतिरेक प्रदर्शन में यह कदम उठा बैठा। उसने श्रीराम से कहा भी -भगवन सीता माता का हरण करने वाले इस दुर्दांत रावण को देखकर मेरा रक्त खौलने लगा था। अब बात अंगद की निष्ठा की भी करलें। जब बाली का वध हुआ। श्रीराम और लक्ष्मण वहीं पर उपस्थित थे। बाली की पत्नी तारा विलाप कर रही थी। अंगद भी शोक ग्रस्त था।तारा बार बार कह रही थी ,सुग्रीव क्रूर और राज्याकांक्षी है। इसीलिए इसने मेरे पति से बैर बांधा। और श्रीराम से मिलकर धोखे से मरवा दिया ।अब मेरा और अनाथ अंगद का क्या होगा। वहां उपस्थित किष्किंधा वासियों की सहानुभूति तारा और अंगद के साथ थी। वातावरण को शांत करने हेतु श्रीराम ने तारा और अंगद को अनेक आश्वासन दिये। किंतु श्रीराम को यह अनुभव हो गया था कि अंगद के मन में काका सुग्रीव के प्रति असंतोष तो है। फिर अंगद के विभीषण के प्रति संपूर्ण क्रोध,वैमनस्य और घृणा का पात्र दक्षिण समुद्र के किनारे फूट ही गया। कथा सबने सुनी है। परन्तु आंखें बंद करके, अंध भक्ति से मात्र। बात यह हुई कि सुग्रीव द्वारा सीता को ढूंढने के लिए लंका की ओर भेजे गये दल का नायक अंगद ही था। चारों दिशाओं में जो चार दल भेजे गये थे। उन सभी को आदेश था कि एक माह में ही सीता का पता लगा कर लौटना है। आज्ञा का उल्लंघन होने पर मृत्युदंड का प्रावधान था। अंगद के नेतृत्व वाले दल को एक माह तो स्वयं प्रभा के साथ उस स्वर्णमयी गुफा नुमा महल में ही बीत गया था। जो महल रावण के ससुर दानव मय ने अपनी अपसरा पत्नी हेमा के विलास के लिए बनवाया था। किंतु वह इसके पूर्व ही इंद्रसेन नामक एक वारुणेय के साथ भाग गई थी। तब उस सुनसान पडे़ महल की देखरेख के लिए स्वयं प्रभा को नियुक्त किया गया था। लेखक भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार व धर्मविद हैं |