क्या सनातन धर्म ही विश्व धर्मं है?


स्टोरी हाइलाइट्स

सनातन धर्म ने संसार को सहिष्णुता, समरसता, स्वीकार्यता, समभाव की शिक्षा दी है| सनातन धर्म ने सबको स्वीकार किया है, विश्व बंधुत्व की भावना का प्रचार किया है, सनातन धर्म समुद्र की तरह है जिसमें अन्य सभी धर्मों की नदियां मिलती है| संप्रदाय, मत, परंपराएं, नदियों की तरह है जो अंत में जाकर सनातन धर्म रूपी समुद्र में मिल जाती है| संसार के सभी पंथ, संप्रदाय को मानने वाले लोग खुद को सीमा में बांध लेते हैं| लेकिन वह उस कुएं के मेंढक की तरह है जिसे लगता है कि कुआ ही सारा संसार है|     भारत ने सनातन धर्म की सार्वभौमिकता को समझा और उसे स्वीकार किया, इस सनातन धर्म से न जाने कितने धर्म निकले लेकिन सनातन धर्म चट्टान की तरह अडिग रहा, सनातन धर्म श्रुति और वेदों पर आधारित है, वेद का ना कोई अंत है ना आदि, वेद कोई पुस्तक नहीं है, वेद अलग-अलग समय में अलग-अलग महापुरुषों द्वारा अर्जित आध्यात्मिक सूत्रों का संचित कोष है| आध्यात्मिक सत्य वह नियम है जो दुनिया के शुरू होने से पहले भी थे और इसके अंत होने के बाद भी रहेंगे| जैसे इस पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का नियम, यह पहले भी वैसा ही था, आगे भी वैसा ही रहेगा, यह बदलेगा नहीं| हमारे आपसी संबंध और हमारे परमात्मा से संबंध मूल रूप में जैसे पहले थे, आगे भी वैसे ही रहेंगे| हम कोई भी पंथ संप्रदाय या मत को मानने वाले हो लेकिन हम सब को चलाने वाली सत्ता एक ही है| और सनातन धर्म का आधार भी यही है, “एकम सद विप्रः बहुधा वदंति” | नातन धर्म उन नियमों पर आधारित है, जो नियम कभी बदलते नहीं जो इस विश्व के नियम है, सनातन धर्म के मूल में आत्मा ही मनुष्य का सत्य है, शरीर मर सकता है, लेकिन आत्मा हमेशा अजर और अमर रहती है| सनातन धर्म, कर्म और धर्म के संस्कारों से पैदा हुए दुख और सुख के सिद्धांत पालन करता है| जैसे शरीर अपने अनुवांशिक माता-पिता से कुछ खास तरह की प्रकृति लेकर आता है, और वर्तमान की देश, काल परिस्थिति से भी उसकी प्रकृति में कुछ घट-जोड़ होते हैं, उसी तरह से आत्मा भी जन्म जन्मांतर से कुछ खास तरह की प्रवृत्तियां, संस्कार, ऊर्जा लेकर आती है| मनुष्य का चेतन मन सतह है, इस मन के अंदर की परतों में बहुत कुछ छुपा हुआ है| सनातन धर्म मनुष्य को अमृत का पुत्र कहता है, सनातन धर्म मनुष्य को परमात्मा की संतान कहता है| सनातन धर्म परमात्मा को सर्वत्र, निराकार, सर्वशक्तिमान, दयालु मानता है| और यही सभी धर्मों का मूल है, सनातन धर्म कहता है कि परमात्मा से निरंतर प्रेम करो,  सनातन धर्म कहता है कि आत्मा दिव्य स्वरुप है, वह पंच भूतों के बंधनों से बंधी हुई है, और जैसे ही वह बंधन टूटते हैं, आत्मा पूर्णता को प्राप्त कर लेती है, और इसी को मुक्ति कहते हैं और यह मुक्ति ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त होती है| सनातन धर्म को मानने वाला खुद को इंद्रियों के अनुभव से भी ऊपर ले जाने की इच्छा रखता है, वह अपनी आत्मा को जानना चाहता है, वह अपनी आत्मा को मुक्त करना चाहता है,  आत्मा का दर्शन ही ईश्वर का दर्शन है, सनातन धर्म की समस्त साधनाएं मनुष्य को पूर्ण बनाने की है, दिव्य बनाने की है, ईश्वर को प्राप्त करने की और उसके दर्शन करने की है| सनातन धर्म मनुष्य को असीम परमानंद का जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है| सनातन धर्म की मान्यता है कि यदि मनुष्य एक छोटे से शरीर की चेतना से इतना आनंद हासिल कर सकता है तो वह अपनी चेतना के स्तर को बढ़ाकर आनंद के स्तर को भी बढ़ा सकता है| परम अवस्था को प्राप्त कर सकता है| सनातन धर्म व्यक्ति को शूद्र व्यक्तित्व से विश्व व्यक्तित्व बनाने की यात्रा है, सनातन धर्म मनुष्य को अज्ञान से ज्ञान स्वरूप बनाने का यत्न है| सनातन धर्म मानने वाले अनेक ईश्वर में विश्वास नहीं रखते  लेकिन वह प्रत्येक मंदिर में, देवी देवता की प्रत्येक कृति और प्रतिकृति में, एक ही ईश्वर की स्थिति को देखता है| और उस परमपिता के समस्त गुणों को उस मूर्ति में प्रतिस्थापित कर, प्राण प्रतिष्ठा कर, उस तक पहुंचने का यत्न करता है|   अतुल विनोद