कोरोना से लंबी लड़ाई
सरकार और समाज थकने लगे हैं सब...मिलकर हाथ बढ़ाना
राघवेंद्र सिंह
नया इंडिया/भोपाल
फ्लेशबैक- एक साल पहले 2020 का मार्च-अप्रैल जब कोरोना से लड़ाई का बिगुल बज रहा था, समूचे राष्ट्र ने इस वैश्विक आपदा की लड़ाई को अवसर में बदलते बदलते कब उत्सव में बदला पता ही नही चला। हैरत से देख रही पूरी दुनिया में भारत का मान भी बढ़ा। रातों रात हाईड्रॉक्सिकलोक्वीन गोली से लेकर मास्क, पीपीई किट से लेकर वेंटिलेटर बनाने का चौबीसों घण्टे इतना उत्पादन कि हम दुनिया मे इनका निर्यात भी करने लगे।
अस्पतालों के मरीजों से भरने के बाद खाली पड़ी हाइराइज बिल्डिंगस से लेकर मैदानों में तम्बू लगाकर डॉक्टर-हेल्थ वर्कर और समाजसेवियों ने मिलकर मिसाल कायम की। दवा के साथ जरूरतमंदों को राशन पानी भी मुहैया कराने में युद्ध स्तर पर काम किया। इस लड़ाई में डॉक्टर , पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारियों, पैरामेडिकल स्टाफ और समाजसेवियों ने प्राणों की आहुति दी।
उनको कोरोना वॉरियर्स का ओहदा दे शहादत का सम्मान भी किया। लाखों नही बल्कि करोड़ों बदहवास लोग दिल्ली, मुंबई कलकत्ता से लेकर ट्रेन, प्लेन, बसों के अलावा साइकिल और पैदल ही दुधमुंहे बच्चों के साथ अपने अपने घर व गांवों की तरफ निकल पड़े थे। शायद ऐसे सीन देश विभाजन के बाद कभी देखने को नही मिले थे। कोरोना के इस संघर्ष में कई लोग मर खप भी गए थे। ताली- थाली और शंख बजाने, दीया जलाने के साथ जनता कर्फ्यू व एक एक महीने लंबे लॉक डाउन भी देखे थे।
देश और दुनिया मे सितम्बर अक्टूबर से हालात सुधरते दिखे। सब लोग सोच रहे थे कि हमें कोरोना से लड़ना और उससे फ़जीतना आ गया है। पूरा देश आत्मविश्वास से भरा हुआ था। वेक्सीन बनने और भारत में उसका बड़े पैमाने पर उत्पादन ने सीना 56 इंच का कर दिया था। इस बीच जो कोरोना योद्धा चले गए वे तो नही लौटेंगे मगर फिर से लौटी कोरोना की दूसरी सुनामी ने सबके हाथपांव फुला दिए हैं। यह तब हुआ जब सब रिलेक्स मोड पर थे।
अर्थव्यवस्था के साथ सरकार-सियासत और समाजिक गतिविधियां सामान्य हो रही थी। फेक्ट्री और कल कारखाने, बाज़ार स्कूल-कॉलेज खुलने लगे थे। परीक्षाओं की तैयारियां शुरू हो गई थीं। होटल- रेस्तरां, शॉपिंग मॉल और पार्कों में रौनक लौट आई थी। सियासत के साथ शेयर मार्केट के साथ टूरिस्ट सेक्टर चहकने लगा था
2021में एक तरह से ज़िंदगी पटरी पर लौट रही थी कि यकायक कोरोना ने कोबरा बन फिर फन उठाया और लगा सबको डसने। देश में कोरोना संक्रमितों की तादात हर डराने आंकड़ों को पार कर रही है। पिछले साल 2020 में बमुश्किल देश मे संक्रमितों की संख्या एक लाख के पार हुई थी। लेकिन अब यह आंकड़ा डेढ़ लाख को छू रहा है। मरने वाले इतनी बड़ी संख्या में है कि सरकारों का साहस नही हो पा रहा कि वे देश के साथ उसे साझा कर सकें। कह सकते हैं कि सरकारों की सांसें फूली हुई हैं।
एक साल से एक तरह से कोरोना के चलते नज़रबन्दी काट रहे लोग बुरी तरह डिप्रेशन में हैं। हताशा का आलम यह है कि मनोवैज्ञानिक तौर पर आत्मघात जैसे विचारों और छोटी मोटी बातों पर आपा खोने के साथ खून खराबे पर लोग उतारू हो रहे हैं। सरकारें नए खतरों के प्रति कुछ करने की हालत में नही है। खजाने खाली है और चिकित्सकीय व प्रशासनिक हलकों में भी कोरोना से लम्बी लड़ाई में अब थकान दिखने लगी है। सड़कों पर व्यवस्था बनाती पुलिस और उसके मैदानी सिपाही और फील्ड में डटे पुलिस व एसडीएम, तहसीलदारों की हिम्मत भी जवाब देने लगी है।
अब अपमानित होते कोरोना वॉरियर्स
अब कोरोना वारियर्स सम्मान के बजाए अपमान का शिकार हो रहे हैं। भोपाल के जयप्रकाश जिला अस्पताल में डॉ योगेंद्र श्रीवास्तव को कांग्रेस विधायक पूर्व मंत्री पीसी शर्मा और उनके समर्थकों ने कोरोना पीड़ित की मौत पर अभद्रता की। इससे दुखी डॉ श्रीवास्तव ने सेवा से त्यागपत्र दे दिया है। दैनिक भास्कर अखबार ने पीसी शर्मा के माफी मांगने तक उनके नाम का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। इसके पूर्व भास्कर ने एक मंत्री के मास्क नही लगाने पर उनकी फोटो नही छापने का भी फैसला लिया था।
भोपाल में एक दिन में 66 की मौत
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए प्रदेश में कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या चिंता का सबब बनी हुई है। रविवार को कोरोना से भोपाल में मरने वालों की संख्या 66 हो गई यह अब तक का सबसे बड़ा और भयावह आंकड़ा है। मुख्यमंत्री अपने अफसरों व जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर पूर्ण लॉक डाउन से बचने के उपायों पर सतत प्रयासरत हैं। सरकार के साथ समाज को यह लड़ाई 2020 की भांति मिलजुलकर लड़नी पड़ेगी।
अभी तो एक नही सभी थके थके से हैं। हिम्मत जवाब दे रही है। प्रशासन और सरकार के मैनेजर संकट से लड़ने का प्रबंधन बेहतर के बजाए खबरों के मेनेजमेंट में लगे हैं। अच्छा हो कि सरकार की इमेज बनाने वाले कोरोना की इस सुनामी में शिवराज सिंह की मेहनत और सरकार व समाज मिलकर जो अच्छा कर रहे हैं उसे भी सबके सामने लाने पर जोर दें तो लोग डिप्रेशन में जाने से बचेंगे। एक गाने की पंक्ति है ...'एक अकेला थक जाएगा मिलकर हाथ बढ़ाना....' यह लड़ाई हर दिन कठिन दौर में जा रही है...