भगवान जगन्नाथ रथयात्रा: भगवान स्वयं आते हैं भक्तों के पास


स्टोरी हाइलाइट्स

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं भगवान जगन्नाथ। रथयात्रा उत्सव की तैयारियां महीनों पहले से शुरू कर दी जाती हैं और रथयात्रा वाले दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और उत्सव मनाते हैं।

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं भगवान जगन्नाथ। रथयात्रा उत्सव की तैयारियां महीनों पहले से शुरू कर दी जाती हैं और रथयात्रा वाले दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और उत्सव मनाते हैं। पुरी में जिस रथ पर भगवान की सवारी चलती है वह विशाल एवं अद्वितीय है और इसका आध्यात्मिक और पौराणिक दृष्टि से विशेष महत्व भी है। भगवान जगन्नाथ का रथ 45 फुट ऊंचा, 35 फुट लंबा तथा इतना ही चौड़ाई वाला होता है। इसमें सात फुट व्यास के 16 पहिये होते हैं। इसी तरह बलभद्र जी का रथ 44 फुट ऊंचा, 12 पहियों वाला तथा सुभद्रा जी का रथ 43 फुट ऊंचा होता है। इनके रथ में भी 12 पहिये होते हैं। प्रतिवर्ष नए रथों का निर्माण किया जाता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार पर बैठकर जनकपुरी की ओर रथयात्रा करते हैं। जनकपुरी में तीन दिन का विश्राम होता है जहां उनकी भेंट श्री लक्ष्मीजी से होती है। इसके बाद भगवान पुनः श्री जगन्नाथ पुरी लौटकर आसनरुढ़ हो जाते हैं। दस दिवसीय यह रथयात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक उत्सवों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और इसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
रथयात्रा का पुण्य: सौ यज्ञों के बराबर- 
 भगवान श्रीकृष्ण के अवतार 'जगन्नाथ' की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। जगन्नाथ जी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे 'त्रैलोक्यमोहिनी' या ‘नंदीघोष’ रथ कहते हैं। बलराम जी का रथ 'तलध्वज' के नाम से पहचाना जाता है। रथ के ध्वज को 'उनानी' कहते हैं। जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है वह 'वासुकी' कहलाता है। सुभद्रा का रथ 'पद्मध्वज' कहलाता है। रथ ध्वज 'नदंबिक' कहलाता है। इसे खींचने वाली रस्सी को 'स्वर्णचूडा' कहा जाता है।