कलाओं का घर मध्यप्रदेश : Culture of Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश का सांस्कृतिक परिचय
कलाओं का घर मध्यप्रदेश
MADHYA PRADESH, CULTURE , TRADITION, People, Festivals, Art
मध्यप्रदेश भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है। सांस्कृतिक रूप से मध्यप्रदेश की सबसे अलग पहचान है। मध्य का मतलब बीच में है, मध्यप्रदेश की भौगोलिक स्थिति देश के बीच में होने की वजह से उसे 'मध्यप्रदेश' नाम दिया गया, जो कभी मध्यभारत कहलाता था। भावात्मक दृष्टि से मध्यप्रदेश के लोग इसे भारत का हृदय भी कहते हैं। वाकई में मध्यप्रदेश हृदय की तरह देश के ठीक बीचोंबीच स्थित है।
मध्यप्रदेश में भारत की सम्पूर्ण धड़कन सुनी और महसूस की जा सकती है मध्यप्रदेश के बनने से लगाकर सन् 2001 तक छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का अभिन्न सांस्कृतिक अंग था । इस कारण मध्यप्रदेश की संस्कृति पर छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का प्रभाव भी सहज रूप से देखा जा सकता है। मंडला, बालाघाट, अनूपपुर और शहडोल के आंचलिक हिस्सों में अभी भी छत्तीसगढ़ बोली, संस्कृति और कला का शेष समवाय देखा जा सकता है। इसका आशय यह है कि अब भी मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ संस्कृति का कुछ हिस्सा बचा हुआ है। यही कारण है। कि मंडला-बालाघाट आदि के लोक और आदिवासी प्रजाति समूहों में छत्तीसगढ़ी लोक कलाओं के पारम्परिक रूप भी हमें देखने को मिल जाते हैं। जैसे पंडवानी मूलतः मंडला के परधान-गोंडों की गायिकी है, लेकिन छत्तीसगढ़ी पंडवानी के अनेक लोक गायक और गायिकाएँ मंडला में आज मिलते हैं।
मध्यप्रदेश की संस्कृति विविधवर्णी है। गुजरात, महाराष्ट्र अथवा उड़ीसा की तरह मध्यप्रदेश को किसी एक भाषाई संस्कृति के रूप में नहीं पहचाना जाता। यह प्रदेश विभिन्न लोक और जनजातीय संस्कृतियों का समागम है। यहाँ कोई एक लोक संस्कृति नहीं है। यहाँ एक तरफ पोच लोक संस्कृतियों का समावेशी संसार है, तो दूसरी ओर अनेक जनजातियों की आदिम संस्कृति का विस्तृत फलक पसरा है। एक तरफ निमाड़ी, मालवी. बुन्देली. बघेली और ग्वालियरी संस्कृति कला और बोलियों की समृद्ध वाचिक और कला परम्परा है, वहीं दूसरी तरफ आदिवासियों की सांस्कृतिक धरोहर का आदिम विविध विश्व और कला का संस्पर्शी जगत मौजूद है। मध्यप्रदेश पहले सात राज्यों से घिरा हुआ था, अब यह राज्यों की संस्कृतियों से आवृत्त है। इस प्रदेश को एक तरफ से उत्तरप्रदेश, दूसरी तरफ से झारखण्ड, तीसरी तरफ से महाराष्ट्र, चौथी तरफ से राजस्थान, पाँचवीं तरफ से गुजरात और छटवीं तरफ से छत्तीसगढ़ की सीमाओं से घिरा हुआ है।
भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है. जिसकी रोशनी की सर्वथा अलग प्रभा और प्रभाव है। मध्यप्रदेश की लोक संस्कृति के रंग इन्द्रधनुषी है। विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का जैसे सुन्दर गुलदस्ता है मध्यप्रदेश, जिसे प्रकृति ने देश की वेदी पर जैसे अपने हाथों से सजाकर रख दिया है, जिसका सतरंगी सौन्दर्य और मनमोहक सुगन्ध चारों ओर फैल रहे हैं। यहाँ के जनपदों की आबोहवा में कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है। यहाँ के लोक समूहों और जनजाति समूहों में हर दिन नृत्य, गीत, संगीत की रसधारा सहज रूप से फूटती रहती है। यहाँ का हर दिन पर्व की तरह आता है और जीवन में आनंद रस घोलकर स्मृति के रूप में चला जाता है। यहाँ सप्ताह, पक्ष, मास और वर्ष उत्सव बनकर आते हैं. और शताब्दियों तक पीढ़ियों के जेहन में यात्रा करते रहते हैं।
कलाओं के घर मध्यप्रदेश में लोक और जनजाति संस्कृति के अनेक रंग बिखरे हैं, इनमें विभिन्न अवसरों, पर्व-त्योहारों, अनुष्ठानों आदि की जैसे एक अजस्र परम्परा ही बन गई है, जिनमें लोक और जातीय संस्कृति के उन संवेदनशील अवसरों की अभिव्यक्तियों पर किये जाने वाले नृत्य, गायन,नाट्य, चित्र, मेले-उत्सव आदि को महसूस किया जा सकता है, जहाँ जीवन के सुख-दुख, श्रम-आनंद, उमंग-उल्लास, सृष्टि-दृष्टि, सर्जन-विसर्जन और संकल्प-विकल्प आदि विगलित होते दिखाई देते हैं।
जहाँ जीवन एक शैली के रूप में हमारे सामने अवतरित होता है जिसमें परम्पराओं का आस्वाद और आधुनिकता का अन्वय एक साथ देखा जा सकता है।
जहाँ आज भी आदिमता के पारम्परिक पड़ावों और लोक जीवन की समसामयिक समरसता को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता।
इसे जीवन के हर पहलू, परम्परा और परिपाटी में गुम्फित महसूस किया जा सकता है। प्रदेश के तुंग-उतुंग शैल शिखर विन्ध्य-सतपुड़ा, मैकल-कैमूर की उपत्यिकाओं के अन्तर से गूंजते अनेक पौराणिक आख्यान और नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा केन, धसान, तवा, ताप्ती आदि सर-सरिताओं के उद्गम और मिलन की मिथकथाओं से फूटती सहस्र धाराएँ यहाँ के जीवन को आप्लावित ही नहीं करतीं, बल्कि परितृप्त भी करती हैं। यहाँ के जंगल, वन और वनस्पति के साथ खिलते हैं। पेड़-पौधे पुष्पित और पल्लवित हो झूमते हैं।
वृक्ष की डालियों पर नीड़ों में दुर्लभ पक्षी कलरव करते हैं। आम्र कुंजों में कोयल कुहकती है। सावन में पपीहा पी-पी की राग सुनाता है भादौ में काले मेघ को देखकर मोर सुन्दर पंख फैलाए नाचता है। किसान खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर झूमता है। प्रकृति का यह नर्तन यहाँ की पुण्य भूमि पर निरन्तर चलता रहता है। प्रकृति के इस निरन्तर नर्तन से ही यहाँ के जीवन में नृत्य के भाव जगे, यही कारण है कि मध्यप्रदेश के लोक और आदिवासी नृत्य यहाँ की भूमि के उपहार हैं। मध्यप्रदेश के पारम्परिक लोक और आदिवासी नृत्यों में यहाँ की मिट्टी की सोंधी सुगन्ध बसी है। इस कारण से मध्यप्रदेश के जनपदीय और जनजाति जीवन की एक अलग से खास लय-ताल है।