आशा कंवर जैसे करोड़ों रामभक्त -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

आशा कंवर जैसे करोड़ों रामभक्त -दिनेश मालवीय आज अखबार में एक खबर पढ़ी कि जोधपुर की एक गृहणी आशा कंवर देवी की अंतिम इच्छा के अनुरूप उनके पति ने पत्नी के  सारे जेवर अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए समर्पित कर दिए. ये जेवरात सात लाख रूपये से अधिक में बिका हैं. यह राशि मंदिर के लिए समर्पित कर दी गयी है. उनके परिवार को ये जेवरात श्रीराम मंदिर के लिए समर्पित करने में बहुत हर्ष हुआ. उनके पति विजयसिंह ने खुद फोन करके समर्पण निधि जुटाने वाले लोगों को बुलाया और ये जेवरात भेंट किये. आशा कंवर देवी ने जीवन की अंतिम साँसें लेते हुए यह इच्छा व्यक्ति की थी, जिसे उनके पति ने बहुत श्रद्धा के साथ पूरा किया. आज के ज़माने में जब लोग छोटी-छोटी सी रकम के लिए बड़ी से बड़ी बईमानी करने में नहीं झिझकते, ऐसे समय में आशा कंवर देवी के परिवार की यह ईमानदारी सुखद आश्चर्य में डालती है. वे चाहते तो सात लाख जैसी बड़ी रकम की खातिर ये जेवरात समर्पित नहीं करते. लेकिन श्रीराम के भक्त ऐसे ही होते हैं. उन्हें उनकी भक्ति और उनकी सेवा के लिए कोई भी त्याग करने में अपार सुख मिलता है. वैसे तो ऐसे लोग भी हैं, जो इस मंदिर के निर्माण के लिए करोड़ों रूपये समर्पित कर रहे हैं, लेकिन आशा कंवर देवी के परिवार का यह त्याग अनुकरणीय है. गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी हैसियत के अनुसार निधि समर्पित कर रहा है. सबके मन में श्रीराम का भव्य मंदिर निर्मित होते देखने की परम अभिलाषा है. वैसे देखा जाए तो पिछली चार सदियों में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर स्थल को वापस पाने के लिए क्या-क्या बलिदान नहीं दिए! इसके सैंकड़ों लड़ाइयों में हज़ारों भक्तों ने प्राणों का बलिदान दिया. इस सन्दर्भ में अयोध्या का इतिहास रक्तरंजित रहा है. एक राज परिवार के सदस्यों ने तो जन्मभूमि के पक्ष में अदालती फैसला आने पर चार सदियों बाद पांवों में जूते-चप्पल पहने. चार सदी पहले जब उनके पूर्वज मंदिर के विध्वंस को रोकने में नाकाम हुए, तब उन्होंने शपथ ली थी कि उनके वंशज तब तक पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनेंगे, जब तक श्रीराम जन्मभूमि वापस नहीं मिल जाती. मेरे एक मित्र ने बड़ी सुन्दर भावनात्मक कल्पना की. उन्होंने कहा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का सपना संजोये अनेक पीढ़ियों के लाखों लोग परलोक सिधार गये. जन्मभूमि के फैसले के बाद वे जिस भी लोक में होंगे, दीवाली मना रहे होंगे. स्वर्गलोक में अपार उत्सव छाया होगा. उन्होंने एक और बात कही कि जिन लोगों ने इस पवित्र स्थल के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया, उनकी आत्माएँ अवश्य ही अयोध्या के आसपास ही कहीं सूक्ष्म रूप में रह रही होंगी. हमारे धर्म-दर्शन के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु के समय जो अंतिम इच्छा होती है, उसीके अनुरूप उसे अगला जीवन मिलता है. आज वे जिस भी रूप में जहाँ भी होंगे उन्हें अपार हर्ष हो रहा होगा. श्रीराम मंदिर का निर्माण भारत के इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिससे एक ऐसे नये भारत का निर्माण होने जा रहा है, जिसका आधार सांस्कृतिक एकता है. कुछ लोगों की बात छोड़ दी जाए, तो भारत के लोगों में आमतौर पर इस मंदिर को लेकर बहुत उत्साह है. जो हिन्दू नहीं है,उनके मन में भी मंदिर को लेकर कोई विपरीत बात नहीं है. बहरहाल, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें यह नहीं भा रहा, लेकिन भारत की सांस्कृतिक एकता के सामने उनके विरोध का कोई प्रभाव होने वाला नहीं है. ऐसा भी पढने में आया है कि कहीं-कहीं दूसरे धर्म के लोग भी श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए निधि समर्पित कर रहे हैं. यह निधि श्रीराम के प्रति उनके मन में जो प्रेम और सम्मान है का प्रतीक है. यही सच्ची भारतीयता है. भारतीय दर्शन में माना गया है कि सभी रास्ते एक ही ईश्वर तक जाते हैं. एक ही सत्य को विद्वान् अलग-अलग तरह से व्यक्त करते हैं. सभी जीवों में एक ही परम चेतना विद्यमान है. आशा कंवर देवी ने अंतिम इच्छा के रूप में श्रीराम मंदिर के लिए अपने गहने समर्पित करने की जो भावना व्यक्ति की, उसे उनका जीवन तो धन्य हो ही गया, उनके पति ने भी अपनी स्वर्गीय पत्नी की राम भक्ति को धन से ऊपर रखकर अपना जीवन धन्य कर लिया है. इस परिवार से प्रेरणा लेकर लोगों को स्वत: आगे आकर मंदिर निर्माण के लिए यथाशक्ति योगदान करना चाहिए.