चक्रासन का लाभ


स्टोरी हाइलाइट्स

चक्रासन   चक्रासन वह आसन है जिसके बारे में कहा जाता है कि जिसने चक्रासन का अभ्यास किया, उसने अपने मस्तिक पर काम किया, अर्थात चक्रासन के अभ्यास से शरीर व रीढ़ लचीले होने के साथ यह कई क्रियाओं में मदद भी करता है। 1.     रीढ़ वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की सम्पूर्ण सूचनाऐं मस्तिक को व मस्तिक के सभी आदेश शरीर को पहुँचाये जाते हैं। रीढ़ की तन्त्रिकाऐं सीधे तौर पर केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र से जुड़ी होती हैं। केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र ही सभी प्रकार की क्रियाओं का समन्वय व नियन्त्रण करता है। 2.     चक्रासन जब भी करें, पूर्ण रूप से खाली पेट, कपड़े ढीले व कम से कम हों। तथा अभ्यास करते समय जबरदस्ती न करके प्राकृतिक चिकित्सक से सलाह लें। पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ीए। एड़ीयां नितम्बों के समीप लगी हुई हों। दोनों हाथों को उल्टा करके कंधों के पीछे थोड़े अन्तर पर रखें इससे सन्तुलन बना रह्ता है। श्वास अन्तर भरकर कटिप्रदेश एवं छाती को ऊपर उठाइये। धीरे-धीरे हाथ एवं पैरों को समीप लाने का प्रयत्न करें, जिससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाए। आसन छोड़ते समय शरीर को ढीला करते हुए भुमि पर टिका दें। इस प्रकार 3-4 आवृति करें। चक्र का अर्थ है पहिया। इस आसन में व्यक्ति की आकृति पहिये के समान नजर आती है इसीलिए इसे चक्रासन कहते हैं। यह आसन भी उर्ध्व धनुरासन के समान माना गया है। अवधि: चक्रासन को सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक किया जा सकता है। इसे दो या तीन बार दोहरा सकते हैं। लाभ: रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाकर वृध्दावस्था नहीं आने देता । जठर एवं आंतो को सक्रिय करता है । शरीर में स्फूर्ति, शक्ति एवं तेज की वृध्दि करता है। कटिपीड़ा, श्वास रोग, सिरदर्द, नेत्र विकारों, सर्वाइकल व स्पोंडोलाईटिस में विशेष हितकारी है। हाथ पैरों कि मांसपेशियों को सबल बनाता है। महिलाओं के गर्भाशय के विकारों को दूर करता है। वास्तव में यह आसन धनुरासन, उट्रासन व भुजंगासन का लाभ एक साथ पहुँचाता है। चक्रासन का नियमित अभ्यास ‘न्यूरोग्लिया’ कोशिकाओं की वृद्धि करता है। न्यूरोग्लिया वह कोशिकायें हैं जो रक्षात्मक व सहायता कोशिकायें होती हैं तथा यह मेरुरज्जु व मस्तिक का 40 प्रतिशत हिस्सा होती है, ये कोशिकायें केन्द्रिय तन्त्रिका को बीमारियों से बचाती है। ट्यूमर जैसे रोग न पनपे, इसके लिए न्यूरोग्लिया अपनी जिम्मेदारी निभाता है। डिपेरशन, मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि जैसे आवेगों में न्यूरोग्लिया कम होने लगते हैं, जब अधिक मात्रा में न्यूरोग्लिया कोशिकायें मौजूद होती हैं तो मानसिक रोग मस्तिक व तन्त्रिका कोशिकाओं को क्षति नहीं पहुँचा पाते हैं। न्यूरोग्लिया की अपनी क्लिनिकल महत्ता है। जब चक्रासन किया जाता है तो न्यूरोग्लिया कोशिकाओं की तादाद बढ़ने लगती है, इसी कारण चक्रासन चुस्ती–फुर्ती के साथ–साथ जोश व उमंग भी पैदा करता है। सावधानी : चक्रासन अन्य योग मुद्राओं की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। यदि आप इस आसन को नहीं कर पा रहे हैं तो जबरदस्ती न करें।  ह्रदय रोगी उच्च रक्तचाप, हर्निया रोगी,अल्सरेटिव कोलैटिस के रोगी, तथा गर्भ अवस्था के दौरान इस अभ्यास को मत करे। अगर चक्रासन  नहीं कर पा रहे है तो अर्द्ध च्रसं करे तथा किसी योग्य प्रकितिक चिकित्सक के देख रेख में करे।