अनावश्यक शक्ति प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, हनुमानजी का शक्ति भूल जाने वाला रहस्य.. दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

रमकथा मे हनुमानजी की बड़ी केन्द्रीय भूमिका है। अनेक भाषाओं मे रामायण लिखी गयी हैं। उनके कथानकों और प्रसंगों में कुछ अंतर...अनावश्यक शक्ति प्रदर्शन

अनावश्यक शक्ति प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, हनुमानजी का शक्ति भूल जाने वाला रहस्य.. दिनेश मालवीय हम महावीर हनुमान जी के चरित्र के एक ऐसे विशेष गुण से परिचित कराने जा रहे हैं, जो हमारे जीवन मे बहुत उपयोगी हो सकता है। हनुमानजी ने मात्र चार बार अपना विशाल रूप दिखाया, उन्होंने अनावश्यक शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। हनुमान जी के शक्ति भूल जाने का रहस्य, जानिए.. उन्हें श्रीराम का अनन्य भक्त, परम बलशाली, ज्ञानवान और बुद्धिमान सभी ने माना है। हनुमान जी के चरित्र के इतने पहलू हैं कि उन पर स्वतंत्र ग्रंथ तक लिखे गये हैं। उनके चरित्र का हर पहलू बहुत अनूठा है। उनके हर कार्य में कोई ऐसा संदेश निहित होता है,जो हमे जीवन की अहम सीख देता है। पवन पुत्र हनुमानजी के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पक्षों में एक यह है, कि उन्हें अपना बल याद नहीं रहता। दूसरा यह कि वह अपने बल और वास्तविक रूप को जहाँ तहाँ प्रदर्शित नहीं करते। आइये, इन दो विषयों पर श्रीरामचरितमानस के संदर्भ में चर्चा करते हैं। हनुमानजी द्वारा अपना बल भूल जाने के विषय में कथा आती है कि बचपन में वह इतने बलशाली और ऊर्जा से भरे थे कि बालसुलभ लीला करते हुए ऋषियों का सामान आदि यहाँ वहाँ फेंक देते थे। बहुत समझाने पर भी नहीं मानने पर ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि उन्हें अपना बल याद नहीं रहेगा। इसीलिए हनुमानजी से किसी कामना की पूर्ति करवाने के लिए उन्हें उनका बल याद दिलाना पड़ता है। हनुमान चालीसा, हनुमान बाहु,हनुमान अष्टक आदि की रचना भी इसी उद्देश्य से की गयी। इनका पाठ करने वालों के अनुभव सकारात्मक पाये जाते हैं। पौराणिक दृष्टि से हनुमानजी को ऋषियों के श्राप वाली बात अपनी जगह, लेकिन इसपर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विचार करने पर भी बहुत अच्छा निष्कर्ष निकलता है। हम व्यावहारिक जगत में देखें तो जो भी व्यक्ति अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ होता है, उसे अपनी श्रेष्ठता का भान नहीं रह जाता। इसलिए ऐसे लोगों को जहाँ तहाँ अपनी श्रेष्ठता का बखान करते नहीं पाया जाता। जो व्यक्ति बखान कर रहा है,उसकी श्रेष्ठता संदिग्ध है। अपार धन सम्पति के स्वामियों को अपनी संपत्ति का भान नहीं रहता। वे उसे लेकर कांशियस नहीं रहते। बहुत बलशाली लोग बहुत विनम्र रहते हैं। बहुत प्रतिभाशाली लोग बड़े संकोची होते हैं। उन्हें अपनी विभूतियां विस्मृत रहती हैं और समय आने पर ही प्रकट होती हैं। श्रीरामचरितमानस में हनुमानजी ने सिर्फ चार जगह अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि हनुमानजी आठों सिद्धियों के स्वामी हैं। उनमें एक सिद्धि "महिमा" है। इसके प्रयोग से शरीर को जितना चाहे उतना विशाल बनाया जा सकता है। श्रीरामचरितमानस मे हनुमानजी ने अपनी इस सिद्धि का प्रयोग सिर्फ चार बार किया। रामकथा में उनका प्रवेश "किष्किन्धा" काण्ड मे होता है। इसमें पंपापुर में श्री राम और लक्ष्मण से उनकी पहली भेंट होती है। वानर राज सुग्रीव अपने भाई वाली के डर से ऋष्यमूक पर्वत की चोटी पर पर रहते हैं। वहाँ जाना बहुत कठिन था। हनुमानजी तो हवा मे उड़ सकते थे, लिहाजा वह तत्काल वहाँ जा सकते थे। लेकिन श्रीराम और लक्ष्मण पैदल चलकर जाते तो बहुत देर लग जाती। अत: हनुमानजी ने पहली बार अपनी "महिमा" सिद्धि का प्रयोग किया। उन्होंने अपना शरीर बड़ा कर दोनो भाइयों को कंधे पर बैठाया और सुग्रीव के पास ले गये। दूसरी बार उन्होंने अपना शरीर उस वक़्त पर्वत की तरह बड़ा कर लिया जब समुद्र तट पर जामवंत ने उन्हें उनका बल याद दिलाया। सम्पाती से वानरों को यह तो जानकारी मिल गयी थी कि रावण सीताजी का अपहरण कर लंका ले गया है। लेकिन उनसे प्रत्यक्ष मिलकर श्रीराम का संदेश लेकर जाने के लिए समुद्र पार करना था। प्रश्न यह था कि यह असंभव जैसा कार्य कौन करे। जामवंत ने कहा कि अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, नहीं तो यह कार्य मैं स्वयं कर देता। अंगद ने कहा कि चला तो जाऊंगा लेकिन लौटने मे शंका है। इस दौरान हनुमानजी एक तरफ चुपचाप बैठे रहे। परम बुद्धिमान जामवंत जानते थे कि यह कार्य हनुमानजी ही कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने बल की याद दिलानी होगी। जामवंत ने कहा- " पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना, कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होत तात तुम्ह पाहीं " इतना सुनते ही हनुमानजी ने अपना शरीर पर्वत के आकार का बना लिया। वह घोर गर्जना के साथ समुद्र पार करने के लिये छलांग लगा गये। समुद्र पर उड़ते हुये फिर एक बार और ऐसी नौबत आ गयी कि उन्हें फिर अपनी इस सिद्धि का प्रयोग करना पड़ा। मार्ग मे सुरसा नाम की राक्षसी उड़ने वाले जीवों को खा जाती थी किसी की छाया तक उस पर पड़ जाये तो वह उसे अपना आहार बना लेती थी। जब हनुमानजी वहाँ से गुजर रहे थे, तो उसने उन्हें रोका। हनुमान जी ने उससे विनती की कि वह उन्हें जाने दे। वह श्रीराम का कार्य करके स्वयं उसके पास उसका आहार बनने आ जाएँगे। लेकिन सुरसा ने एक न मानी। उसने उन्हें खाने के लिए मुँह खोला। हनुमानजी ने अपने शरीर का आकार उसके खुले मुँह से दो गुना कर लिया। सुरसा अपने मुँह का आकार जितना बढ़ाती गयी, हनुमानजी उससे दो गुना आकार के होते गये। इसके बाद तीसरी बार हनुमानजी ने अपने शरीर का आकार तब बढ़ाया, जब अशोक वाटिका मे सीताजी ने कहा कि तुम छोटे से बंदर हो, भयानक राक्षसों का सामना कैसे करोगे ? उनको विश्वास दिलाने के लिये हनुमानजी ने पर्वत के आकार का शरीर बना लिया। इसे देखकर सीताजी को विश्वास हो गया। इसके बाद जब लंका में उनकी पूंछ में आग लगाई गयी तब उन्होंने "महिमा" के साथ ही "लघिमा" नामक सिद्धि का प्रयोग किया। इसके कारण शरीर विशाल होने पर भी उनका वज़न हवा से भी कम हो गया। इसके बल पर उन्होंने लंका का दहन कर दिया। मित्रो, इस प्रकार, हनुमानजी से यह शिक्षा मिलती है कि अपने बल,विभूति और सिद्धियों के प्रति हमे अधिक सजग नहीं रहना चाहिए। इसके अलावा हमे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन बहुत अपरिहार्य होने पर ही करना चाहिए।