दूसरी दुनिया के लोगों ने बसाया था भारत का ये रहस्यमयी नगर,,, विज्ञान हैरान.. 5000 हज़ार साल पहले कैसे मौजूद था इतना विकसित नगर ..


स्टोरी हाइलाइट्स

People of other world had settled this goddess city of India, science surprised .. how 5000 years ago existed so developed city ..

यह शहर श्रीकृष्ण के ज़माने में बसा था | इस शहर के बारे में कुबेरपतियों के द्वारा लिखी गई बातें आधुनिक लोगों को एक कहानियां की तरह ही  लगती हैं क्योंकि, उनमे जिन तकनीकों का वर्णन किया गया है | उनका इतने हज़ार साल पहले मौजूद होना संभव नही लगता, लेकिन इस शहर के अवशेष बता रहे हैं कि, पौराणिक काल में भारत में ऐसे विकसित नगर थे, जिनकी तकनीक आधुनिक तकनीक से कम नही थे | भारत के पश्चिमी छोर पर है दुनिया का ये सबसे बड़ा बियावान रेत का एक विशाल ताल, कच्छ का रण, एक जमाने में यह समंदर का हिस्सा था | मगर हजारों वर्षों के दौरान ऐसा भौगोलिक बदलाव हुए की ये दुनिया में नमक का सबसे बड़ा ताल बन गया | इसकी लम्बाई करीब 20,000 स्केवर किलोमीटर तक फैली हुई थी, यह बियाबान जहां कभी बसा था भारत के महानतम शहरों में से एक हडप्पा का धोलावीरा जिसकी खोज हुई सन 1956 में हुई यहाँ ढोला वीरा के अवशेष 35 सालों तक ज़मीन में दबे रहे | हड़प्पा संस्कृति के इस नगर की जानकारी 1960 में हुई और 1990 तक इसकी खुदाई चलती रही। कई साल की खुदाई के बाद यहाँ पर कई बेशकीमती चीज़ें मिली लेकिन एक दिन अजूबा हो गया क्योंकि जमीन में सफेद पत्थर नजर आया और भी कई प्रतीक वहा से मिले, जो शायद किसी प्राचीन भाषा के कोड थे | शायद ऐसा लगता है कि ये किसी और दुनिया के तत्व हो, क्योंकि यहां ऐसी चीज़े पहले कभी नहीं मिली थी | क्या ये सिंधु घाटी सभ्यता के छिपे राज खोल सकता था ? जिनकी चाबी छुपी है एक ऐसी भाषा में जिसे अब तक कोई नहीं समझ पाया है क्योंकि हड्डपा, मोहन जोदडो तथा धोलावीरा के लोग कौन सी भाषा बोलते थे और किस लिपि का उपयोग करते थे, ये भी अज्ञात है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के लगभग 400 मूल संकेत पायें गए हैं। गुजरात में कच्छ प्रदेश के उतरीय विभाग खडीर में धोलावीरा गांव के पास पांच हजार साल पहले विश्व का ये प्राचीन महानगर था। उस जमाने में लगभग 50,000 लोग यहाँ रहते थे, यहाँ करीब 40,000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। एक के बाद एक करीब 400 प्रतीक वहा पर पाए गए वह सभी सफ़ेद जिप्सम से बने थे | सबसे चौंकाने वाली और सबसे अच्छी बात यह है कि, वह शहर के गेट के पास मिले थे और हो सकता है कि उस जमाने में वो एक साइन बोर्ड रहा हो, क्या लिखा है हम यह नहीं जानते हम क्यों नहीं जानते इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हम उसे पढ़ नहीं सकते | तो हड़प्पा के लेखों के साथ परेशानी यह है कि, हमें आज तक उन्हें पढ़ने वाला नहीं मिल पाया है | इसीलिए आज भी यह राज़ ही बना हुए हैं, ये कभी सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बेहतरीन शहरों में से एक था, यहा करीब 120 एकड़ में फैला एक शहर था जों करीब 5000 साल पुराना था, सायद इजिप्ट के ग्रैड  पिरामिड से भी पुराना | धोलावीरा करीब डेढ़ हजार साल तक बसा रहा लेकिन धोलावीरा के लोग बड़े ही होशियार थे और वह सभी सभ्य थे, उनके पास उस वक्त भी बड़ी उन्नत टेक्नोलॉजी थी, क्योंकि आप खुद भी सोचिए 3620 bce में उन्होंने जमीन के नीचे नालियां बना ली थी | उनके पास पकी हुई ईंटें थी और ऐसा शहर था जिसे एक योजना बनाकर बसाया गया था | वह शहर के एक प्लेटफार्म पर बसा था, इसका मतलब यह है कि, वह सिविक प्लानिंग के बारे में भी जानते थे, उन्हें  त्रिकोणमिति की भी बहुत ही  अच्छी समझ थी, रेशो का अंदाजा था और वह ऐसा कैलकुलेशन भी जानते थे जो एक महानगर बसाने के लिए जरूरी है | उन्होंने एक ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जिसके बारे में दुनिया जानती ही नहीं थी | क्या हमारे पूर्वजों ने अपना शहर बसाने के लिए मिट्टी के मॉडल्स बनाए थे, हम यह कभी नहीं जान पाएंगे और इस बात में कोई शक भी नहीं है कि उन्हें सिविल इंजीनियरिंग जियोलॉजी और हाइड्रोलॉजी की भी जानकारी थी | धोलावीरा उस जमाने का ऐसा शहर था जहां पानी की बड़ी अच्छी व्यवस्था थी, यह शहर दो नदियों के बीच बसा था, उत्तर में मंदसर तो दक्षिण में मनहर नदी बहती थी, दोनों नदियों को शहर भर में बने एक दूसरे से टैंक से जोड़ा गया | आज 21वीं सदी में भी दुनिया भर में पीने के पानी की कमी हो रही है | जिसकी वजह से युद्ध हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने धोलावीरा में पानी पर नियंत्रण कर लिया था | हम धोलावीरा से नसीहत लेकर आज उन चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं | साढ़े पांच हजार साल पहले यानी हड़प्पा काल से भी पहले का यह शहर बसा हुआ था, हिमालय से निकल कर गुजरात के कच्छ रण तक बहने वाली सरस्वती नदी का लुप्त होना ही हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शहर धोलावीरा के नष्ट होने की प्रमुख वजह थी ? भारतीय रिसर्चरों ने इस सवाल का जवाब तलाश लेने का दावा किया है | 5000 साल पहले धोलाबीरा अरब सागर का व्यापार केंद्र था और यहां के लोग निर्यात के लिए मटके बनाते थे | धोलावेरा के मटके मेसोपोटामिया तक मिले हैं, यानि आज के इराक में वो अचानक कैसे गायब हो गए, उस सभ्यता ने कुदरत की शक्तियों को भी साध ली उनकी आबादी कई हजार साल की थी, लेकिन वह भी अचानक गायब हो गई | उसकी टेक्नोलॉजी कहां गई, यह सब कहां गायब हो गया इसपर वैज्ञानिक आज भी धोलावीरा के बारे में जानकारी पाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन शायद उसके ज्यादातर राज रहस्य बने रहेंगे |