Unemployment: शहरी बेरोजगारों को भी मिलें रोजगार की गारंटी, 82 प्रतिशत लोग हुए बेरोजगार..


स्टोरी हाइलाइट्स

नई दिल्ली: लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, कोविड -19 घोटाले के कारण अपनी नौकरी गवाने वाले शहरवासियों ने कहा है कि उन्हें जॉब की वही

Unemployment: शहरी बेरोजगारों को भी मिलें रोजगार की गारंटी, 82 प्रतिशत लोग हुए बेरोजगार..
  नई दिल्ली: लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, कोविड -19 के कारण अपनी नौकरी गवाने वाले शहरवासियों ने कहा है कि उन्हें जॉब की वही गारंटी मिलनी चाहिए जो सरकार ने ग्रामीण लोगों को दी है। यह सर्वेक्षण कोविड-19 के प्रकोप के मद्देनजर भारत में शहरी बेरोजगारी और श्रम बाजार नीतियों पर किया गया था। 82 प्रतिशत लोगों ने 'रोजगार गारंटी' को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।     साथ ही 16% उत्तरदाताओं ने नकद हस्तांतरण को भी प्राथमिकता दी। स्वामी ढींगरा और फ़ज़ोला कोंडिरोली द्वारा दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के प्रकोप के मद्देनजर, सरकार की नकद हस्तांतरण योजना से लाभान्वित होने वालों में से अधिकांश ने वित्तीय सुरक्षा के बजाय नौकरी की सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया।     वर्तमान में केंद्र सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार को मनरेगा के तहत 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है। पिछले साल, प्रकोप के कारण नौकरी पंजीकरण में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इसलिए सरकार ने इस योजना के प्रावधान को बढ़ा दिया है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ने पिछले साल पहले लॉकडाउन के बाद यह सर्वे किया था। लेकिन अब ताजा सर्वे में भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं से भी संपर्क किया गया। यह पाया गया कि उनमें से 44 प्रतिशत लोग पहले तालाबंदी के 10 महीने बाद भी बेरोजगार थे।  
छह माह से बेरोजगार
  रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर के नागरिक औसतन छह महीने से बेरोजगार हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ शहरी गरीबों तक ही सीमित है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 1 फीसदी से भी कम लोगों को योजनाओं का लाभ मिला। यही कारण है कि कई शहरी लोग चाहते हैं कि उनकी नौकरी सुरक्षित हों।