जब हुआ कृष्ण और शिव के बीच युद्ध? : दिनेश मालवीय 'अश्क'


स्टोरी हाइलाइट्स

जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है, तभी से कुछ ऐसी घटनाएं होती रही हैं,...जब हुआ कृष्ण और शिव के बीच युद्ध | war between Krishna and Shiva happen

जब हुआ कृष्ण और शिव के बीच युद्ध?-When did the war between Krishna and Shiva happen?

दिनेश मालवीय 'अश्क'
dineshजब से सृष्टि का निर्माण हुआ है, तभी से कुछ ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जिनकी हम सफने मे भी कल्पना नहीं कर सकते। कहते हैं जीवन कथाओं से भी विचित्र होता है। कभी एक दूसरे के परम हितैषी दो ऐसे व्यक्ति आपस मे टकराने को मजबूर हो जाते हैं, जिनके बारे मे ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। कभी हमेशा एक दूसरे के ख़ून के प्यासे लोग ऐसी मित्रता निभाते हैं जो किसीकी कल्पना से सर्वथा परे होती है।

अपने कुछ अगले एपीसोड्स मे हम कुछ ऐसे ही पौराणिक चरित्रों के बीच युद्ध के रोचक प्रसंग प्रस्तुत करेंगे।

War between Krishna and Shiva
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु क्रमशः सृष्टि के संहारक और पालनहार हैं। दोनो के बीच अद्भुत समन्वय और एकता के कारण ही सृष्टि का संचालन संभव हो पा रहा है। वे एक दूसरे से भक्ति की सीमा तक प्रेम करते हैं।
श्रीकृष्ण भागवान विष्णु के अवतार हैं। वह शिव के परम उपासक भी हैं। लेकिन कभी इन दोनों के बीच युद्ध की बात क्या सोच भी सकता है? लेकिन ऐसा हुआ। हम पहले ही कह आये हैं कि जीवन कथाओं से भी विचित्र है।

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तो आइए, देखते हैं कि इन दो महानतम विभूतियों के बीच कब क्यों और कैसे युद्ध हुआ और उसका परिणाम क्या रहा।

मित्रो, आप वाणासुर के विषय मे तो जानते ही होंगे। इस अजेय योद्धा की एक हज़ार भुजाएँ थीं । वाणासुर की उषा नाम की एक पुत्री थी। भगवान शंकर की कृपा से वाणासुर बहुत बलवान हो गया था। लेकिन बल पाने पर जैसाकि अक्सर होता है, वह भी बहुत घमंडी हो गया।

एक बार शिवजी की सेवा करते हुए, वह बोला कग हे महादेव! अपकी कृपा से मैं इतना बलशाली हो गया हूँ कि सृष्टि मे आपके सिवा कोई मुझे पराजित नहीं कर सकता।
भगवान सब कुछ सहन कर सकते हैं, लेकिन अपने भक्त मे घमंड को कभी नहीं रहने देते। वह जानते हैं कि इससे भक्त का पतन हो जाएगा।

शिवजी ने वाणासुर से कहा कि जिस दिन तेरे किले कघ ध्वजा अपने आप उखड़कर गिर जाये, तब समझ लेना कि तेरे इस घमंड को चूर करने वाला पृथ्वी पर आ चुका है।

एक दिन वाणासुर की पुत्री उषा ने श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को सपने मे देखा। वह उस पर आसक्त हो गयी। उसने मंत्री की पुत्री चित्रलेखा को सारी बात बताई। चित्रलेखा ने अपनी मायावी शक्ति से अनिरुद्ध का द्ववारकापुरी से अपहरण कर लिया। वह अनिरुद्ध को उसके पलंग सहित उठाकर उषा के पास ले गयी। अनिरुद्ध और उषा मे प्रेम हो गया और वे प्रेम से रहने लगे।

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यह बात जब वाणासुर को पता लगी तो वह उषा के पास आया। वहाँ वाणासुर और अनिरुद्ध के बीच घोर संग्राम हुआ। आख़िर वाणासुर अनिरुद्ध को नागपाश मे बाँधने मे सफल हो गया।

इधर द्ववारकापुरी मे अनिरुद्ध की खोजबीन शुरू हो गयी। महर्षि नारद ने द्ववारकापुरी आकर सारी बात बता दी।

द्वारका की विशाल सेना ने वाणासुर की राजधानी शोणितपुर पर आक्रमण कर दिया।
वाणासुर शिवजी का अनन्य भक्त था, लिहाजा वह वाणासुर की तरफ से लड़ने आये। दूसरी तरफ श्रीकृष्ण यादव सेना की ओर से युद्ध मे शामिल हुये। उनके साथ बड़े भाई बलराम भी थे।शिवजी ने श्रीकृष्ण पर सारे अस्त्र शस्त्र चला डाले, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन सभी को विफल कर दिया। अनेक प्रकार से युद्ध हुआ।

श्रीकृष्ण ने वाणासुर की चार भुजाओं को छोड़कर सारी भुजाओं को काट डाला। तब शिवजी ने स्वयं जाकर श्रीकृष्ण को शांत किया। श्रीकृष्ण ने शिवजी का भक्त जानकर उसे माफ कर दिया। इस प्रकार युद्ध समाप्त हुआ। इस प्रसंग का सुखद अंत हुआ। उषा और अनिरुद्ध का विवाह हो गया।