जब श्रीमहादेवजी ने भगवती उमा से श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियों के धर्म वर्णन करने को कहा


स्टोरी हाइलाइट्स

एक बार श्रीमहादेवजी ने भगवती उमा से श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियों के धर्म वर्णन करने को कहा। उस समय गंगा जी आदि पवित्र नदीरूपिणी देवियाँ भी उपस्थित थीं, तब उमा ने कहा-

पतिव्रता का आदर्श: शंकर-उमा-संवाद
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Husband Wife Relation How To Be A Good Wife
एक बार श्रीमहादेवजी ने भगवती उमा से श्रेष्ठ पतिव्रता स्त्रियों के धर्म वर्णन करने को कहा। उस समय गंगा जी आदि पवित्र नदीरूपिणी देवियाँ भी उपस्थित थीं, तब उमा ने कहा- 'मैं जिस स्त्री धर्म जानती हूँ, सो सुनाती हूँ। आप सावधान होकर सुनिये

विवाह में कन्याओं के घर वाले उसे स्त्री धर्म का उपदेश पहले से ही देते हैं और स्त्री अग्निकी साक्षी देकर पति की सहधर्म चारिणी बन जाती है।

स्त्री को सुन्दर स्वभाववाली, विनययुक्त, मधुर, हितकर वचन बोलने वाली, सुन्दर दर्शनवाली, पति में अनन्य चित्तवाली, प्रसन्न मुखी और पति के साथ उसके धर्म का आचरण करने वाली होनी चाहिये।
What is Dharma(Responsibility) of a Wife according to Hindu
जो साध्वी स्त्री अपने पति को सदा देवता के समान देखती है वह धर्म परायण होती है और इसे धर्म का भाग मिलता है, जो स्त्री देवता के समान अपने स्वामी की सेवा-शुश्रूषा करती है, पति के सिवा और किसी पर पतिभाव नहीं रखती, हर हालत में प्रसन्न, सुन्दर आचरण युक्त होती है, जिसके देखने से पति को सुख मिलता है, जो सदा स्वामी के मुख को ही देखा करती है और नियमित भोजन करती है, वह धर्मचारिणी होती है।

जो स्त्री 'पुरुष और स्त्री दोनों को एक साथ रहकर उत्तम धर्म का पालन करना चाहिये'

इस दम्पति-धर्म को सुनकर उस धर्म में लगी रहती है, उस स्त्री को पति के समान व्रत वाली समझना चाहिये।

पति को सदा ईश्वर के समान दिखने वाली स्त्री को सहधर्मिणी समझना चाहिये। जो स्त्री अपने स्वामी की देवता के समान सेवा करती है, वह बिना ही वशीकरण के अपने पति को वश में कर लेती है।
Hindu women as life partner
ऐसी प्रसन्न मनवाली,सुन्दर पतिव्रता वाली, सुदर्शना, पति के अनन्य चित्तवाली, हँसमुखी स्त्री को धर्मचारिणी समझना चाहिए।

पति के कठोर वचन कहने पर, कड़ी दृष्टि से देखने पर भी जो स्त्री खूब प्रसन्न मुखी रहती है, वही पतिव्रता है।

जो स्त्री अपने पति के सिवा पुल्लिंग वाचक चन्द्रमा  और वृक्ष को भी नहीं देखना चाहती, उसी सुन्दरी स्त्री को धर्मचारिणी समझना चाहिये।

जो स्त्री अपने धनहीन, रोगी, दीन, रास्ते में थके हुए स्वामी को पुत्र के समान स्नेह के साथ सेवा करती है, वह धर्मचारिणी है।

जो स्त्री संयम से रहती है, चतुर है, पति से ही पुत्र उत्पन्न करती है, पति को प्यारी है और अपने पति के प्राणों के समान समझती है, वही स्त्री धर्मचारिणी है।

जो स्त्री पति की सेवा प्रसन्न मन से करती है, बेगार या भार नहीं समझती, पति पर विश्वास रखती है और सदा विनयपूर्ण बर्ताव करती है, उसे धर्मचारिणी समझना चाहिये।

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जिस स्त्री को पति के लिये जैसी चाह होती है वैसी चाह किसी भी विषय, भोग, ऐश्वर्य और सुख के लिये नहीं होती, वह स्त्री धर्मचारिणी है।

जो स्त्री प्रात:काल उठने में प्रीति रखती है, घर के काम में दत्तचित्त होती है, घर को सदा साफ और गृहस्थी को व्यवस्थित रखती है, पति के साथ सदा यज्ञ करती, पुष्पादि से देवता की पूजा करती है, पति के साथ देवता, अतिथि, नौकर और अवश्य पालनीय सास-ससुर आदि भोजनादि से भली भाँति तृप्त करके शेष बचे हुए अन्नका भोजन करती है, वह धर्मचारिणी है।
Dharmic role of wife in marriage
जो गुणवती स्त्री अपने सास-ससुर के चरणों की सदा सेवा करती है, नैहर में माता-पिता को सुख पहुँचाती है, वह तपोधना कही जाती है, जो ब्राह्मण, दुर्बल, दीन, अनाथ, अन्ध और अपाहिजों को अन्नादि देकर उनका भरण-पोषण करती है, वह स्त्री पतिव्रत-धर्मवाली है।

जो स्त्री कठिन नियमोंका पालन करती है, चित्र को वश में रखती है, ऐश-आराममें नहीं फँसती,पतिपरायण रहती है, वह सती पतिव्रता है।

स्त्रियों के लिये पति ही देवता है, पति ही मित्र है, पति ही गति है, पति के समान स्त्रियों की कोई गति नहीं है। पति की प्रसन्नता के बिना स्त्री को स्वर्ग की भी इच्छा नहीं करनी चाहिये। पति दरिद्र हो, व्याधिग्रस्त हो, शापसे पीड़ित हो, चाहे जैसी भी दशा में हो, तब भी वह जो कुछ भी करने को कहे, स्त्री को निसंकोच होकर वह कार्य करना चाहिये।

महाभारत, अनुशासन पर्व