'मैं कौन हूँ'


स्टोरी हाइलाइट्स

सामान्य जीवन में जब एक छोटे बालक को अज्ञात पिता द्वारा दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकृत किया जाता है, वह बड़ा होने पर अपने वास्तविक पिता की खोज करता है तथा...

'मैं कौन हूँ'

who am I
एक सत्यान्वेषी के लिए मनुष्य के यथार्थ आत्मपरिचय को जान लेना तथा 'मैं कौन हूँ' के उत्तर को जान लेना महत्त्वपूर्ण है। किन्तु इस चिरकालीन प्रहेलिका का समाधान खोज लेना भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि यथार्थ पिता कौन है ? वह परम सत्ता कौन है, जो मात्र दिव्य मन के संकल्प से विश्व को व्यक्त कर देती है तथा स्थिति और लय भी कर देती है और इस प्रक्रिया की अनन्त रूप से आवृत्ति करती रहती है ?

सामान्य जीवन में जब एक छोटे बालक को अज्ञात पिता द्वारा दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकृत किया जाता है, वह बड़ा होने पर अपने वास्तविक पिता की खोज करता है तथा वास्तविक पिता की खोज एक धून ही बन जाती है। इससे एक मनोग्रन्थि बन जाती है, जिसे दत्तक ग्रन्थि कहा जाता है, जिसका विमोचन हो जाता है तथा जो अकथ्य उल्लास में परिवर्तित हो जाती है, जब वह अपने वास्तविक (प्राकृतिक) पिता से भेंट करता है। 

मनुष्य अपने भीतर गहन, स्थायी शान्ति प्राप्त कर लेता है, जब वह ध्यान के समय चेतना की गहराई में दिव्य सत्ता (परमपिता) का साक्षात्कार करता है, जो उसके भीतर ही प्रतिष्ठापित होती है। तब वह दिव्य सत्ता के साथ तादात्म्य एवं अभिन्नता का अनुभव करता है तथा पूर्ण आनन्द प्राप्त कर लेता है। निश्चय ही, यह आध्यात्मिक प्रगति का शीर्ष बिन्दु है।