धन और धर्म में कौन महान है?


स्टोरी हाइलाइट्स

धन और धर्म में कौन महान है? धन की रक्षा करनी पड़ती है । धर्म हमारी रक्षा करता है । धन का दुरुपयोग, या गलत मार्ग से अर्जित धन हमें दुर्गति में ले जा सकता है । धर्म निश्चित तौर पर हमें सद्गति में ले जाता है । धन के लिए कभी-कभी/ जाने-अनजाने में हमसे पाप कर्म भी होता है । धर्म में पाप का त्याग होता है । धन से धर्म मिलने की Guarantee नहीं है । धर्म पालन से सबकुछ (मुक्ति/ निर्वाण के लिए आवश्यक) प्राप्त होता है । धन मित्रों को भी दुश्मन बना देता है । धर्म दुश्मन को भी मित्र बना देता है । धन भय को उत्त्पन्न करता है । धर्म भय को समाप्त करता है । धन रहते हुए भी व्यक्ति दुःखी है । धर्म से व्यक्ति दुःख मुक्त होता हैं । धन से संकीर्णता आती है । धर्म से विशालता आती है । धन इच्छा को बढ़ाता है । धर्म इच्छाओं को घटाते हुए नष्ट करता हैं । धन में लाभ-हानी चलती रहती है । धर्म से हर समय फायदा ही फायदा है । धन से राग, द्वेष, अहंकार, व अन्य अनेक दुर्गुण बढ़ सकते हैं । धर्म से राग, द्वेष, अहंकार, व अन्य अनेक दुर्गूण नष्ट होने लगाते हैं । धन हमें भवचक्र में उलझाए रखता है । धर्म हमें भवचक्र के बाहर निकालता है । धन से मानसिक स्वास्थ्य मिलने की Guarantee नहीं है । धर्म से मानसिक स्वास्थ्य मिलने की 100% Guarantee हैं । धन अशाश्वत है । धर्म शाश्वत है । धन का साथ इसी जन्म तक है । धर्म का साथ जन्म जन्मांतरों तक रहता है । मंगल मैत्री सहित ।