गाँधीजी की हत्या और कुछ अचर्चित बातें हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य PART:36


स्टोरी हाइलाइट्स

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३३) hindutva-and-mahatma-gandhis-ramrajya-33.....................................

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य PART:36
गाँधीजी की हत्या और कुछ अचर्चित बातें
 मनोज जोशी         (गतांक से आगे)

इस श्रृंखला की पिछली किसी कङी में मैंने जिक्र किया था कि नाथूराम गोडसे के बयान वाले दिन यानी ८ नवम्बर १९४८ को अदालत में काफी भीड़ थी और गोडसे का बयान सुनते हुए अदालत में मौजूद लोगों की आँखें नम हो गई थी। 

जज साहब ने यहाँ तक भी लिखा कि यदि अदालत में मौजूद लोगों को फैसला करने को कहा जाता तो वे गोडसे को माफ कर देते। 

यानी गाँधीजी की हत्या को साल भर भी नहीं बीता और आम लोगों ने गोडसे को माफ कर दिया! सोचिए, एक तरफ हम गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह रहे हैं और दूसरी तरफ उनके हत्यारे से सहानुभूति?


गंगाधर दंडवते, गंगाधर जादव और सूर्यदेव शर्मा यह तीन वो नाम हैं जिन्हें गाँधीजी की हत्या का आरोपी बनाया गया था। लेकिन यह फरार हो गए। और आज तक इनका कुछ पता नहीं चला है? यानी आजादी के तुरंत बाद राष्ट्रपिता की हत्या की जाँच और आरोपियों तक पहुँचने को लेकर हमारा तंत्र कितना गंभीर था यह इस एक उदाहरण से पता लगता है। 

क्या पता इन तीन में से कोई एक या तीनों अब तक जीवित हों। और चर्चा तो यह भी होना चाहिए कि इन तीनों की बाद के वर्षों की गतिविधियां क्या रहीं होंगी।

फोरेंसिक रिपोर्ट बताती है कि गाँधीजी की पार्थिव देह पर  चार घाव थे, लेकिन गोडसे ने तीन गोलियां चलाईं थीं! फिर चौथी गोली किसने चलाई? और गाँधीजी की मौत किस गोली से हुई ? 

गोली लगने के बाद गाँधीजी को अस्पताल नहीं ले जाया गया और न पोस्टमार्टम हुआ। 

इसी श्रृंखला में यह बात भी सामने आ चुकी है कि गाँधीजी की हत्या की एफआईआर में आरोपी का नाम नहीं था। शिकायतकर्ता नंदलाल मेहता के बयान में भी नाथूराम का नाम नहीं था। उन्होंने अपने बयान में आरोपी का नाम नारायण विनायक गोडसे बताया था।

गाँधीजी की हत्या के दस दिन पहले २० जनवरी को मदनलाल पाहवा ने देसी बम फेंक कर गाँधीजी को मारने की कोशिश की और वह पकङा भी गया। उसने पूछताछ में हत्या की साजिश की बात भी बताई। लेकिन गाँधीजी की सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए। तर्क दिया जाता है कि गाँधीजी इसके लिए राजी नहीं थे। लेकिन सादी वर्दी में पुलिस बल तो लगाया जा सकता था।

गाँधीजी की हत्या पर संघ की शाखाओं में १३ दिन के शोक की घोषणा हुई। 

गाँधीजी की हत्या के पाँचवें दिन संघ पर हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगाकर ४ फरवरी १९४८ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

११ जुलाई १९४९ को यह प्रतिबंध उठा लिया गया, जबकि गाँधीजी की हत्या पर अदालत का फैसला संघ से प्रतिबंध हटाने के लगभग ४ महीने बाद ८ नवंबर १९४९ को आया। क्या इसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि सरकार को अपनी गलती का एहसास हो गया था।

गाँधीजी की हत्या के बाद केवल राजनीतिक बयानबाजी को छोड़कर  आर एस एस पर कोई आरोप नहीं लगा। और कोई भी बात साबित नहीं हुई।

गाँधीजी की हत्या के आरोप में सजा काट कर १२ अक्टूबर १९६४ को गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे और मदनलाल पाहवा जेल से छूटे उनका भव्य स्वागत हुआ। पुणे में आयोजित स्वागत समारोह की अध्यक्षता की लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाती जीवी केटकर ने। और वहाँ उन्होंने क्या कहा ? केटकर ने कहा "मुझे गाँधीजी की हत्या के बारे में पहले से पता था"। 

अब आप क्या तिलक और उनके पोते की देशभक्ति पर प्रश्न चिह्न लगा सकते हैं? स्वाभाविक रूप से इसका जवाब है- नहीं! यह संभव नहीं। 

केटकर के बयान के बाद नया बवाल मच गया। इस पर चर्चा आगे करेंगे। 

(क्रमशः)
साभार: MANOJ JOSHI - 9977008211

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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